पटना (बिहार)।
हिंदी साहित्य जगत में लघुकथा आज इतनी लोकप्रिय विधा हो गई है कि, हर कवि कथाकार चाहता है कि हम एक लघुकथा लिख लें। सामान्यतः लोग लघुकथा लिखने के प्रयास में, या तो छोटी कहानी लिख डालते हैं, या फिर कहानी की कथावस्तु। ईमानदार लेखक को इन स्थितियों से बचने का पूरा प्रयास करना चाहिए। लकीर का फकीर नहीं होना चाहिए। बस आकार में जो रचना छोटी है, वह लघुकथा नहीं है।
भारतीय युवा साहित्यकार परिषद के तत्वावधान में आभासी रुप में लघुकथा पाठशाला का संचालन करते हुए संयोजक सिद्धेश्वर ने यह उद्गार व्यक्त किए। एक लघुकथा को उदाहरण के रूप में प्रस्तुत करते हुए सिद्धेश्वर ने कहा कि, समकालीन लघुकथा की बारीकी को समझना जरूरी है। आज २१वीं शताब्दी में लघुकथा ने कई गलत मानक को दरकिनार कर दिया है। इसलिए, लघुकथाओं पर पुरानी बहस करने के बजाय अच्छी-अच्छी लघुकथाओं को चुनकर उसे पाठकों के सामने लाने का प्रयास करना चाहिए। दैनिक जीवन में घटने वाली साधारण घटनाओं को भी, इस तरह की ताना-बाना में बुनकर लघुकथा का आकार देनी चाहिए कि पाठक विस्मृत और स्तब्ध रह जाए।
पाठशाला में आपने सपना चंद्रा द्वारा पढ़ी गई लघुकथा पर टिप्पणी दी। इनके अतिरिक्त अपूर्व कुमार, पुष्प रंजन, ऋचा वर्मा, संतोष मालवीय आदि ने भी उपस्थिति दर्ज कराई और चर्चा में भाग लिया।