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फर्ज..अपना-अपना

गोपाल मोहन मिश्र
दरभंगा (बिहार)
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अरे पापा आप अभी तक तैयार नहीं हुए। बैग कहाँ है आपका ? चलिए मैं पैक करती हूँ। पापा ने एक उदास नजर नीलू पर डाली। नीलू बेटा मैं कहीं नहीं जाऊंगा। ये घर तेरी माँ की यादों से भरा हुआ है। नीलू की आँखें भर आई। पापा माँ को गए छह महीने हो गए हैं,आपकी तबियत भी ठीक नहीं है। ऐसे में मैं आपको अकेले नहीं छोड़ सकती। आप मेरे घर चल रहे हैं मेरे साथ।
बेटा,मैं तेरे घर कैसे रह सकता हूँ ? बेटी के घर का तो लोग पानी तक नहीं पीते हैं। फिर वहाँ तेरे सास-ससुर भी हैं। उन्हें मेरा वहाँ रहना कैसे अच्छा लग सकता है। आखिर हूँ तो मैं एक बाहरी आदमी।
पापा वो लोग ऐसे नहीं हैं,वो मेरे साथ कितने अच्छे हैं। नीलू पापा का हाथ अपने हाथ में लेकर बैठ गई। पिछली बार आपको शुगर का अटैक आया था। कितनी मुश्किल से ठीक…कहते हुए,उसकी आँखों में आँसू आ गए। पापा मैं आपकी इकलौती बेटी हूँ। आपकी सारी जिम्मेदारी अब मेरी है। बस मैं और कुछ नहीं सुनूंगी।
पापा सोच में डूब गए। अनिल (दामाद) जी ने तो एक बार भी नहीं कहा। हाँ,ये जरूर कहा था कि पापा हम आते रहेंगे आपसे मिलने।
नीलू तूने दामाद जी को पूछा।
अरे पापा उनकी और मेरी राय अलग थोडे़ ही है।
नीलू पापा को लेकर अपने घर आ गई। उसके सास-ससुर समधी को देख कर चौंक गए। अनिल ने भी पैर छुए और कहा-अच्छा किया पापा,जो आप कुछ दिन के लिए यहाँ आ ग‌ए। पापा रहने तो लगे, पर उन्हें लग‌ रहा‌ था कि शायद दामाद और उनके माता-पिता उनके यहाँ आने से खुश नहीं हैं। एक दिन पापा लॉन में घूम रहे थे कि अचानक उन्हें अनिल की आवाज सुनाई दी।
नीलू,पापा यहाँ पर कब तक रहेंगे।
ऐसा क्यों पूछ रहे हैं आप। वहाँ पर उनका है ही कौन‌ और उनकी तबीयत भी ठीक नहीं है।
अरे तुम समझ नहीं रही हो,हमें तो अपने घर में ही अजीब-सा महसूस होने लगा है।
हमें किसे ? अच्छा मम्मी-पापा जी ने कहा आपसे।अब तुम जो भी समझो। अरे वहाँ पर उनकी अच्छी व्यवस्था कर सकती हो।
पापा और नहीं सुन सके। कांपते हुए कदमों से वापस आ ग‌ए। अगले दिन जाने की तैयारी करने लगे।
नीलू बोली-पापा ऐसे कैसे जाएंगे आप !
पापा उसे ‌डांटने लगे-नीलू मेरी फिजूल में चिंता मत करो,अपने पति और सास-ससुर का ध्यान रखो बेटा। मैं अपना ख्याल खुद रख सकता हूँ। नीलू बेटा बहुत दिन हो गए,अब जाना चाहिेए।
मैं अनिल से बात करती हूँ। अभी आपकी तबियत ठीक नहीं है। जब आप ठीक हो जाएंगे तो मैं आपको खुद छोड़ आऊंगी।
नहीं नीलू,देखो मैं तुमसे नाराज हो जाऊंगा।
नीलू नाश्ता बनाने लगी। सोच रही थी कि पापा को किसी ने कुछ तो कहा है। नाश्ता करने के बाद उसने कहा-आज पापा जा रहे हैं। वह अपने सास, ससुर और अनिल का चेहरा देख रही थी कि उनके चेहरे पर चमक आ गई थी। तभी उसने कहा कि मैंने एक फैसला किया है कि पापा इतनी बड़ी कोठी में अकेले कैसे रहेंगे। सोच रही हूँ कि गरीब बच्चों के लिए उसमें एक छोटा-सा विद्यालय खोल दिया जाए। पापा और मैं मिल कर एक ट्रस्ट बनाएंगे, ताकि पापा के बाद भी विद्यालय चलता रहे।
और पापा आपकी वो जमीन पडी़ है,उसे बेच देते हैं,२ करोड़ की कीमत है उसकी। उसे ट्रस्ट के फंड में जमा कर देंगे,उसके ब्याज से उन गरीब बच्चों की फीस में मदद करेंगे,जो कुछ करना चाहते हैं उसमें योगदान देंगे। बाकी आपकी पेंशन और फंड आपके लिए बहुत है। पापा मैं आज से ही इस पर काम शुरू करती हूँ। पापा हतप्रभ हो कर उसे देख रहे थे।
अनिल की आँखों के सामने तो अंधेरा छा गया। उसके मम्मी-पापा का मुँह खुला का खुला रह गया। मन ही मन हिसाब करने लगा,५ करोड़ की कोठी,२ करोड़ की जमीन और फंड, इतना बड़ा नुकसान। जब‌ नीलू पापा को छोड़कर लौटी,तो अनिल उसका इंतजार कर रहा था। ये सब क्या बकवास कर रही थी तुम।
नीलू मुस्कराई और बोली,ये बकवास नहीं सच है। ऐसा मैं इसलिए करूंगी कि किसी को भी मेरे पिता की मौत का इंतजार न रहे।
पापा ने मेरी शादी पर ऐसी कौन-सी चीज है जो नहीं दी।
अनिल गुस्से से बोला,ये तो उनका फर्ज था।
फर्ज सिर्फ लड़की के बाप का होता है,क्योंकि उसने लड़की पैदा करने की गलती की है। मैं अपने पापा की इकलौती बेटी हूँ,तो क्या मेरा फर्ज नहीं था उनकी देखभाल करने का,वो भी ऐसे वक्त में जब उनकी तबीयत ठीक नहीं है और उन्हें सहारे की जरूरत है। माफी चाहती हूँ कि उनके कुछ दिन यहाँ रहने से सबको तकलीफ हुई। मैंने कभी तुम्हें तुम्हारे फर्ज निभाने से नहीं रोका। अपने सास-ससुर की सेवा में भी कोई कमी नहीं रखी। तुम मुझे मेरे पिता के प्रति मेरा फर्ज निभाने से नहीं रोक सकते। उसकी आवाज में दृढ़ता थी। अनिल खामोश हो कर उसे देख रहा था।

परिचय–गोपाल मोहन मिश्र की जन्म तारीख २८ जुलाई १९५५ व जन्म स्थान मुजफ्फरपुर (बिहार)है। वर्तमान में आप लहेरिया सराय (दरभंगा,बिहार)में निवासरत हैं,जबकि स्थाई पता-ग्राम सोती सलेमपुर(जिला समस्तीपुर-बिहार)है। हिंदी,मैथिली तथा अंग्रेजी भाषा का ज्ञान रखने वाले बिहारवासी श्री मिश्र की पूर्ण शिक्षा स्नातकोत्तर है। कार्यक्षेत्र में सेवानिवृत्त(बैंक प्रबंधक)हैं। आपकी लेखन विधा-कहानी, लघुकथा,लेख एवं कविता है। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में रचनाएं प्रकाशित हुई हैं। ब्लॉग पर भी भावनाएँ व्यक्त करने वाले श्री मिश्र की लेखनी का उद्देश्य-साहित्य सेवा है। इनके लिए पसंदीदा हिन्दी लेखक- फणीश्वरनाथ ‘रेणु’,रामधारी सिंह ‘दिनकर’, गोपाल दास ‘नीरज’, हरिवंश राय बच्चन एवं प्रेरणापुंज-फणीश्वर नाथ ‘रेणु’ हैं। देश और हिंदी भाषा के प्रति आपके विचार-“भारत प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के शानदार नेतृत्व में बहुमुखी विकास और दुनियाभर में पहचान बना रहा है I हिंदी,हिंदू,हिंदुस्तान की प्रबल धारा बह रही हैI”

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