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फूलों की महक निराली

कमलेश वर्मा ‘कोमल’
अलवर (राजस्थान)
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नन्हे फूलों की फुलवारी,
महक रही है डाली-डाली
खिले बाग में सुमन निराले,
कितने सुंदर, कितने प्यारे।

महक उठा है उपवन सारा,
हुआ गुलसितां महका न्यारा
फूलों से लद गई हर डाली,
पुष्प बन गई कलियाँ सारी।

गेंदे की महक है निराली,
माला बनती है मतवाली
रंग-बिरंगे फूल निराले,
कितने सुंदर, कितने प्यारे।

जब फूलों से माला बनती,
हर घर में सौगातें सजती
भगवन के चरणों में चढ़ते,
शीश-जटा पर अर्पित होते।

मनभावन हैं पुष्प निराले,
मनमोहक हैं कितने प्यारे
हर आँगन में महका करते,
सभी फूल मनमोहक लगते।

खिलकर महकाते हैं सबको,
बताते हैं जीवन के सच को।
नन्ही कलियाँ जब खिलती हैं,
वह सबको प्यारी लगती हैं॥

परिचय –कमलेश वर्मा लेखन जगत में उपनाम ‘कोमल’ से पहचान रखती हैं। ७ जुलाई १९८१ को दुनिया में आई रामगढ़ (अलवर) वासी कोमल का वर्तमान और स्थाई बसेरा जिला अलवर (राजस्थान) में ही है। आपको हिन्दी, संस्कृत व अंग्रेजी भाषा का ज्ञान है। एम.ए. व बी.एड. तक शिक्षित कमलेश वर्मा ‘कोमल’ का कार्यक्षेत्र व्याख्याता (निजी संस्था) का है। इनकी लेखन विधा-गीत व कविता है। इनकी रचनाएं पत्र-पत्रिका में प्रकाशित हुई हैं तो ब्लॉग पर भी लेखन जारी है। आपकी लेखनी का उद्देश्य-“कविता के माध्यम से विचार प्रकट करना एवं लोगों को जागरूक करना है।” पसंदीदा हिन्दी लेखक-मुंशी प्रेमचंद, महादेवी वर्मा, एवं जय शंकर प्रसाद हैं तो विशेषज्ञता- पद्य में है। बात की जाए जीवन लक्ष्य की तो भारतीय समाज में सम्मान प्राप्त करना है। देश और हिंदी भाषा के प्रति विचार -“राष्ट्र एक व्यक्ति के जीवन में महत्वपूर्ण स्थान रखता है। व्यक्ति के व्यक्तित्व का विकास राष्ट्र पर निर्भर करता है। हिंदी हमारी राष्ट्र और मातृत्व भाषा है, जो सरल तरीके से समझी और बोली भी जा सकती है। इसलिए इसे बढ़ाया ही जाना चाहिए।”