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ममता सरकार की दुर्दशा

डॉ.वेदप्रताप वैदिक
गुड़गांव (दिल्ली) 
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प. बंगाल में तृणमूल कांग्रेस की सरकार भयंकर दुर्गति को प्राप्त हो गई है। कोई कल्पना भी नहीं कर सकता था कि, ममता बैनर्जी की सरकार इतने बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार कर सकती है। ममता के राज में लगता था कि ममता के डर के मारे अब वे कोई गलत-सलत काम नहीं कर पा रहे होंगे, लेकिन उनके उद्योग और व्यापार मंत्री पार्थ चटर्जी को पहले तो जांच निदेशालय ने गिरफ्तार किया और फिर उनके निजी सहायकों, मित्रों और रिश्तेदारों के घरों से जो नकद करोड़ों रु. की राशियां पकड़ी गई हैं, उन्हें टी.वी. चैनलों पर देखकर दंग रह जाना पड़ता है। एक सप्ताह में जो भी नकदी, सोना, गहने आदि छापे में मिले हैं, उनकी कीमत १०० करोड़ रु. से भी ज्यादा का ही अनुमान है। यदि जांच निदेशालय के चंगुल में उनके कुछ अन्य मंत्री भी फंस गए तो यह राशि कई अरब तक भी पहुंच सकती है। बंगाल के मारवाड़ी व्यवसायियों का खून चूसने में ममता सरकार ने कोई कसर नहीं छोड़ी है। उन्हें ममता बैनर्जी का उप-मुख्यमंत्री माना जाता है। इस हैसियत में ममता का सारा लेन-देन वही करते रहे हों तो कोई आश्चर्य नहीं है। उन्हें बंगाल के लोग पार्टी की नाक मानते रहे हैं। तृणमूल के नेता भाजपा सरकार पर प्रतिशोध का आरोप लगाते रहे। अब जबकि सारे देश में ममता सरकार की बदनामी होने लगी, तो कुछ होश आया और पार्थ चटर्जी को मंत्रिपद तथा पार्टी की सदस्यता से बर्खास्त किया गया है। यह बर्खास्तगी नहीं, सिर्फ मुअत्तिली है। यह मामला सिर्फ तृणमूल कांग्रेस के भ्रष्टाचार का ही नहीं है। देश की कोई भी पार्टी और कोई भी नेता यह दावा नहीं कर सकता कि वे भ्रष्टाचार-मुक्त हैं। भ्रष्टाचार के बिना याने नैतिकता और कानून का उल्लंघन किए बिना कोई भी व्यक्ति मतों की राजनीति कर ही नहीं सकता। रूपयों का पहाड़ लगाए बिना आप चुनाव कैसे लड़ेंगे ? अपने निर्वाचन-क्षेत्र के ५ लाख से २० लाख तक के मतदाताओं को हर उम्मीदवार कैसे पटाएगा ? नोट से मत और मत से नोट कमाना ही अपनी राजनीति का मूल मंत्र है। इसीलिए हमारे कई मुख्यमंत्री तक जेल की हवा खा चुके हैं। नोट और मत की राजनीति विचारधारा और चरित्र की राजनीति पर हावी हो गई है। यदि हम भारतीय लोकतंत्र को स्वच्छ बनाना चाहते हैं तो राजनीति में या तो आचार्य चाणक्य या प्लेटो के ‘दार्शनिक नेता’ जैसे लोगों को ही प्रवेश दिया जाना चाहिए। वरना आप जिस नेता पर भी छापा डालेंगे, वह आपको कीचड़ में सना हुआ मिलेगा।

परिचय– डाॅ.वेदप्रताप वैदिक की गणना उन राष्ट्रीय अग्रदूतों में होती है,जिन्होंने हिंदी को मौलिक चिंतन की भाषा बनाया और भारतीय भाषाओं को उनका उचित स्थान दिलवाने के लिए सतत संघर्ष और त्याग किया। पत्रकारिता सहित राजनीतिक चिंतन, अंतरराष्ट्रीय राजनीति और हिंदी के लिए अपूर्व संघर्ष आदि अनेक क्षेत्रों में एकसाथ मूर्धन्यता प्रदर्शित करने वाले डाॅ.वैदिक का जन्म ३० दिसम्बर १९४४ को इंदौर में हुआ। आप रुसी, फारसी, जर्मन और संस्कृत भाषा के जानकार हैं। अपनी पीएच.डी. के शोध कार्य के दौरान कई विदेशी विश्वविद्यालयों में अध्ययन और शोध किया। अंतर्राष्ट्रीय राजनीति में पीएच.डी. की उपाधि प्राप्त करके आप भारत के ऐसे पहले विद्वान हैं, जिन्होंने अंतरराष्ट्रीय राजनीति का शोध-ग्रंथ हिन्दी में लिखा है। इस पर उनका निष्कासन हुआ तो डाॅ. राममनोहर लोहिया,मधु लिमये,आचार्य कृपालानी,इंदिरा गांधी,गुरू गोलवलकर,दीनदयाल उपाध्याय, अटल बिहारी वाजपेयी सहित डाॅ. हरिवंशराय बच्चन जैसे कई नामी लोगों ने आपका डटकर समर्थन किया। सभी दलों के समर्थन से तब पहली बार उच्च शोध के लिए भारतीय भाषाओं के द्वार खुले। श्री वैदिक ने अपनी पहली जेल-यात्रा सिर्फ १३ वर्ष की आयु में हिंदी सत्याग्रही के तौर पर १९५७ में पटियाला जेल में की। कई भारतीय और विदेशी प्रधानमंत्रियों के व्यक्तिगत मित्र और अनौपचारिक सलाहकार डॉ.वैदिक लगभग ८० देशों की कूटनीतिक और अकादमिक यात्राएं कर चुके हैं। बड़ी उपलब्धि यह भी है कि १९९९ में संयुक्त राष्ट्र संघ में भारत का प्रतिनिधित्व किया है। आप पिछले ६० वर्ष में हजारों लेख लिख और भाषण दे चुके हैं। लगभग १० वर्ष तक समाचार समिति के संस्थापक-संपादक और उसके पहले अखबार के संपादक भी रहे हैं। फिलहाल दिल्ली तथा प्रदेशों और विदेशों के लगभग २०० समाचार पत्रों में भारतीय राजनीति और अंतरराष्ट्रीय राजनीति पर आपके लेख निरन्तर प्रकाशित होते हैं। आपको छात्र-काल में वक्तृत्व के अनेक अखिल भारतीय पुरस्कार मिले हैं तो भारतीय और विदेशी विश्वविद्यालयों में विशेष व्याख्यान दिए एवं अनेक अन्तरराष्ट्रीय सम्मेलनों में भारत का प्रतिनिधित्व किया है। आपकी प्रमुख पुस्तकें- ‘अफगानिस्तान में सोवियत-अमेरिकी प्रतिस्पर्धा’, ‘अंग्रेजी हटाओ:क्यों और कैसे ?’, ‘हिन्दी पत्रकारिता-विविध आयाम’,‘भारतीय विदेश नीतिः नए दिशा संकेत’,‘एथनिक क्राइसिस इन श्रीलंका:इंडियाज आॅप्शन्स’,‘हिन्दी का संपूर्ण समाचार-पत्र कैसा हो ?’ और ‘वर्तमान भारत’ आदि हैं। आप अनेक राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कारों और सम्मानों से विभूषित हैं,जिसमें विश्व हिन्दी सम्मान (२००३),महात्मा गांधी सम्मान (२००८),दिनकर शिखर सम्मान,पुरुषोत्तम टंडन स्वर्ण पदक, गोविंद वल्लभ पंत पुरस्कार,हिन्दी अकादमी सम्मान सहित लोहिया सम्मान आदि हैं। गतिविधि के तहत डॉ.वैदिक अनेक न्यास, संस्थाओं और संगठनों में सक्रिय हैं तो भारतीय भाषा सम्मेलन एवं भारतीय विदेश नीति परिषद से भी जुड़े हुए हैं। पेशे से आपकी वृत्ति-सम्पादकीय निदेशक (भारतीय भाषाओं का महापोर्टल) तथा लगभग दर्जनभर प्रमुख अखबारों के लिए नियमित स्तंभ-लेखन की है। आपकी शिक्षा बी.ए.,एम.ए. (राजनीति शास्त्र),संस्कृत (सातवलेकर परीक्षा), रूसी और फारसी भाषा है। पिछले ३० वर्षों में अनेक भारतीय एवं विदेशी विश्वविद्यालयों में अन्तरराष्ट्रीय राजनीति एवं पत्रकारिता पर अध्यापन कार्यक्रम चलाते रहे हैं। भारत सरकार की अनेक सलाहकार समितियों के सदस्य,अंतरराष्ट्रीय राजनीति के विशेषज्ञ और हिंदी को विश्व भाषा के रूप में प्रतिष्ठित करने के लिए कृतसंकल्पित डॉ.वैदिक का निवास दिल्ली स्थित गुड़गांव में है।

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