डॉ.मधु आंधीवाल
अलीगढ़(उत्तर प्रदेश)
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दीपावली पर्व स्पर्धा विशेष ……

बुजुर्ग दया बहुत गरीब थी। अकेली रहती थी, बस मिट्टी से घड़े,दीपक आदि बना कर कैसे भी गुजर-बसर करती थी। पिछले साल ‘कोरोना’ की आपदा क्या आई,पड़ोस में रहने वाली विधवा शीला ३ बच्चों को छोड़ कर ‘कोरोना’ के गाल में समा गई। तीनों बच्चे अनाथ हो गए। कोरोना का भय इतना था कि,उन बच्चों को किसी ने नहीं अपनाया। बच्चे बहुत छोटे थे,बस बड़ी बहन लाली थोड़ी समझदार थी। वह अपने दोनों भाईयों को संभाल रही थी। धीरे-धीरे घर की रसोई के डिब्बे खाली होने लगे। दया अपना दु:ख भूल गई और तीनों बच्चों को अपने दुलार भरे आँचल में समेट लाई। बच्चे दया को दादी कहते थे। दया किसी भी तरह बच्चों के लिए दो रोटी की जुगाड़ कर पाती थी। लाली ने दया से कहा,-दादी मैं आपके साथ चाक पर दीए बनाऊंगी।
दया ने उसे चाक चलाना सिखा दिया। धीरे-धीरे कोरोना का कहर भी थमने लगा। दीपावली का त्यौहार नजदीक आने लगा तो,लाली दिन-रात दया दादी के साथ मेहनत करती। दोनों छोटे भाई उन दीयों में रंग भरते। त्यौहार से २ दिन पहले फुटपाथ पर दादी और तीनों बच्चे अपने दीए सजा कर बैठे थे। रंगीन दीए अपनी अलग छटा बिखेर रहे थे, सबसे अलग। उसी समय शहर की जिलाधिकारी मृगया जी की गाड़ी वहाँ से निकली। उन्होंने तुरन्त गाड़ी रुकवाई और उतर कर वहाँ पहुँची। जब इतनी बुजुर्ग महिला और तीन छोटे बच्चों को ऐसे देखा तो उनको बहुत दु:ख हुआ और उन्होंने पूरे दीपक गाड़ी में रखवाए।
तब लाली ने कहा-धन्यवाद मैडम। आज आपने हमारी दीपावली पर बहुत अच्छा उपहार दिया। हम तो अनाथ हो गए थे,दया दादी नहीं होती तो हमें कोई सहारा नहीं देता।
मृगया जी ने कहा,-आज से तुम अनाथ नहीं हो। तुम सबकी शिक्षा का जिम्मा मेरा है। अब दया दादी को भी कोई काम नहीं करना पड़ेगा। दया दादी तीनों को चिपटा कर रोने लगी और मैडम को दुआ देने लगी।