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वाणी वीणा की

दुर्गेश कुमार मेघवाल ‘डी.कुमार ‘अजस्र’
बूंदी (राजस्थान)
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टूटा कभी,
जब वाणी का तार।
लेकर जा पहुंचा,
मैं टूटी सितार।
साज-सितार का
या संगीत का वह।
खोल कर बैठा,
जो वीणा तार-तार।
कुछ कही-अनकही,
बातें थी मेरी।
कुछ रटी-रटाई,
बातें थी उसकी।
एक की तीन और,
तीन की पांच।
ना जाने,
कितना झूठ उड़ाता
या जाने थी,
बातों में सांच की आंच।
सोचूं कि समझूँ,
समझूँ तो जानूं।
बातों ही बातों में,
जो वो कहे वही मानूं।
शक-शुभाह
कि क्या संगीत फिर जमेगा ??
टूटे सितार से,
क्या फिर स्वर सजेगा ??
थी दिलासा,
संवेदना,लेकिन बस बातों में
दिल ही दहला दिया,
उसके ‘बिल’ के आघातों ने।
सोचा,
इतने में तो नया ही न ले लूँ!
पुरानी खनक से,
क्यों और कब तक खेलूँ ??
पर ‘यादों’ का,
और ‘हाथों’ का
जब ख्याल आया।
हाथों की सिरसन के साथ,
घूम गया
पिता का भी साया।
दिल और बिल की,
किए बिना परवाह
‘सज्ज’ कराने को,
‘साजक’ की भी की
थोड़ी वाह-वाह।
समय पीड़ा का,
देकर खिलौना
चश्मा ऊँचा कर कहा,
“चार दिन बाद ले जाना।”
पल-पल दिन-दिन,
सूना-सूना रहा संगीत
बजते भी कैसे,
बिना वाणी के गीत ??
समय बड़ा ही बेरहम होता है,
जले पर नमक छिड़कना ही तो
इसकी आदत है।
समय सुख में तो,
खुद का भी पता
नहीं चलने देता है।
इंतजार में बढ़कर,
द्रोपदी के चीर से ही
तो होड लेता है।
आखिर तो गुजरी,
विरह की घनी काली रातें।
हुआ सवेरा,
चमकते सूरज का उजाला।
खुले कपाट उसके दर के,
रत्ती भर अंतर नहीं था
जस-के-तस हालात थे,
उधर के।
खनक से खनक मिली तो,
वाणी में भी जान आई।
पर कहीं कोई तो,
कमी थी
कसर थी,
उसके सधे सुरों और स्वरों में।
कहीं बेढंगे से सुर,
पटरी से उतर-चढ़ जाते थे।
‘सज्ज’ तो हुई थी वाणी,
प्रयासों से और सायासों से
परंतु,खराश के खरखराहटे,
बीच-बीच में
जहाँ-तहाँ आते और जाते थे॥

परिचय–आप लेखन क्षेत्र में डी.कुमार ‘अजस्र’ के नाम से पहचाने जाते हैं। दुर्गेश कुमार मेघवाल की जन्मतिथि १७ मई १९७७ तथा जन्म स्थान बूंदी (राजस्थान) है। आप बूंदी शहर में इंद्रा कॉलोनी में बसे हुए हैं। हिन्दी में स्नातकोत्तर तक शिक्षा लेने के बाद शिक्षा को कार्यक्षेत्र बना रखा है। सामाजिक क्षेत्र में आप शिक्षक के रुप में जागरूकता फैलाते हैं। लेखन विधा-काव्य और आलेख है,और इसके ज़रिए ही सामाजिक मीडिया पर सक्रिय हैं। आपके लेखन का उद्देश्य-नागरी लिपि की सेवा,मन की सन्तुष्टि,यश प्राप्ति और हो सके तो अर्थ प्राप्ति भी है। २०१८ में श्री मेघवाल की रचना का प्रकाशन साझा काव्य संग्रह में हुआ है। आपकी लेखनी को बाबू बालमुकुंद गुप्त साहित्य सेवा सम्मान आदि मिले हैं।

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