डॉ.राम कुमार झा ‘निकुंज’
बेंगलुरु (कर्नाटक)
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पितृ दिवस विशेष….
आनंदित कुल पूत पिता पा,
किया समर्पित जान सदा है
पिता त्याग सुख शान्ति जिंदगी,
पूरण सुत अरमान लगा है।
लौकिक झंझावात सहनकर,
पिता सदा चुपचाप सहा है
धूप वृष्टि या शीत विषमता,
यायावर संताप सहा है।
पूत चढ़े सोपान लक्ष्य पथ,
पिता सतत अपमान सहा है
कर्ता भर्ता जनक तनय बन,
स्नेह सलिल सन्तति सींचा है।
संवाहक परिवार कुलोचित,
निर्वाहक समाज पिता है
संघर्षक नित सहा जिंदगी,
निर्माणक सुत आज मुदित है।
पूत पिता पति रूप निर्वहण,
बड़ा कठिन वह काम करा है
करे पूर्ति धीरज रख साहस,
मूक सदा निष्काम रहा है।
पूत प्रगति बस चाह हृदय नित,
पाया सुख मुस्कान अधर है
निशिवासर कर झूठ सत्य पथ,
धन अर्जन अपमान सहना है।
पूर्ण हुआ सुत लक्ष्य सफलता,
पितृभक्ति सुत मान कहाँ है
सेवा श्रद्धावनत पूत हो,
करे पिता सम्मान विरल है।
ममता पृथिवी समा जनक की,
दृढ़ पर्वत सम हिय कठोर है
दानवीर बलिराज भोज शिबि,
महादान पितु सुत निमित्त है।
जीवन दे जिस बाप जगत में,
चुका सकूँ नहि कर्ज कठिन है
पाल पोष अस्तित्व दिया जग,
पितु सेवन सुत फ़र्ज़ विरत है।
पितृ दिवस पर आज ऋणी मैं,
साश्रु नैन कर पिता नमन है
करता हूँ सादर याद विनत,
आशीष पिता याचक सुत है।
अर्पित है श्रद्धासुमन चरण,
पिता त्याग बलिदान तनय है
हूँ कृतज्ञ नित निकुंज पूत,
पिता आप भगवान जगत हैं।
छाँव आपकी कमी खले बस,
छत्र माथ पर नहीं आज है
सब खुशियाँ दी अवसीदित बन,
मैंने दी बस घाव बहुत है।
आप गये माँ भी छोड़ी जग,
ममता छत्र विहीन तनय है
मातु-पिता श्री हीन शोक मन,
आज अकेला पुत्र रुदित है।
जहँ भी हों आशीष दें पिता,
रखें ध्यान जो मातु स्वर्ग है
शान्ति मिले परलोक आपको,
मातु साथ सम्मान प्रीत है।
अपराधी सुत हूँ लज्ज़ित अब,
किया न मान अज्ञान निरत हूँ
अवसादित हूँ मैं पड़ा गेह,
करें तात क्षमदान विनत है।
आप पूत पहचान तनय बन,
कुलपौरुष अभिमान सतत हैं।
सारस्वत सम्मान वंश का,
पिता आप नित शान तनय हैं॥
परिचय-डॉ.राम कुमार झा का साहित्यिक उपनाम ‘निकुंज’ है। १४ जुलाई १९६६ को दरभंगा में जन्मे डॉ. झा का वर्तमान निवास बेंगलुरु (कर्नाटक)में,जबकि स्थाई पता-दिल्ली स्थित एन.सी.आर.(गाज़ियाबाद)है। हिन्दी,संस्कृत,अंग्रेजी,मैथिली,बंगला, नेपाली,असमिया,भोजपुरी एवं डोगरी आदि भाषाओं का ज्ञान रखने वाले श्री झा का संबंध शहर लोनी(गाजि़याबाद उत्तर प्रदेश)से है। शिक्षा एम.ए.(हिन्दी, संस्कृत,इतिहास),बी.एड.,एल.एल.बी., पीएच-डी. और जे.आर.एफ. है। आपका कार्यक्षेत्र-वरिष्ठ अध्यापक (मल्लेश्वरम्,बेंगलूरु) का है। सामाजिक गतिविधि के अंतर्गत आप हिंंदी भाषा के प्रसार-प्रचार में ५० से अधिक राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय साहित्यिक सामाजिक सांस्कृतिक संस्थाओं से जुड़कर सक्रिय हैं। लेखन विधा-मुक्तक,छन्दबद्ध काव्य,कथा,गीत,लेख ,ग़ज़ल और समालोचना है। प्रकाशन में डॉ.झा के खाते में काव्य संग्रह,दोहा मुक्तावली,कराहती संवेदनाएँ(शीघ्र ही)प्रस्तावित हैं,तो संस्कृत में महाभारते अंतर्राष्ट्रीय-सम्बन्धः कूटनीतिश्च(समालोचनात्मक ग्रन्थ) एवं सूक्ति-नवनीतम् भी आने वाली है। विभिन्न अखबारों में भी आपकी रचनाएँ प्रकाशित हैं। विशेष उपलब्धि-साहित्यिक संस्था का व्यवस्थापक सदस्य,मानद कवि से अलंकृत और एक संस्था का पूर्व महासचिव होना है। इनकी लेखनी का उद्देश्य-हिन्दी साहित्य का विशेषकर अहिन्दी भाषा भाषियों में लेखन माध्यम से प्रचार-प्रसार सह सेवा करना है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-महाप्राण सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ है। प्रेरणा पुंज- वैयाकरण झा(सह कवि स्व.पं. शिवशंकर झा)और डॉ.भगवतीचरण मिश्र है। आपकी विशेषज्ञता दोहा लेखन,मुक्तक काव्य और समालोचन सह रंगकर्मी की है। देश और हिन्दी भाषा के प्रति आपके विचार(दोहा)-
स्वभाषा सम्मान बढ़े,देश-भक्ति अभिमान।
जिसने दी है जिंदगी,बढ़ा शान दूँ जान॥
ऋण चुका मैं धन्य बनूँ,जो दी भाषा ज्ञान।
हिन्दी मेरी रूह है,जो भारत पहचान॥