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मैं शिव बन जाऊँगी

ऋचा गिरि
दिल्ली
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नारी से नारायणी (महिला दिवस विशेष)

संसार के ताने-बाने,
समाहित कर
कमलासन मुद्रा में बैठकर
लय में,
ओंकार का जाप करूँगी।

ॐ की ध्वनि,
जब ब्रह्माण्ड के ॐ
नाद से तादात्म्य होगी,
नया संसार
निर्मित करूँगी।

इसी ध्वनि से,
संसृति के सबसे जहरीले जीव से
जहर निकालकर,
अमृत बनाऊँगी।

सकारात्मक ऊर्जा,
के आघात से
नकारात्मक ऊर्जा का,
विध्वंस करूँगी।

बढ़ते हुए अर्धचंद्र,
गंगा पर सजाकर
उस पर अलंकृत,
बरगद के छालों
की जटा।

नीले आकाश को,
कंठ बना
प्रत्यक्ष
आदि शक्ति को,
थाल में सूर्य लिए
आरती करूँगी।

सात्विक युग का निर्माण कर,
ऊर्जा को रूपान्तरण
करने की क्रिया,
अपने देह को समर्पित करूँगी
उसी राख में,
जो शिव की भभूत है।

और,
मैं शून्य बन जाऊँगी
मैं शिव बन जाऊँगी॥