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नैसर्गिक सौन्दर्य से लुभाता रहा बस्तर

ममता तिवारी ‘ममता’
जांजगीर-चाम्पा(छत्तीसगढ़)
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यात्रा वृतांत…

मानव की मूल प्रकृति सदैव बंजारा या यायावर रही है। मानव एक स्थान पर अचल या स्थाई नहीं रह सकता, इसी प्रवृत्ति के वशीभूत वह आज पूरी धरती आकाश-पाताल छानते रहता है। और यही प्रवृत्ति जब कुलबुलाती है, तो हम सभी आज भी अपनी जिंदगी के जंजालों को कुछ दिन-सप्ताह-माह समेट कर निकल पड़ते हैं किसी यात्रा पर। अपनी पहुँच, पैसा और समय व्यय कर हम क्रय करते हैं ढेर सारी शांति, अनमोल यादों के खजाने, उत्साह और उमंग।

यह आवश्यक नहीं कि आपको विदेशों के पर्यटन से ही खुशी प्राप्त हो, अपने देश-अपनी धरती पर भी चप्पे-चप्पे में सौंदर्य, विविधता, और ऐतिहासिकता का दर्शन हो जाता है, तो इस बार शीत अवकाश में हमने छत्तीसगढ़ में ही बस्तर जाने की योजना बनाई। नैसर्गिक सौन्दर्य से लबरेज इस ३ दिवसीय यात्रा में हमने बिलासपुर से पहले ही जगदलपुर के लिए हवाई जहाज का टिकट ले लिया था। ऑनलाईन होटल और गाड़ी हो गई थी। एक मित्र परिवार के और अपनी बिटिया के साथ हम निकल पड़े एक बेहद रोमांचकारी, अद्भुत बस्तर यात्रा में। रोमांचकारी इसलिए है कि यहाँ इंद्रावती नदी में ३०० मीटर चौड़ा एवं ३० मीटर ऊँचा चित्रकोट जलप्रपात देखा, जो गिरते हुए कानों में प्राकृतिक जल तरंग से मधुर सुरताल सरगम सजाते मनोहारी दृश्य का निर्माण करता निर्झर आनंदातिरेक में मन मयूर कर कर देता है। नीचे से मुग्धकारी झरने के संगीत और नौका विहार का रोमांचक आनंद भी मिला। सघन वन से आच्छादित बस्तर में सबसे ऊंँचे तीरथगढ़ जलप्रपात जो ३०० फुट की ऊँचाई से भयाकार चट्टानों से टकरा-टकरा कर उपर और नीचे से देखने मात्र से दिल दहला देता है। नेशनल उद्यान काँगेर, घाटी में वन सुषमा से लबालब कुटमसर गुफाएँ ४० मीटर गहरी, ४५०० सौ ‌मीटर लम्बी, ३३० मीटर चौड़ी, ३३० मिलियन वर्ष पुरानी गुफाओं में से एक है। इस अद्भुत अंधेरी गुफा की नदी में पानी बहता रहता है, जिसमें अँधी मछलियाँ पायी जाती हैं। यहाँ प्राकृतिक सुंदरता के अलावा शैल चित्र कलाकृतियाँ करोड़ों वर्ष पहले आदिमानव बस्ती का प्रमाण देती हैं। चूने-पत्थर से बनी यह गुफाएँ रहस्य रोमांच से भरपूर पर्यटकों का मन आकर्षित करती हैं।
छोटे-बड़े कई झरनों, जिसमें तामड़ा, गीदम, चित्ताकर्षक वादियाँ देखते-देखते हम आगे दंतेवाड़ा बस्तर की एक और मुख्य नगरी पहुँचे। यह ५१ शक्ति पीठ में से एक है, जहाँ सती माँ का दाँत गिरा था। यह भी लकड़ी से बना दुर्लभ दर्शनीय मंदिर बस्तर के राजा की कुलदेवी जी का है। इसी देवी के पूजन में नवरात्रि दशहरा उत्सव जगदलपुर के राजमहल परिसर में महा भव्यता से मनाया जाता है। इसी समय वनवासी नवाखायी और बायसन नृत्य (सींग वाला कौड़ी पंखों से सजा मुकुट पहन) किया जाता है। भारत के सबसे स्वच्छ गाँव में शामिल केन्दरा में नदी में बाँस के जुड़े पट्टरों पर हमने नदी बम्मू विहार किया। यह बम्मू सवारी भी रोमांचकारी थी। यहाँ मेरा मोबाईल पानी में डूबे बाँस पटरे पर गिरा और नहा-धो कर पानी भी पी लिया। गनीमत रही कि फिर भी चल रहा है।
फिर हमने पबारसूर में ११वीं शताब्दी की मंदिर खुदाई में मिले भग्न और जो कुछ सही स्थिति में हैं, के दर्शन किए। झीरम, बीजापुर कोण्डागांव, नारायणपुर नक्सली प्रभावित क्षेत्र हैं, इसलिए हम उधर नहीं जा सके। यहाँअबुझमाड़, माडिया जनजाति और उनकी संस्कृति अति अद्भुत व आकर्षक है, किन्तु नाम के अनुसार ही अबूझ है। यह घने जंगलों में बाकी संसार से अलग-थलग रहते हैं। अब कपड़े पहनते हैं और कभी-कभी नमक जैसी आवश्यक सामग्री के लिए ही साप्ताहिक हाट-बाजार में आते हैं।

वन सम्पदा से भरपूर बस्तर अपने अनूठे काँस्य, पीतल, टेराकोटा, लौह शिल्प, बाँस शिल्प, जूट और टसर के लिए प्रसिद्ध है। जड़ी-बूटी, कंदमूल, छाल, तेंदू पत्र, चार, चिरौंजी जैसी वनोपज यहाँ भरपूर होती है। ऐसे ही यहाँ प्राचीन नाम ‘दण्डकारण्य’ अति अद्भुत और अपने में रहस्य समेटे मनोरम जगह है।

परिचय–ममता तिवारी का जन्म १अक्टूबर १९६८ को हुआ है। वर्तमान में आप छत्तीसगढ़ स्थित बी.डी. महन्त उपनगर (जिला जांजगीर-चाम्पा)में निवासरत हैं। हिन्दी भाषा का ज्ञान रखने वाली श्रीमती तिवारी एम.ए. तक शिक्षित होकर समाज में जिलाध्यक्ष हैं। इनकी लेखन विधा-काव्य(कविता ,छंद,ग़ज़ल) है। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में आपकी रचनाएं प्रकाशित हैं। पुरस्कार की बात की जाए तो प्रांतीय समाज सम्मेलन में सम्मान,ऑनलाइन स्पर्धाओं में प्रशस्ति-पत्र आदि हासिल किए हैं। ममता तिवारी की लेखनी का उद्देश्य अपने समय का सदुपयोग और लेखन शौक को पूरा करना है।