संजीव एस. आहिरे
नाशिक (महाराष्ट्र)
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नाशिक से मुंबई जाना मेरे लिए किसी रोमांचक सफ़र से कम नहीं होता है। इसमें हर बार का मेरा अपना अलग-अलग रोमांचित कर देनेवाला अनुभव रहा है। सह्याद्री की मनोरम घाटियाँ, टेड़ी-मेड़ी नागिन-सी बल खाती सड़क और हर ऋतु में रोज बदलने वाला सह्याद्री का मौसम, सह्याद्री की रंग बदलती चोटियाँ और लता वानिताएं नित्य ही मुझ पर अपना असर छोड़ती आयी हैं. कुछ दिन पूर्व दफ्तर के काम से मेरा मुंबई जाना हुआ, तब मैंने महसूस किया कि अबकी बार सह्याद्री का अलग-थलग ही अंदाज है। बारिश का मौसम खत्म होकर ठंड की गुलाबी आहट लगने लगी है। बाजरा-मक्का की फसलें लगभग कट चुकी है। अब खेतों में केवल चावल (कमोद) की फसलें बची हैं। इन दिनों चावल-धान की फसलें परिपक्व हो चुकी है। धान की सारी काया स्वर्णिम हो चली है। धान के पके दानों के कारण बालियाँ झुक-सी गयी है।
रेल लगातार रफ़्तार पकड़ती हुई बढ़ती जा रही है और अब सह्याद्री घाटी के बोगदों में घुस-घुसकर रेल किसी नागिन-सी प्रतीत हो रही है। एक सिरे से बिल में घुसती और दूसरे सिरे से बिल से निकलती हुई वक्राकार तेज नागिन, साथ ही सह्याद्री के तन बदन पर लहराती, आँचल में परचम फहराती और तलहटी में समीर संग डोलती धान की पकी हुई पीली स्वर्णिम फसलें अब नजर आने लगी है। ओह ! ये धान की फसल है या स्वर्ण के ओटले ? कैसा मनमोहक रंग और कैसा अनवरत सौंदर्य है यह। स्वर्ण की लहराती फसलों के उस मदमाते सौंदर्य को मैं तो देखता ही रह गया। सरसराती पवन धान की बालियों से गुजरती हुई एक अलग ही सिहरन पैदा कर रही थी। ढोली पवन की धुन पर फसलों का वो नाच देखकर स्तब्ध रह गया। ट्रेन जैसे ही अगले मोड़ पर मुड़ी, पवन की लहरों में घुली धान की मदमाती सुगंध पूरी रेल में फैल गई। तन-बदन छूती उस मदमाती गंध से मैं तो नखशिखान्त रोमांचित हो गया। ओह! कितनी मनमोहक और मन को रिझानेवाली खुशबू है यह। धान की फसल की उस खुशबू से मन प्रसन्न हो गया। तन-बदन रोमांचित करती वह खुशबू मेरा अंतर्मन छू गई। धान की पक्व फसलों से उठती खुशबू की तरंगों से सह्याद्री का सारा आँचल महक उठा था।
मैंने महसूस किया कि फसलों से निकलती सुगंधी तरंगों ने हवा का कण-कण श्रृंगारित कर दिया है। मदमाती खुशबू की सुगंधी हवाओं ने ऊँची चोटियों से लेकर खाईयों तक संपूर्ण सह्याद्री को जैसे नहला दिया है। सह्याद्री की घाटियाँ और चोटियाँ उस अनाम खुशबू में डुबकर मस्त हुई जा रही हैं। मेरी अवस्था भी उन चोटियों- सी हो गई, जो सुगंध में सराबोर थी, आकंठ डुबी हुई थी। उस खुशबू की लहरों से मेरी तल्लीनता बढ़ती जा रही थी और मैं मन ही मन प्रकृति कि इस उदात्त लीला से सम्मोहित हो चुका था। उस लहराती, तन-बदन छूती लहरों की सुगंध जैसे मेरी रग-रग को छू रही थी और मैं डुबता ही जा रहा था। अचानक मेरी तंद्रा भंग हुई और मैंने पाया कि सह्याद्री को वह सुगंधी घाटी पार करके रेल मुंबई महानगरी की टोह लेने लगी है।
मन ही मन मैं प्रकृति के प्रति नतमस्तक हो गया। प्रकृति की उदात्तता, विशालता, विहंगमता महसूस कर भाव-विभोर हो गया। सह्याद्री की घाटी के धान की वह खुशबू आज भी जब-जब मुझे याद हो आती है, मैं उस सुरभित सुगंध में अपने-आपको डूबता पाता हूँ। वो स्वर्णिम सुगंध आज भी मेरा तन-बदन महका देती है। मैं रोमांच से भर जाता हूँ। जीवन के वो महकते पल जाने कितने दिनों तक मेरी साँसों को सुरभित करते रहेंगे, सुगंध से नहलाते रहेंगे। जीवन के बोझिल क्षणों में उन सुगंधी बयारों को याद कर आज भी स्वयं को तरोताजा कर लेता हूँ।
परिचय-संजीव शंकरराव आहिरे का जन्म १५ फरवरी (१९६७) को मांजरे तहसील (मालेगांव, जिला-नाशिक) में हुआ है। महाराष्ट्र राज्य के नाशिक के गोपाल नगर में आपका वर्तमान और स्थाई बसेरा है। हिंदी, मराठी, अंग्रेजी व अहिराणी भाषा जानते हुए एम.एस-सी. (रसायनशास्त्र) एवं एम.बी.ए. (मानव संसाधन) तक शिक्षित हैं। कार्यक्षेत्र में जनसंपर्क अधिकारी (नाशिक) होकर सामाजिक गतिविधि में सिद्धी विनायक मानव कल्याण मिशन में मार्गदर्शक, संस्कार भारती में सदस्य, कुटुंब प्रबोधन गतिविधि में सक्रिय भूमिका निभाने के साथ विविध विषयों पर सामाजिक व्याख्यान भी देते हैं। इनकी लेखन विधा-हिंदी और मराठी में कविता, गीत व लेख है। विभिन्न रचनाओं का समाचार पत्रों में प्रकाशन होने के साथ ही ‘वनिताओं की फरियादें’ (हिंदी पर्यावरण काव्य संग्रह), ‘सांजवात’ (मराठी काव्य संग्रह),
‘पंचवटी के राम’ (गद्य और पद्य पुस्तक), ‘हृदयांजली ही गोदेसाठी’ (काव्य संग्रह) तथा ‘पल्लवित हुए अरमान’ (काव्य संग्रह) भी आपके नाम हैं। संजीव आहिरे को प्राप्त सम्मान-पुरस्कार में अभा निबंध स्पर्धा में प्रथम और द्वितीय पुरस्कार, ‘सांजवात’ हेतु राज्य स्तरीय पुरुषोत्तम पुरस्कार, राष्ट्रीय मेदिनी पुरस्कार (पर्यावरण मंत्रालय, भारत सरकार), राष्ट्रीय छत्रपति संभाजी साहित्य गौरव पुरस्कार (मराठी साहित्य परिषद), राष्ट्रीय शब्द सम्मान पुरस्कार (केंद्रीय सचिवालय हिंदी साहित्य परिषद), केमिकल रत्न पुरस्कार (औद्योगिक क्षेत्र) व श्रेष्ठ रचनाकार पुरस्कार (राजश्री साहित्य अकादमी) मिले हैं। आपकी विशेष उपलब्धि राष्ट्रीय मेदिनी पुरस्कार, केंद्र सरकार द्वारा विशेष सम्मान, ‘रामदर्शन’ (हिंदी महाकाव्य प्रस्तुति) के लिए महाराष्ट्र सरकार (पर्यटन मंत्रालय) द्वारा विशेष सम्मान तथा रेडियो (तरंग सांगली) पर ‘रामदर्शन’ प्रसारित होना है। प्रकृति के प्रति समाज एवं नयी पीढ़ी का आत्मीय भाव जगाना, पर्यावरण के प्रति जागरूकता पैदा करना, हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाने हेतु लेखन-व्याख्यानों से जागृति लाना, भारतीय नदियों से जनमानस का भाव पुनर्स्थापित करना, राष्ट्रीयता की मुख्य धारा बनाना और ‘रामदर्शन’ से परिवार एवं समाज को रिश्तों के प्रति जागरूक बनाना इनकी लेखनी का उद्देश्य है। पसंदीदा हिंदी लेखक प्रेमचंद जी, धर्मवीर भारती हैं तो प्रेरणापुंज स्वप्रेरणा है। श्री आहिरे का जीवन लक्ष्य हिंदी साहित्यकार के रूप में स्थापित होना, ‘रामदर्शन’ का जीवनपर्यंत लेखन तथा शिवाजी महाराज पर हिंदी महाकाव्य का निर्माण करना है।