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नींद नहीं आती

शंकरलाल जांगिड़ ‘शंकर दादाजी’
रावतसर(राजस्थान) 
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रातों को नींद नहीं आती सब, खाली-खाली लगता है।
पागल-सा देखूं इधर-उधर, इक दिल में दर्द उभरता है॥

क्या प्यार इसी को कहते हैं कोई मुझको समझाए तो,
अनजानी-सी छवि आँखों में है कौन जरा बतलाए तो।
इक दिन वो सम्मुख आएगी ऐसा मुझको क्यों लगता है,
पागल-सा देखूं इधर…॥

खोया हूँ इन्हीं ख़यालो में कुछ भी तो मुझको होश नहीं,
बेसुध हूंँ आँखें बंद मगर इतना है बस बेहोश नहीं।
फिर चौंक अचानक उठता हूँ ज्यों नींद से कोई जगता है,
पागल-सा देखूं इधर…॥

बैचेन हो गया यादों से आगे क्या होगा क्या जानूँ,
वो अगर सामने आये भी, कैसे मैं उसको पहचानूँ।
मन सुलग रहा ऐसे मेरा ज्यों सूखा ठूँठ सुलगता है,
पागल-सा देखूं इधर…॥

कोई कुछ भी बोले मुझको मन कहता है वो आएगी,
इस सूखे मनो मरुस्थल को वो हरा-भरा कर जाएगी।
उस प्यार की बारिश से मेरे मन का गुलशन खिल सकता है,
पागल-सा देखूं इधर-उधर, इक दिल में दर्द उभरता है॥

परिचय-शंकरलाल जांगिड़ का लेखन क्षेत्र में उपनाम-शंकर दादाजी है। आपकी जन्मतिथि-२६ फरवरी १९४३ एवं जन्म स्थान-फतेहपुर शेखावटी (सीकर,राजस्थान) है। वर्तमान में रावतसर (जिला हनुमानगढ़)में बसेरा है,जो स्थाई पता है। आपकी शिक्षा सिद्धांत सरोज,सिद्धांत रत्न,संस्कृत प्रवेशिका(जिसमें १० वीं का पाठ्यक्रम था)है। शंकर दादाजी की २ किताबों में १०-१५ रचनाएँ छपी हैं। इनका कार्यक्षेत्र कलकत्ता में नौकरी थी,अब सेवानिवृत्त हैं। श्री जांगिड़ की लेखन विधा कविता, गीत, ग़ज़ल,छंद,दोहे आदि है। आपकी लेखनी का उद्देश्य-लेखन का शौक है


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