संदीप धीमान
चमोली (उत्तराखंड)
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हर पल एक जीवन छूट रहा
संग जन्म मृत्यु का ख़ूब रहा,
बढ़ रहे क़दम शिखर को
मृत्यु आने पर मनुष रुठ रहा!
क्यों न हो शीर्ष का अगत्यु
जीवन शिखर ही तो है मृत्य,
दौड़ रहा था ऊंचाईयों को
शीर्ष उपलब्धि बधाईयों को!
मैं क्यों न गाऊं…?
शीर्ष पाकर भी मौन क्यों हो
संतोष को माने गौण क्यों हो,
था जन्म सत्य यही तुम्हारा
विषय आनन्द, मौन क्यों हो ?
गाओगे तब, कब तुम गीत
मंगल होगा कब मन मीत,
पल-पल मृत्यु घट रही है
शिखर छिपी है जीवन जीत।
शीर्ष है जीवन युद्धों का
द्वंद है मन भीतर बुद्धों का,
देखो विजय पताका फहर रही।
मैं क्यों न गाऊं…?
अंत है सभी जीवन मुद्दों का॥