असित वरण दास
बिलासपुर(छत्तीसगढ़)
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मेरी संवेदनाएं गहरी झील में तैरते
उस कमल की तरह विकसित नहीं हो पाती,
जिसने देखा हो रातभर
खामोश कुहरों का जुल्म,
और देखा है
ओस की बूंदों का सामूहिक जन्म।
फिर भी,
रात की परतों में से उभरते
ऊष्माहीन सूरज की प्रभा लिए,
मेरा अंतर्मन ढूंढता फिरता है
प्रेम की हर परछाईं को,
ढूंढता है ठहराव
पाना चाहता है एक नमी,
सूखी रेत की तह में से बार-बार।
भविष्य एक शून्य की तरह,
जिसे तुम मुट्ठी में बांध नहीं सकते
और अतीत एक ऐसा अंधेरा,
जिसमें न सूरज है,न रोशनी
न तुम्हारी साँसों की गर्मी,
मैं तो बस उस अतीत के लम्हों को समेटे
दौड़ रहा हूँ एक लक्ष्यहीन पथ पर।
जानता हूँ,
एक दिन सुगंध का आधार बनकर गिर पड़ूंगा
जीवन के पथरीले रास्तों में,
एक कस्तूरी मृग के समान
पर तब तक,
मेरी संवेदनाएं ही जीवित रखेंगी मुझे।
जो रातों का आक्रमण सहकर भी खिल उठना चाहती है,
तुम्हारी आँखों की नीली झील में॥