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भारत में गरीबी-अमीरी की खाई

डॉ.वेदप्रताप वैदिक
गुड़गांव (दिल्ली) 
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आजकल हम भारतीय लोग इस बात से बहुत खुश होते रहते हैं कि, भारत शीघ्र ही दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने जा रहा है, लेकिन दुनिया के इस तीसरे सबसे बड़े मालदार देश की असली हालत क्या है ? इस देश में गरीबी भी उतनी ही तेजी से बढ़ती जा रही है, जितनी तेजी से अमीरी बढ़ रही है। अमीर होने वालों की संख्या सिर्फ सैकड़ों में होती है, लेकिन गरीब होनेवालों की संख्या करोड़ों में होती है। ऑक्सफाॅम के ताज़ा आँकड़ों के मुताबिक पिछले २ साल में सिर्फ ६४ अरबपति बढ़े हैं। सिर्फ १०० भारतीय अरबपतियों की संपत्ति ५४.१२ लाख करोड़ रु. है याने उनके पास इतना पैसा है कि वह भारत सरकार के डेढ़ साल के बजट से भी ज्यादा है। सारे अरबपतियों की संपत्ति पर मुश्किल से २ प्रतिशत कर लगता है। इस पैसे से देश के सारे भूखे लोगों को अगले ३ साल तक भोजन करवाया जा सकता है। यदि इन मालदारों पर थोड़ा ज्यादा कर लगाया जाए और उपभोक्ता वस्तुओं का कर घटा दिया जाए तो सबसे ज्यादा फायदा देश के गरीब लोगों को ही होगा। अभी तो देश में जितनी भी संपदा पैदा होती है, उसका ४० प्रतिशत सिर्फ १ प्रतिशत लोग हजम कर जाते हैं जबकि ५० प्रतिशत लोगों को उसका ३ प्रतिशत हिस्सा ही हाथ लगता है। अमीर लोग अपने घरों में ४-४ कारें रखते हैं और गरीबों को खाने के लिए चार रोटी भी ठीक से नसीब नहीं होती। ये जो ५० प्रतिशत लोग हैं, इनसे सरकार जीएसटी का कुल ६४ प्रतिशत पैसा वसूलती है, जबकि देश के १० प्रतिशत सबसे मालदार लोग सिर्फ ३ प्रतिशत कर देते हैं। इन १० प्रतिशत लोगों के मुकाबले निचले ५० प्रतिशत लोग ६ गुना कर भरते हैं। गरीब और मध्यम वर्ग के लोगों को अपनी रोजमर्रा के जरूरी चीजों को खरीदने पर बहुत ज्यादा टैक्स भरना पड़ता है, क्योंकि वह बताए बिना ही चुपचाप काट लिया जाता है। इसी का नतीजा है कि देश के ७० करोड़ लोगों की कुल संपत्ति देश के सिर्फ २१ अरबपतियों से भी कम है। साल भर में उनकी संपत्तियों में १२१ प्रतिशत का इजाफा हुआ है। अब जो नया बजट आने वाला है, शायद सरकार इन ताजा आँकड़ों पर ध्यान देगी और भारत की कर-व्यवस्था में जरुर कुछ सुधार करेगी। देश कितना ही मालदार हो जाए, लेकिन यदि उसमें गरीबी और अमीरी की खाई बढ़ती गई तो वह संपन्नता किसी भी दिन हमारे लोकतंत्र को परलोक तंत्र में बदल सकती है। यह हमने पिछली २ सदियों में फ्रांस, रूस और चीन में होते हुए देखा है।

परिचय– डाॅ.वेदप्रताप वैदिक की गणना उन राष्ट्रीय अग्रदूतों में होती है,जिन्होंने हिंदी को मौलिक चिंतन की भाषा बनाया और भारतीय भाषाओं को उनका उचित स्थान दिलवाने के लिए सतत संघर्ष और त्याग किया। पत्रकारिता सहित राजनीतिक चिंतन, अंतरराष्ट्रीय राजनीति और हिंदी के लिए अपूर्व संघर्ष आदि अनेक क्षेत्रों में एकसाथ मूर्धन्यता प्रदर्शित करने वाले डाॅ.वैदिक का जन्म ३० दिसम्बर १९४४ को इंदौर में हुआ। आप रुसी, फारसी, जर्मन और संस्कृत भाषा के जानकार हैं। अपनी पीएच.डी. के शोध कार्य के दौरान कई विदेशी विश्वविद्यालयों में अध्ययन और शोध किया। अंतर्राष्ट्रीय राजनीति में पीएच.डी. की उपाधि प्राप्त करके आप भारत के ऐसे पहले विद्वान हैं, जिन्होंने अंतरराष्ट्रीय राजनीति का शोध-ग्रंथ हिन्दी में लिखा है। इस पर उनका निष्कासन हुआ तो डाॅ. राममनोहर लोहिया,मधु लिमये,आचार्य कृपालानी,इंदिरा गांधी,गुरू गोलवलकर,दीनदयाल उपाध्याय, अटल बिहारी वाजपेयी सहित डाॅ. हरिवंशराय बच्चन जैसे कई नामी लोगों ने आपका डटकर समर्थन किया। सभी दलों के समर्थन से तब पहली बार उच्च शोध के लिए भारतीय भाषाओं के द्वार खुले। श्री वैदिक ने अपनी पहली जेल-यात्रा सिर्फ १३ वर्ष की आयु में हिंदी सत्याग्रही के तौर पर १९५७ में पटियाला जेल में की। कई भारतीय और विदेशी प्रधानमंत्रियों के व्यक्तिगत मित्र और अनौपचारिक सलाहकार डॉ.वैदिक लगभग ८० देशों की कूटनीतिक और अकादमिक यात्राएं कर चुके हैं। बड़ी उपलब्धि यह भी है कि १९९९ में संयुक्त राष्ट्र संघ में भारत का प्रतिनिधित्व किया है। आप पिछले ६० वर्ष में हजारों लेख लिख और भाषण दे चुके हैं। लगभग १० वर्ष तक समाचार समिति के संस्थापक-संपादक और उसके पहले अखबार के संपादक भी रहे हैं। फिलहाल दिल्ली तथा प्रदेशों और विदेशों के लगभग २०० समाचार पत्रों में भारतीय राजनीति और अंतरराष्ट्रीय राजनीति पर आपके लेख निरन्तर प्रकाशित होते हैं। आपको छात्र-काल में वक्तृत्व के अनेक अखिल भारतीय पुरस्कार मिले हैं तो भारतीय और विदेशी विश्वविद्यालयों में विशेष व्याख्यान दिए एवं अनेक अन्तरराष्ट्रीय सम्मेलनों में भारत का प्रतिनिधित्व किया है। आपकी प्रमुख पुस्तकें- ‘अफगानिस्तान में सोवियत-अमेरिकी प्रतिस्पर्धा’, ‘अंग्रेजी हटाओ:क्यों और कैसे ?’, ‘हिन्दी पत्रकारिता-विविध आयाम’,‘भारतीय विदेश नीतिः नए दिशा संकेत’,‘एथनिक क्राइसिस इन श्रीलंका:इंडियाज आॅप्शन्स’,‘हिन्दी का संपूर्ण समाचार-पत्र कैसा हो ?’ और ‘वर्तमान भारत’ आदि हैं। आप अनेक राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कारों और सम्मानों से विभूषित हैं,जिसमें विश्व हिन्दी सम्मान (२००३),महात्मा गांधी सम्मान (२००८),दिनकर शिखर सम्मान,पुरुषोत्तम टंडन स्वर्ण पदक, गोविंद वल्लभ पंत पुरस्कार,हिन्दी अकादमी सम्मान सहित लोहिया सम्मान आदि हैं। गतिविधि के तहत डॉ.वैदिक अनेक न्यास, संस्थाओं और संगठनों में सक्रिय हैं तो भारतीय भाषा सम्मेलन एवं भारतीय विदेश नीति परिषद से भी जुड़े हुए हैं। पेशे से आपकी वृत्ति-सम्पादकीय निदेशक (भारतीय भाषाओं का महापोर्टल) तथा लगभग दर्जनभर प्रमुख अखबारों के लिए नियमित स्तंभ-लेखन की है। आपकी शिक्षा बी.ए.,एम.ए. (राजनीति शास्त्र),संस्कृत (सातवलेकर परीक्षा), रूसी और फारसी भाषा है। पिछले ३० वर्षों में अनेक भारतीय एवं विदेशी विश्वविद्यालयों में अन्तरराष्ट्रीय राजनीति एवं पत्रकारिता पर अध्यापन कार्यक्रम चलाते रहे हैं। भारत सरकार की अनेक सलाहकार समितियों के सदस्य,अंतरराष्ट्रीय राजनीति के विशेषज्ञ और हिंदी को विश्व भाषा के रूप में प्रतिष्ठित करने के लिए कृतसंकल्पित डॉ.वैदिक का निवास दिल्ली स्थित गुड़गांव में है।

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