डॉ. अनिल कुमार बाजपेयी
जबलपुर (मध्यप्रदेश)
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याद करो उन जाँबाजों को,
भारत माँ की संतानों को
राष्ट्र के उन जलते शोलों को,
बगिया के सुंदर फूलों को
जो खिल न सके उजड़ गए,
दूर अपनों से बिछड़ गए
जाते-जाते देखा न पलट कर,
विदा हुए तिरंगे में लिपटकर
वो लौटकर कभी न आएंगे,
आज हम गीत उन्हीं के गाएंगे…।
उम्र में भी वो थे कितने कच्चे,
जैसे भारत माँ की गोद में बच्चे
उनने भी देखे थे कुछ सपने,
दिल में बसते थे उनके अपने
कोई माता-पिता का था सहारा,
कोई छोटी बहन का भाई प्यारा
कोई बड़े भाई का खूब दुलारा,
कोई उसकी माँग का था सितारा
उनके आँसू कैसे रुक पाएंगे,
आज हम गीत उन्हीं के गाएंगे…।
जब आएगा पावन रक्षाबंधन,
सूना होगा घर का आँगन
ढूढेंगी रोती हुई छोटी बहन,
लेकर थाली में रोली चंदन
जब सबके घर होगी दीवाली,
दुःखभरी रातें होंगी और काली
माँ से पूछेगी नन्हीं बिटिया,
क्यूँ जला नहीं अपने घर दिया।
याद में उनकी एक दीप जलाएंगे,
आज हम गीत उन्हीं के गाएंगे…॥
परिचय–डॉ. अनिल कुमार बाजपेयी ने एम.एस-सी. सहित डी.एस-सी. एवं पी-एच.डी. की उपाधि हासिल की है। आपकी जन्म तारीख २५ अक्टूबर १९५८ है। अनेक वैज्ञानिक संस्थाओं द्वारा सम्मानित डॉ. बाजपेयी का स्थाई बसेरा जबलपुर (मप्र) में बसेरा है। आपको हिंदी और अंग्रेजी भाषा का ज्ञान है। इनका कार्यक्षेत्र-शासकीय विज्ञान महाविद्यालय (जबलपुर) में नौकरी (प्राध्यापक) है। इनकी लेखन विधा-काव्य और आलेख है।