प्रीति तिवारी कश्मीरा ‘वंदना शिवदासी’
सहारनपुर (उप्र)
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जिन प्रीति नहीं हरि चरनन सों,
वो मानस-जनम विफल है जी
हर पल चाहे सुख-साधन जो,
वो जनमों-जनम विकल है जी।
प्रभु ध्यान रमे प्रभु शीश झुके,
जिनकी प्रभु से प्रीति अगाध
जिन हृदय जगत की प्रीति भरी,
प्रभु कहाँ टिकें वो विमल हैं जी।
वो मानस-जनम…
कविता को कवि लिखते-मरते,
शास्त्रों में ज्ञान निहित रहते
पर उससे क्या हो पाता है,
प्रभु भक्ति जो ना अटल है जी।
वो मानस-जनम…
काहे का मान-गुमान करें,
दुःखों ही में प्रभु-ध्यान धरें
रट प्रभु-प्रीतम बिन स्वारथ के,
तब जीवन-जनम सफल है जी।
तब मानस-जनम…
प्रभु-प्रेम बहे इन आँखों से,
पूजन-वंदन हो साँसों से
सब छंद-विधा हों नतमस्तक,
जब हृदय प्रभु-हलचल है जी।
तब मानस-जनम…
जिन प्रीति नहीं हरि चरनन सों,
वो मानस-जनम विफल है जी।
हर पल चाहे सुख-साधन जो,
वो जनमों-जनम विकल है जी…॥