अजय जैन ‘विकल्प’
इंदौर(मध्यप्रदेश)
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हो परिवार
काका-काकी से लाड़
रखिए प्यार।
बिखरे नाते
ऐसे-कैसे सम्बन्ध
स्वार्थ निभाते।
टूटे समाज
घटे प्रेम-संस्कार
बची ना लाज।
पड़ोसी भला
खटकते माँ-बाप
काटते गला।
मन अकेला
कहाँ खुशी का मेला
नहीं ये भला।
सभ्यता बेची
बनावटी है रिश्ते-
चलाई कैंची।
उधारी रिश्ते
यूँ मन में जलन
मत रखिए।
चाहना भला
है संस्कृति बचानी
होगा उद्धार।
ना हो व्यापार
अपनापन रहे
दें सदा प्यार।
बुरा एकल
हो संयुक्त समाज
महान देश।
स्वर्णिम पल
जीवन में हमारे
सदा बहार।
हो आँख नम
कह दो बात सारी
रखो न बोझ॥