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विजयादशमी पर्व की सीख

अमल श्रीवास्तव 
बिलासपुर(छत्तीसगढ़)

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दशहरा विशेष….

आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को हर वर्ष दशहरा या विजयादशमी का पावन पर्व मनाया जाता है। यह तो सभी जानते हैं कि यह पर्व श्री राम द्वारा रावण को मारने की स्मृति में मनाया जाता है, परन्तु सूक्ष्म स्तर में हमें क्या करना है ? इससे क्या सीख मिलती है ? इस पर विचार करते हैं। रामचरितमानस अर्थात् श्रीराम का चरित्र मन में बसाना,अपने आचरण में मर्यादा का वरण करना। चित्त रुपी सीता,श्रीराम मर्यादा पुरुषोत्तम के साथ होनी चाहिए,लेकिन यदि सूक्ष्म या स्थूल अहंकार रूपी रावण ने चित्त का हरण कर लिया है तो अहंकार का नाश करना और मर्यादा का पुनः वरण करना,रामराज्य मन में पुनः स्थापित करना है।

पहले हनुमान की भूमिका में सीता का पता लगाइए,ध्यान की गहराई में पता करिए क़ि हमारा चित्त वास्तव में कहाँ है। कितने लोगों के प्रति ईर्ष्या है,ईर्ष्या-द्वेष में कहीं चित्त तो नहीं लगा ? कहीं किसी प्रकार का स्थूल या सूक्ष्म अहंकार हमारे अंदर तो नहीं,स्वयं की प्रशंसा सुनने की चाह तो नहीं ? कहीं किसी भी प्रकार का द्वेष,मद,लोभ, दम्भ तो नहीं ? मन में ऐसा तो कुछ तो नहीं,जिसे सद्गुरु नहीं चाहते क़ि वो हमारे अंदर हो ? स्वयं की समीक्षा कर अपनी १० बुराईयों का एक रावण ध्यान में बनाइए। फ़िर भावना कीजिए कि हमारे सद्गुरु श्रीराम के रूप में धनुष लेकर आए हैं,और पहले तीर से वो मन की ईर्ष्या-द्वेष रुपी नाभि पर वार कर उसे नष्ट कर रहे हैं। बारी-बारी से सभी बुराईयों को उन्होंने नष्ट कर दिया।

अब भावना कीजिए हम विकार मुक्त हो गए हैं, हमारे अंदर राम राज्य अर्थात् आत्मीयता-सम्वेदना का विस्तार हो गया है। हमारे आचरण व्यवहार में मर्यादा स्थापित हो गई है। मन बहुत हल्का लग रहा है,हृदय का सारा बोझ मिट गया है। जिसने-जिसने हमारा जाने-अनजाने में बुरा किया,उसे हमने माफ़ कर दिया है,जिसका हमने जाने- अनजाने में बुरा किया-उसने हमें माफ़ कर दिया है। निर्लिप्त निर्विकार भाव सम्वेदना से भरी हमारी आत्मा का पुनर्जन्म हो गया है। हम सब अशुभ भूल गए हैं। अब हमारा चित्त पूर्ण रूपेण सद्गुरु श्रीराम के चरणों में स्थित है। अब समस्त विश्व हमारा मित्र है,हम विश्वामित्र बन गए हैं,इस भाव में खो जाइए। इस तरह के भाव से ही विजय दशमी का त्योहार मनाना सार्थक होगा।

परिचयप्रख्यात कवि,वक्ता,गायत्री साधक,ज्योतिषी और समाजसेवी `एस्ट्रो अमल` का वास्तविक नाम डॉ. शिव शरण श्रीवास्तव हैL `अमल` इनका उप नाम है,जो साहित्यकार मित्रों ने दिया हैL जन्म म.प्र. के कटनी जिले के ग्राम करेला में हुआ हैL गणित विषय से बी.एस-सी.करने के बाद ३ विषयों (हिंदी,संस्कृत,राजनीति शास्त्र)में एम.ए. किया हैL आपने रामायण विशारद की भी उपाधि गीता प्रेस से प्राप्त की है,तथा दिल्ली से पत्रकारिता एवं आलेख संरचना का प्रशिक्षण भी लिया हैL भारतीय संगीत में भी आपकी रूचि है,तथा प्रयाग संगीत समिति से संगीत में डिप्लोमा प्राप्त किया हैL इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ बैंकर्स मुंबई द्वारा आयोजित परीक्षा `सीएआईआईबी` भी उत्तीर्ण की है। ज्योतिष में पी-एच.डी (स्वर्ण पदक)प्राप्त की हैL शतरंज के अच्छे खिलाड़ी `अमल` विभिन्न कवि सम्मलेनों,गोष्ठियों आदि में भाग लेते रहते हैंL मंच संचालन में महारथी अमल की लेखन विधा-गद्य एवं पद्य हैL देश की नामी पत्र-पत्रिकाओं में आपकी रचनाएँ प्रकाशित होती रही हैंL रचनाओं का प्रसारण आकाशवाणी केन्द्रों से भी हो चुका हैL आप विभिन्न धार्मिक,सामाजिक,साहित्यिक एवं सांस्कृतिक संस्थाओं से जुड़े हैंL आप अखिल विश्व गायत्री परिवार के सक्रिय कार्यकर्ता हैं। बचपन से प्रतियोगिताओं में भाग लेकर पुरस्कृत होते रहे हैं,परन्तु महत्वपूर्ण उपलब्धि प्रथम काव्य संकलन ‘अंगारों की चुनौती’ का म.प्र. हिंदी साहित्य सम्मलेन द्वारा प्रकाशन एवं प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री सुन्दरलाल पटवा द्वारा उसका विमोचन एवं छत्तीसगढ़ के प्रथम राज्यपाल दिनेश नंदन सहाय द्वारा सम्मानित किया जाना है। देश की विभिन्न सामाजिक और साहित्यक संस्थाओं द्वारा प्रदत्त आपको सम्मानों की संख्या शतक से भी ज्यादा है। आप बैंक विभिन्न पदों पर काम कर चुके हैं। बहुमुखी प्रतिभा के धनी डॉ. अमल वर्तमान में बिलासपुर (छग) में रहकर ज्योतिष,साहित्य एवं अन्य माध्यमों से समाजसेवा कर रहे हैं। लेखन आपका शौक है।

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