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बाल मन का कौतूहल

विनोद वर्मा आज़ाद
देपालपुर (मध्य प्रदेश) 

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पिताजी एक सन्दूक नुमा यंत्र लाये,उसे घर लाकर उन्होंने ऊंचे स्थान पर टांग दिया तथा एक लंबी-सी चमकदार डंडी खींची तो वह लम्बी हो गयी। फिर एक तारों वाली जाली घर के बाहर दो खूंटियों पर बांध उसमें एक तार बांधकर उसे लम्बी डंडी के ऊपरी छोर पर लपेट दिया। घर के बाहर भीड़ लग गई। बाहर से आवाज़ आ रही थी कि-मास्टर भैया टानिस्टर लाये हैं…
पिताजी ने एक गोल बटन को घुमाया और फिर दूसरे बटन को घुमाया तो गीत बजने लगा। बाहर की भीड़ को भी सुनाई दे,इस लिए थोड़ी आवाज और बढ़ा दी।
रात्रि में भोजन के पश्चात पिताजी ने समाचार लगाए तो लोग सुनने के लिए आ गए। बस! प्रतिदिन यही गतिविधि चल रही थी।
साल १९७१ का समय था। उस समय ८-९ वर्ष का ही था। लोग बातें करते कि पाकिस्तान ने भारत पर हमला कर दिया।भारतीय फौज पाक को मुँह तोड़ जवाब दे रही है। रोज-रोज समाचारों में ये बातें आ रही थी। आमजन में यह सूचना भी दी जाने लगी कि रात्रि में घरों की लाइट बन्द रखें,किसी भी प्रकार की रोशनी घर से बाहर न दिखे,नहीं तो दुश्मन देश के हवाई जहाज बम गिरा देंगे। गांव-गांव में रातें काली होने लगी…। हम पाकिस्तान से युद्ध जीत गए। मुँह की खाई पड़ोसी पाकिस्तान ने,जगह-जगह खुशियां मनाई गई…। सब ओर खुशी का माहौल था।अब रातें उजली हो गई। हर घर में रोशनी हो रही थी। कई दिन तक लोग रेडियो पर कार्यक्रम सुनते रहे। सिलोन व बीबीसी के समाचार,हवा महल…अलग-अलग प्रकार से प्रस्तुत होने वाले कार्यक्रमों के नए-पुराने गाने,फौजी भाईयों के लिए जयमाला गीत प्रस्तुति सुनी जाती रही।
उस समय नया दौर,हमराज,अनमोल घड़ी,अजी बस शुक्रिया,उजाला,मदर इंडिया, सरस्वतीचन्द्र,बालक आदि फिल्मों के गाने खूब बजा करते थे।
एक दिन घर के सभी सदस्य मूमफली उखाड़ने गए। मैं विद्यालय गया था। छुट्टी होने पर घर आकर भोजन यानी आलू की फांक की झोल वाली सब्जी और ज्वार की रोटी खाने लगा। इसी दौरान मैंने टेबल पर चढ़कर बुद्धू बक्सा यानि रेडियो चालू कर दिया। बहुत अच्छे-अच्छे गाने चल रहे थे। भोजन करके मैंने उस छोटे रेडियो यानी (टानिस्टर) को खूंटी पर से उतार लिया। मेरे बालमन में ये हलचल हुई…कि इसमें इतने अच्छे-अच्छे गाने आ रहे हैं,तो इसमे नाचने-गाने वाले लोग कहाँ से और कैसे आते हैं ? कैसे ढोल,बाँसुरी बजाते हैं ? कैसे कपड़े पहनते होंगे ? ….बस ! इसी बीच ‘नया दौर’ फ़िल्म का गाना आ गया-“ओ उड़े जब-जब जुल्फें….कमरिया पे ….जींद मेरी ये….” मेरी जिज्ञासा बढ़ गई,मैंने सोचा-आज मैं इसमें देखूंगा कि,ये कहाँ से आते हैं और कैसे नाचते-गाते हैं!
मैंने उसे जैसे-तैसे अंदाज से खोला,वह खुल तो गया,पर आवाज़ आना बंद हो गई। मैंने खूब प्रयास किया कि यह वापस चालू हो जाये,पर वह चालू नहीं हुआ। मैंने सोचा, शायद मेरे को देखकर ये सब भाग गए। मैंने चुपचाप वापस खूंटी पर टानिस्टर टांग दिया और अब डर भी लगने लगा कि अब तो बाबू जी मारेंगे। बहुत मार पड़ेगी गाने वाले भाग गए हैं…।
शाम को परिवारजन व पिताजी घर आये। आते से ही पिताजी रेडियो चालू करते थे,उन्होंने खटका घुमाया तो वह नहीं चला। फिर अल्टा-पलटा कर देखा,पर चालू नहीं हुआ….वो सीधे मेरी तरफ मुड़े,गुस्सा उनके चेहरे पर देखकर डर के मारे कंपकंपी आने लगी। मेरी दादीजी का ध्यान मुझ पर था,मैंने उनको देखा। उन्होंने हल्के से इशारा किया तो मेरा डर कम हुआ।
पिताजी ने मुझे घूरते हुए कहा-“क्यों घर पर तो आज तेरे अलावा कोई नहीं था ?”
मैंने हिम्मत करते हुए बोला-“बाबूजी पहले मेरी बात सुन लो।”
उन्होंने कहा-‘बोल!’
मैं बोला-“इसमें अच्छे-अच्छे गाने आ रहे थे,मेरे मन में आया कि ये गाने बजाने और नाचने वाले कहाँ से आते हैं ? कैसे कपड़े पहनते हैं, इनके बाजे-बाँसुरी-ढोल कैसे होते हैं ? बस ये सब देखने के लिए मैंने खोल लिया, तो वो सब डर के मारे भाग गए।”
पिताजी के चेहरे पर मेरी मासूमियत और बालमन को देखकर हल्की-सी हँसी आ गई। मैं उछल पड़ा,कि अब मार नहीं पड़ेगी। दादी ,बाई,बहन-भाई के भी चेहरे खिल उठे। फिर पिताजी ने विस्तार से बताया कि,बाहर जो जाली लगी है उसमें से ये तार द्वारा आकाशवाणी से इसमें आवाज आती है। इसके बाद मैं भी हँस पड़ा।

परिचय-विनोद वर्मा का साहित्यिक उपनाम-आज़ाद है। जन्म स्थान देपालपुर (जिला इंदौर,म.प्र.) है। वर्तमान में देपालपुर में ही बसे हुए हैं। श्री वर्मा ने दर्शन शास्त्र में स्नातकोत्तर सहित हिंदी साहित्य में भी स्नातकोत्तर,एल.एल.बी.,बी.टी.,वैद्य विशारद की शिक्षा प्राप्त की है,तथा फिलहाल पी.एच-डी के शोधार्थी हैं। आप देपालपुर में सरकारी विद्यालय में सहायक शिक्षक के कार्यक्षेत्र से जुड़े हुए हैं। सामाजिक गतिविधि के अंतर्गत साहित्यिक,सांस्कृतिक क्रीड़ा गतिविधियों के साथ समाज सेवा, स्वच्छता रैली,जल बचाओ अभियान और लोक संस्कृति सम्बंधित गतिविधियां करते हैं तो गरीब परिवार के बच्चों को शिक्षण सामग्री भेंट,निःशुल्क होम्योपैथी दवाई वितरण,वृक्षारोपण,बच्चों को विद्यालय प्रवेश कराना,गरीब बच्चों को कपड़ा वितरण,धार्मिक कार्यक्रमों में निःशुल्क छायांकन,बाहर से आए लोगों की अप्रत्यक्ष मदद,महिला भजन मण्डली के लिए भोजन आदि की व्यवस्था में भी सक्रिय रहते हैं। श्री वर्मा की लेखन विधा -कहानी,लेख,कविताएं है। कई पत्र-पत्रिकाओं में आपकी रचित कहानी,लेख ,साक्षात्कार,पत्र सम्पादक के नाम, संस्मरण तथा छायाचित्र प्रकाशित हो चुके हैं। लम्बे समय से कलम चला रहे विनोद वर्मा को द.साहित्य अकादमी(नई दिल्ली)द्वारा साहित्य लेखन-समाजसेवा पर आम्बेडकर अवार्ड सहित राज्य शिक्षा केन्द्र द्वारा राज्य स्तरीय आचार्य सम्मान (५००० ₹ और प्रशस्ति-पत्र), जिला कलेक्टर इंदौर द्वारा सम्मान,जिला पंचायत इंदौर द्वारा सम्मान,जिला शिक्षण एवं प्रशिक्षण संस्थान द्वारा सम्मान,भारत स्काउट गाइड जिला संघ इंदौर द्वारा अनेक बार सम्मान तथा साक्षरता अभियान के तहत नाट्य स्पर्धा में प्रथम आने पर पंचायत मंत्री द्वारा १००० ₹ पुरस्कार से सम्मानित किया जा चुका है। साथ ही पत्रिका एक्सीलेंस अवार्ड से भी सम्मानित हुए हैं। आपकी विशेष उपलब्धि-एक संस्था के जरिए हिंदी भाषा विकास पर गोष्ठियां करना है। इनकी लेखनी का उद्देश्य-हिंदी भाषा के विकास के लिए सतत सक्रिय रहना है।

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