डॉ. कुमारी कुन्दन
पटना(बिहार)
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माँ बिन…!
‘ऊँ’ शब्द में ब्रह्मांड समाया,
माँ शब्द में सृष्टि समाई
माँ का रिश्ता अतुलनीय है,
माँ जैसा कुछ भी ना पाई।
इस रंग बदलती दुनिया में,
ऐसे कितने रिश्ते देखे
वात्सल्य और दया, त्याग के
हमने संगम कहीं ना देखे।
दुनिया काँटों जैसी लगती,
मेरी माँ, जैसे कोई फुलवारी
बच्चों की सुख की खातिर,
वह अपना सुख बलिहारी।
कभी चाँदनी की शीतलता,
कभी सूरज-सी उष्णता
जैसे कुम्हार बर्तन सवांरता,
वही गुण माँ में भी दिखता।
स्वर्ग से सुन्दर लगता है घर,
जिस घर में माँ होती है
माँ बिन, जो बच्चे पले-बढ़े
उनसे पूछो, माँ क्या होती है ?
मेरी लेखनी में कहां दम है,
जो मैं माँ का करुँ बखान।
जन्म दिया, जीवन सँवारा,
मुझे दिखे उसी में भगवान॥