कुल पृष्ठ दर्शन : 805

You are currently viewing ब्रिटेन:ऋषि सुनक के लिए चुनौतियाँ

ब्रिटेन:ऋषि सुनक के लिए चुनौतियाँ

ललित गर्ग
दिल्ली
**************************************

भारतीय मूल के ऋषि सुनक नया इतिहास रचते हुए ब्रिटेन के नए प्रधानमंत्री की शपथ ले चुके हैं। यह पहली बार हुआ है, जब कोई भारतीय मूल का व्यक्ति ब्रिटेन का प्रधानमंत्री बना है। हालांकि, इससे ब्रिटेन पर छाए राजनीतिक और आर्थिक संकट के बादल कितने कम होंगे, यह भविष्य के गर्भ में है लेकिन सुनक के बहाने यदि ब्रिटेन आर्थिक संकट से उबरने में सक्षम हो सका तो यह न केवल सुनक के लिए, बल्कि भारत के लिए गर्व का विषय होगा। भले ही सुनक के सामने कई मुश्किल चुनौतियाँ और सवाल हैं, लेकिन उन्हें एक सूरज बनकर उन जटिल हालातों से ब्रिटेन को बाहर निकालना है।
भारत में सुनक की जीत पर काफी खुशी मनाई जा रही है, यह दीपावली का विलक्षण एवं सुखद तोहफा इसलिए है कि भारत पर दो सौ वर्षों तक राज करने वाले ब्रिटेन पर अब भारतवंशी का राज होगा। सुनक के रूप में उस ब्रिटेन को भारतीय मूल का पहला प्रधानमंत्री मिलने से निश्चित ही भारत का गौरव दुनिया में बढ़ा है। ४२ साल के सुनक आधुनिक दौर में ब्रिटेन के सबसे कम उम्र के प्रधानमंत्री हैं। सुनक का ब्रिटेन का प्रधानमंत्री बनना इस मायने में भी बेहद अहम बात है कि ब्रिटेन में भारतीय मूल के लोग अल्पसंख्यक हैं। इसके बावजूद सुनक को ब्रिटेन में प्रधानमंत्री बनने का मौका मिल गया है। एक और खास बात यह है कि सुनक को ऐसी पार्टी ने अपना नेता चुना है, जो रूढ़िवादी विचारों के लिए जानी जाती है। दुनिया में बढ़ रही कट्टरता और अल्पसंख्यकों को निशाना बनाए जाने की बढ़ती हरकतों के बीच ब्रिटेन और कंजर्वेटिव पार्टी ने जो फैसला किया है, वह दुनिया को एक नई राह दिखाएगा, यह उम्मीद की जानी चाहिए। यह दुनिया की बदलती सोच का भी परिचायक है, वहीं दुनिया में भारत की सर्व-स्वीकार्यता का भी द्योतक है।
ब्रिटेन गहरे आर्थिक संकट की ओर बढ़ता दिख रहा है। महंगाई ४० साल के उच्चतम स्तर पर है। ऋषि सुनक इससे पहले बोरिस जॉनसन सरकार में वित्त मंत्री रह चुके हैं। उनके मंत्री रहते ब्रिटेन में महंगाई उच्चतम स्तर पर पहुंच गई थी। तब मंत्रिमंडल से इस्तीफा देते हुए सुनक ने लिखा था कि कम कर रेट और ऊंची वृद्धि दर वाली अर्थव्यस्था तभी बनाई जा सकती है, जब ‘हम कड़ी मेहनत करने, कुर्बानियाँ देने और कड़े फैसले करने को तैयार हों। मेरा मानना है कि, जनता सच सुनने को तैयार है। आम-जनता को यह बताया जाना चाहिए कि बेहतरी का रास्ता है, लेकिन यह आसान नहीं है।‘ सुनक ने तब जिस कड़ी मेहनत की बात की थी, वह अब उन्हें खुद करके दिखानी होगी। उनके पास राजनीतिक कड़वे अनुभव हैं, उनसे यदि वे अर्थ-व्यवस्था को उबार सके तो यह समूची दुनिया के लिए एक रोशनी होगी।
निश्चित ही सुनक ने काँटों भरा ताज पहना है। ब्रिटेन की आर्थिक स्थिति बेहद चुनौतीपूर्ण है। इन असाधारण चुनौतियों से पार पाना सुनक की सबसे बड़ी अग्नि-परीक्षा है। ब्रिटेन की अर्थव्यवस्था के आपूर्ति पक्ष में कमजोरी अब एक तत्काल चिंता का विषय है, जबकि उत्पादन इसकी पूर्व-कोविड प्रवृत्ति से २.६ प्रतिशत से कम है। ऐसे में सकल घरेलू उत्पाद को अतिरिक्त १.४ प्रतिशत की दर से बढ़ाना होगा। अर्थव्यवस्था के सामने व्यापार की शर्तें भी बड़ी चुनौती है। आने वाले दिनों में इससे घरेलू और कॉर्पाेरेट दोनों क्षेत्रों पर असर पड़ेगा। आर्थिक रूप से कमजोर लोग इससे और परेशान हो सकते हैं। भविष्य में बढ़ने वाली बेरोजगारी पर काबू पाना एवं बढ़ती महंगाई को नियंत्रित करना भी आसान नहीं है। अध्ययन के मुताबिक २०२३ तक महंगाई उच्च स्तर पर पहुंच सकती है, जिससे निपटना चुनौतीपूर्ण होगा। एक तरफ खुदरा महंगाई दर दोहरे अंकों में होने से जीवनयापन का संकट है, दूसरी ओर रुकी हुई आर्थिक वृद्धि की समस्या है।
इन आर्थिक चुनौतियों के साथ-साथ ऋषि सुनक के सामने सबसे पहली राजनीतिक चुनौती तो यही है कि उन्हें साबित करना है कि वह दल को नियंत्रित कर सकते हैं।
लोग स्वास्थ्य और रक्षा जैसे क्षेत्रों के खर्च में कटौती का भी विरोध कर सकते हैं। सुनक को ऐसे स्वरों को भी संभालना होगा, संतुलित राजनीति का नया अध्याय लिखते हुए ब्रिटेन पर छाए निराशा के बादल को छांटना होगा। गहन समस्याओं एवं निराशाओं के बीच प्रधानमंत्री का ताज धारण करके सुनक ने साहस एवं हौंसलों का परिचय दिया है। एक कर्मयोद्धा की भांति इन सब समस्याओं को सुलझाने के लिए अभिनव उपक्रम करने होंगे।
ऋषि सुनक स्वयं को भारतीय एवं हिंदू कहकर गर्व महसूस करते हैं।
राजनीति में कदम रखने से पहले वित्त के क्षेत्र में सुनक का एक सफल भविष्य रहा है।
पिछले कुछ वर्षों में ब्रिटिश राजनीति आप्रवासन और महंगाई जैसे मुद्दों पर अनिर्णय की स्थिति में रही है, जिसके चलते देश की अर्थव्यवस्था कमजोर और राजनीतिक अस्थिरता बढ़ी है।
वैश्विक सहयोग और विविधता को स्वीकार न कर पाने के चलते उदारवादी लोकतंत्र, ब्रिटेन गहरे संकट में फंसता दिखाई दे रहा है। कंजर्वेटिव पार्टी की वैश्विक बदलावों के साथ सामंजस्य बिठा पाने में नाकामी देश में राजनीतिक अस्थिरता के रूप में सामने आई और मंदी से परेशान ब्रिटिश जनता देश में मध्यावधि चुनाव भी नहीं चाहती, लेकिन सत्तारूढ़ कंजर्वेटिव पार्टी के अंतर्द्वंद्व से देश की समस्याओं में इजाफा ही हो रहा है। इन समस्याओं के बीच सुनक एक रोशनी के रूप में उभरे हैं। देखना है कि उनका शासन-काल ब्रिटेन को नई शक्ति, नया वातायन दे पाता है या नहीं ?


Leave a Reply