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मार्निंग वॉक

डॉ. सोमनाथ मुखर्जी
बिलासपुर (छत्तीसगढ़)
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चिकित्सक ने मेरा हेल्थ चेक-अप करने के बाद कहा,अब तक तो ठीक है। आपको कोई भी शारीरिक समस्या नहीं है,पर मेरी बात मानें तो रोज सुबह मार्निंग वॉक शुरू कर दें। मैंने चिकित्सक को बताया कि डॉक्टर साहब सुबह की मार्निंग वॉक करने के लिए कौन-सा वक्त सही रहेगा ?
चिकित्सक ने कहा,सबेरे ६ बजे आप मार्निंग वॉक के लिए निकल सकते हैं,पर ठण्ड के समय गर्म कपड़ों का उपयोग करें नहीं तो ठण्ड लग जाएगी।
मैं डर गया,क्योंकि मैं ठहरा आलसी आदमी। रोज टीवी में समाचार-धारावाहिक देखकर सोते-सोते रात १२ बज जाती है। मैंने यह अनुभव किया कि रात जितनी बढ़ती जाती है,टीवी का कार्यक्रम उतना ही रोचक होता जाता है। पत्नी मुझसे बार-बार सोने को कहती,पर जब मैं उसके बार-बार कहने पर भी सोने को नहीं जाता,तब झल्लाकर वो बोलती अगर मैं सुबह नहीं उठ पाई तब आप बच्चों को तैयार कर स्कूल टिफ़िन के साथ रवाना करना और अपना नाश्ता-ऑफिस का टिफ़िन भी बना लेना। तब सबेरे उठने के डर से मैं चुपचाप बिस्तर पर जाकर सो जाता था।
चिकित्सक की बात सुनकर मेरी पत्नी की बाँछे खिल गई,उसे मुझे जी भरकर कोसने का मौका मिल गया। कहने लगी कि घर का कुछ काम-काज तो करते नहीं,रोज सबेरे देर से उठते हैं,और हड़बड़ी में नहा-धोकर जल्दी से नाश्ता कर दोपहर का टिफ़िन लेकर ऑफिस चले जाते हैं। फिर शाम के समय ऑफिस से लौटकर धम्म से सोफे पर पसर जाते हैं और टी.वी.चालूकर उसी में मगन हो जाते हैं,अगर घर का कुछ काम बोल दिया तो मुँह बनाया करते हैं। कहीं जाना नहीं, किसी के साथ संबंध रखना नहीं,मैं दिनभर घर का काम-काज करके थक जाती हूँ,शाम को घुमाने की बात करती हूँ तो अनसुना कर देते हैं। छुट्टी के दिन भी घर पर पड़े-पड़े मुझसे तरह-तरह की खाना बनाने की फरमाईश करते हो,जैसे मैं आपकी पत्नी नहीं हलवाई हूँ। पेट की चर्बी बढ़ाते जा रहे हो,मेरी तो सुनते ही नहीं हो। अब जब डॉक्टर साहब बोले,तब मार्निंग वॉक में जाने की बात करते हैं।
पत्नी के ताने सुनकर मैंने चुप रहना ही ठीक समझा। अगर उन्हें कुछ बोल देता हूँ तो सालभर पहले की बात या तो १० साल पहले शादी में मेरे परिवार का किसने क्या कहा था,मेरे दोस्तों ने मेरी मनहूसियत के विषय में क्या कहा था,मेरी और क्या-क्या गलतियाँ हैं जो वो अब तक सुधार नहीं पाई हैं,के ऊपर पूरा बड़ा-सा व्याख्यान दे देती,पता नहीं इन औरतों को इतनी बातें कैसे याद रहती हैं..!
चाहे ठंडी हो या गरमी,मैं रोजाना सुबह अपने नियमानुसार ठीक ८ बजे बहुत मुश्किल से बिस्तर छोड़ता हूँ,वह भी मेरी पत्नी की अंतिम धमकी के बाद…,इसलिए सबेरे-सबेरे बिस्तर से उठना मेरे लिए असंभव कार्य था। सबेरे का ही तो वक्त है,जब हमें प्यारी-प्यारी नींद आती है,उस प्यारी-मीठी नींद में खलल उत्पन्न कर उतने सबेरे उठना मेरे बस की बात नहीं थी,लेकिन मेरी बदनसीबी थी कि मेरे साथ चिकित्सक के पास मेरी पत्नी भी गई थी। उसने सबेरे-सबेरे मुझे बिस्तर से उठाने की जिम्मेदारी अपने ऊपर ले ली थी।
सुबह ६ बजे मुझे मार्निंग वॉक पर जाना था, पर पत्नी ने ५ बजे ही जगा दिया और तैयार होने की बात बोलने लगी। मैंने उससे बहुत आग्रह किया कि भागवान!थोड़ी देर और सोने दो,पर वो अपनी जिद पर बनी रही और इतनी चिल्ला-पों मचाई कि मैंने बिस्तर से उठना ही मुनासिब समझा।
चिकित्सक की सलाह के अनुसार मैं सवेरे-सवेरे गर्म कपड़ा और कनटोप पहनकर ६ बजे मार्निंग वॉक के लिए निकल गया। निकलने के पहले अपने-आपको आइने में देखा तो स्वेटर,कनटोप और मफलर में मैं कार्टून नज़र आ रहा था…,और मेरी तोंद भी बहुत बेहूदा तरीके से निकली दिखाई दे रही थी। मैंने सोचा था कि शायद स्वेटर पहनने से थोड़ी बहुत ढंक जाएगी,पर हुआ इसका विपरीत..,पर क्या करता! मार्निंग वॉक करना भी जरूरी था।
जब रास्ते में निकला तब देखा कि,मुँह अँधेरे में दुबले-पतले,लम्बे-मोटे,मेरी तरह तोंद वाले तथा बिना तोंद वाले एक से बढ़कर एक ड्रेस में मोर्निंग वॉक के लिए निकले हुए थे। महिलाओं को देखकर लग नहीं रहा था कि ठंडी की सुबह मार्निंग वॉक के लिए निकलीं हैं,वे मस्त होकर वापस में गप्पे मारते हुए चली जा रहीं थी। मेरे तथा दूसरे मोहल्ले के कुछ परिचित तथा कुछ अपरिचित लोग भी रास्ते में चल रहे थे। लगभग सभी के हाथों में छड़ी है,उस समय मुझे छड़ी का उपयोग समझ में नहीं आया। सोचा शायद स्टाइल के लिए यह छड़ी लेकर चलना जरूरी है। मैंने सोचा कि कल से मैं भी छड़ी लेकर चलूँगा।
सड़क पर बहुत सारे लोग चल रहे थे,और मुझे भीड़ में चलना अच्छा नहीं लग रहा था, क्योंकि जो मार्निंग वॉक कर रहे थे,देखकर लगा कि,ये काफी दिनों से चल रहे थे, क्योंकि काफी तेज़ी के साथ चल रहे थे। आज मेरा पहला दिन था,इसीलिए मैं उतना तेज़ नहीं चल पा रहा था,थोड़ी देर में थक गया। मुझे लगता था कि मेरी तोंद का कोई वजन नहीं है,पर चलते वक्त पता चला कि इसकी भी अपनी एक अलग ही चाल है,जो मुझे और भी थका दे रही थी। मैं भीड़ से बचने के लिए एक गली में घुस गया और अपनी लय से चलने लगा।
इस गली में चलने में मज़ा आ रहा था,क्योंकि एक तो भीड़ नहीं थी और दूसरे गली साफ़-सुथरी थी। कुछ दूर पर कुत्तों का एक झुण्ड दिखा,जो दूसरी गली के किनारे चुपचाप बैठे थे और मुझे ताक रहे थे। मैं जैसे ही उनके पास पहुंच,तब एकाएक सभी कुत्ते एक साथ भौं-भौं करते हुए मुझ पर लपके। मैं इस अचानक हुए हमले से काफी डर गया और पता नहीं,कब उलटे पाँव सरपट भागने लगा और उन कुत्तों को दौड़ में पीछे छोड़ते हुए मुख्य सड़क पर आ गया। कुत्तों का झुण्ड मेरे पीछे दौड़ेते-दौड़ते गली के मुहाने तक आ गया था। मुख्य सड़क पर कुछ लोग जो हाथों में छड़ी लेकर चल रहे थे,वे छड़ी आगे कर उन कुत्तों को मारने की मुद्रा में आकर हट-हट कर चिल्लाने लगे तो कुत्तों का झुण्ड डरकर गली में भाग गया।
मैं इस भीषण ठण्ड में भी पसीना-पसीना हो गया था,और जीभ बाहर निकालकर हांफ रहा था। अब मुझे समझ में आया कि,यह छोटी छड़ी लेकर चलना फैशन या स्टाइल नहीं,बल्कि कुत्तों को दूर भगाने के लिए है।
घर लौटने के बाद मेरे सारे शरीर में हर जगह दर्द होने लगा। दर्द के मारे मुझे बुखार भी आ गया था। उस दिन मेरा ऑफिस जाना रद्द हो गया। टेलीफोन पर बड़े बाबू से छुट्टी की बात की। सारे शरीर में करीब २-३ दिन तक दर्द रहा,और मैं कराहता रहा। इन दिनों मेरी पत्नी जो मुझे बहुत खरी-खोटी सुनाती रहती थी,ने अपनी जुबान को विराम दे दिया था और बहुत चिंतित होकर मेरी काफी सेवा की।
बस वही एक दिन था जब मैं मार्निंग वॉक के निकला था…उसके बाद किसी ने फिर मुझसे मार्निंग वॉक करने की बात नहीं कही।

परिचय- डॉ. सोमनाथ मुखर्जी (इंडियन रेलवे ट्रैफिक सर्विस -२००४) का निवास फिलहाल बिलासपुर (छत्तीसगढ़) में है। आप बिलासपुर शहर में ही पले एवं पढ़े हैं। आपने स्नातक तथा स्नाकोत्तर विज्ञान विषय में सीएमडी(बिलासपुर)एलएलबी,एमबीए (नई दिल्ली) सहित प्रबंधन में डॉक्टरेट की उपाधि (बिलासपुर) से प्राप्त की है। डॉ. मुखर्जी पढाई के साथ फुटबाल तथा स्काउटिंग में भी सक्रिय रहे हैं। रेलवे में सहायक स्टेशन मास्टर के पद से लगातार उपर उठते हुए रेल के परिचालन विभाग में रेल अधिकारी के पद पर पहुंचे डॉ. सोमनाथ बहुत व्यस्त रहने के बावजूद पढाई-लिखाई निरंतर जारी रखे हुए हैं। रेल सेवा के दौरान भारत के विभिन्न राज्यों में पदस्थ रहे हैं। वर्तमान में उप मुख्य परिचालन (प्रबंधक यात्री दक्षिण पूर्व मध्य रेल बिलासपुर) के पद पर कार्यरत डॉ. मुखर्जी ने लेखन की शुरुआत बांग्ला भाषा में सन १९८१ में साहित्य सम्मलेन द्वारा आयोजित प्रतियोगिता से की थी। उसके बाद पत्नी श्रीमती अनुराधा एवं पुत्री कु. देबोलीना मुख़र्जी की अनुप्रेरणा से रेलवे की राजभाषा पत्रिका में निरंतर हिंदी में लिखते रहे एवं कई संस्था से जुड़े हुए हैं।

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