तारा प्रजापत ‘प्रीत’
रातानाड़ा(राजस्थान)
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आकाश में लालिमा लिए
सूर्य की प्रथम किरण,
करा देती है आभास
भोर के आगमन का।
सांझ का पहला तारा
रात्रि के होने का,
दे देता है सन्देश।
वृक्ष की शाख से टूट कर,
धरती पर बिखरे
सूखे पीले पत्ते,
बता देते हैं कि
आ गया है पतझर।
उपवन में,
सुगन्धित पुष्पों से आती
भीनी-भीनी महक,
वृक्षों की झूमती टहनियाँ
इठलाते भ्रमर,
रंग-बिरंगी
तितलियों की अठखेलियाँ,
अनुभव कराते हैं कि
आ गया है बसन्त।
सम्पूर्ण प्रकृति
अपना-अपना कर्म,
मौन में
निस्वार्थ भाव से
कर रही है तो,
फिर व्यक्ति
कुछ भी कर के
क्यों मचाता है
इतना शोर ?
क्यों चाहता है कि,
कोई करे उसकी तारीफ़ ?
गर सच में
तुझमें क़ाबलियत होगी तो,
प्रकति तुझे स्वयं
करेगी प्रकट।
फिर तेरे क़िरदार की,
ख़ुशबू से…
महक उठेगा संसार॥
परिचय– श्रीमती तारा प्रजापत का उपनाम ‘प्रीत’ है।आपका नाता राज्य राजस्थान के जोधपुर स्थित रातानाड़ा स्थित गायत्री विहार से है। जन्मतिथि १ जून १९५७ और जन्म स्थान-बीकानेर (राज.) ही है। स्नातक(बी.ए.) तक शिक्षित प्रीत का कार्यक्षेत्र-गृहस्थी है। कई पत्रिकाओं और दो पुस्तकों में भी आपकी रचनाएँ प्रकाशित हुई हैं,तो अन्य माध्यमों में भी प्रसारित हैं। आपके लेखन का उद्देश्य पसंद का आम करना है। लेखन विधा में कविता,हाइकु,मुक्तक,ग़ज़ल रचती हैं। आपकी विशेष उपलब्धि-आकाशवाणी पर कविताओं का प्रसारण होना है।