गोवर्धन दास बिन्नाणी ‘राजा बाबू’
बीकानेर(राजस्थान)
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मेरा विद्यार्थी जीवन स्पर्धा विशेष ……..
मेरा विद्यार्थी जीवन गणेश चतुर्थी से शुरू हुआ था। जैसा धुंधला-सा याद आता है उस दिन माताजी,जो बालक कि प्रथम गुरु होती है,ने सर्वप्रथम प्रभु श्री गणेशजी की पूजा कराई और उसके बाद मेरी पाटी (स्लेट) की पूजा ही नहीं करवाई,बल्कि बरते (जिससे स्लेट पर लिखा जा सकता है)से पाटी पर मेरा हाथ पकड़ १ अक्षर लिखवाया। उसी समय मारजा(शिक्षक)आ गए और उनके विद्यालय गया। इस तरह विद्यार्थी जीवन की शुरूआती पढ़ाई मारजा के विद्यालय में हुई। हाँ,मारजा ने हम विद्यार्थियों को निम्न श्लोक अर्थ सहित अनेक बार खूब बढ़िया ढंग से समझाया,जिसका लाभ मुझे पूरे विद्यार्थी जीवन में मिला-
‘काक चेष्टा बको ध्यानं,श्वान निद्रा तथैव च। अल्पहारी गृह त्यागी,विद्यार्थी पंच लक्षणं॥’
इसके अलावा मारजा ने हम सभी को पहाड़ा (गणित का एक अहम् हिस्सा) खूब बढ़िया ढंग से कंठस्थ करवा दिया।
इसके बाद जब मुझे कक्षा ४ के लिए उच्चतर माध्यमिक विद्यालय में दाखिल कराया गया,तो आठवीं के बाद विज्ञान,वाणिज्य या कला संकाय में से एक को चुनने का समय आया। प्रधानाध्यापक ने आठवीं में गणित वाले अच्छे परिणाम स्वरूप मेरे बड़े भाई को समझा कर विज्ञान संकाय में मेरा दाखिला का आवेदन ले लिया। कुछ महीनों के बाद विज्ञान संकाय वाली बात जब पिताजी के ध्यान में आई। तब उन्होंने स्पष्ट कह दिया कि, विज्ञान अपने काम का नहीं है,इसलिए वाणिज्य संकाय में बदल लो।
इस तरह वाणिज्य संकाय से ११वीं में बोर्ड परीक्षा बहुत ही बढ़िया नम्बरों से उत्तीर्ण कर जब महाविद्यालय में दाखिला लेने पहुँचा,तब प्राचार्य के कमरे के बाहर लम्बी कतार देख,सोच ही रहा था तभी भीतर बैठे प्राचार्य महोदय ने मुझे देख अन्दर आने का इशारा किया। अन्दर पहुँचने पर मुझसे अंकपत्र माँग उसके पीछे ऑनर्स लिख संक्षिप्त हस्ताक्षर कर दिया। इस घटना ने न केवल मुझे, बल्कि सभी कतारबद्ध लड़कों को भी विस्मित कर दिया।
अब विद्यार्थी जीवन के बारे में सोचते ही एक रोमांच हो जाता है,क्योंकि वह समय बहुत ही निश्चिंतता से बीता था। सारे त्योहार खूब उमंग व उत्साह से मिलकर जोर-शोर से मनाते थे,यानि कुल मिलाकर सब समय मौज-मस्ती भी खूब की। वाद- विवाद प्रतियोगिता हो या लेखन की,सभी में न केवल भागीदारी की,बल्कि नाम भी खूब कमाया और पारितोषिक भी हर समय मिले।
आज भी मारजा वाले विद्यालय के एकाध दोस्त से सम्पर्क है और जब भी मौका मिलता है,बात कर कुशल-क्षेम आदान-प्रदान कर लेते हैं।
एक खास बात का उल्लेख करना चाहूँगा-११वीं बोर्ड परीक्षा के बाद जब मैं अंकपत्र लेने विद्यालय पहुँचा,तब कार्यालय कर्मचारी ने कहा कि,तुम्हारा अंकपत्र प्रधानाध्यापक जी के पास है। इसके बाद मैं प्रधानाध्यापक जी के कक्ष में गया और उनसे आशीर्वाद चाहा। तब उन्होंने आशीर्वाद देने के साथ-साथ अंकपत्र मेरे हाथ में देते हुए गुरुमंत्र के रूप में निम्न श्लोक को हमेशा याद रखने को कहा, जिसे आज तक परम आवश्यक नैतिक कर्तव्य मान पालन कर रहा हूँ-
‘विद्या ददाति विनयं विनयाद्याति पात्रताम्।
पात्रत्वाद्धनमाप्नोति धनाद्धर्मों ततः सुखम्॥’