सरोजिनी चौधरी
जबलपुर (मध्यप्रदेश)
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पहली बार स्वप्न निद्रा में
प्रियवर ने एक पत्र लिखा,
अपनेपन का संबोधन दे
मुझको ‘प्रियतम मित्र’ लिखा।
लिखा उन्होंने मेरे हमदम
विह्वल कभी नहीं होना,
कहीं अगर एकांत में हो तुम
फोटो पकड़ के मत रोना।
बड़ा अनोखा रिश्ता अपना
जन्मों का संबंध लिखा,
पहली बार न जाने कैसा
उन्होंने मुझको पत्र लिखा।
फिर यह लिखा दुखी मत होना
नहीं अगर मैं साथ तुम्हारे,
सुख-दुख से ही बुने हुए हैं
जीवन के सब ताने-बाने।
और लिखा तुम दिल की पीड़ा
छिपा के आँसू पी लेना,
याद मेरी आए जब तुमको
बीते समय को जी लेना।
लिखा वो छोटी-छोटी आशा
हुई नहीं अब तक पूरी,
उन सबको पूरी तुम करना
भुला के अपनी मजबूरी।
मन की नगरी में बसा हूँ मैं
अंकित तुममें यह सत्य लिखा,
पहली बार स्वप्न निद्रा में
प्रियवर ने यह पत्र लिखा।
जो कुछ लिखा बहुत गहरा था
जैसे जीवन-चित्र लिखा,
मन कंचन मृग रखना वश में
घर का नाम ‘पवित्र’ लिखा।
खुली आँख जब मेरी उस दिन
सारी रात नहीं सोई,
पढ़कर अपनी व्यथा-कथा को
मैं उस रात बहुत रोई।
मन में निश्चय किया उसी पल,
नहीं व्यथा अब सहना है।
नदी के जैसे बना के रास्ता,
बस आगे को बढ़ना है॥