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विरोध रंग लाया, विवि ने हिंदी और हिंदीभाषी विरोधी निर्णय लिया वापस

हाल-ए-बंगाल…

आसनसोल (पश्चिम बंगाल)।

जनाक्रोश और विद्वानों के विरोध के चलते उत्तर बंग विश्वविद्यालय को स्नातक स्तर के अपने परीक्षार्थियों को हिन्दी में उत्तर लिखने पर लगी रोक वापस लेनी पड़ी है। यूँ भी कह सकते हैं कि ‘देर आए दुरुस्त आए।’ अब विश्वविद्यालय ने अपना निर्णय वापस ले लिया है।
पश्चिम बंगाल के उत्तर बंग विवि द्वारा स्नातक स्तर के अपने परीक्षार्थियों को (२ महाविद्यालयों को छोड़कर) हिन्दी में उत्तर लिखने पर रोक लगा दी गई थी। इसका अनेक विद्वानों ने विरोध किया, जनता का विरोध भी सामने आया। मीडिया ने भी मुद्दा उठाया। भाषाविद प्रो. अमरनाथ (कलकत्ता) ने लिखा कि इस क्षेत्र की लगभग ८० प्रतिशत जनता गैर बंगाली है और इसीलिए बहुत पहले से इस क्षेत्र के विद्यार्थियों को अंग्रेजी, बंगला, नेपाली तथा हिन्दी में उत्तर लिखने की सुविधा उपलब्ध थी। अब यदि हिन्दी के विद्यार्थियों से यह सुविधा छीन ली जाती है तो माध्यम भाषा के रूप में उनके लिए बंगला या अंग्रेजी ही विकल्प बचेगा जिसमें उत्तर लिखने में उन्हें निस्संदेह बहुत असुविधा होगी। उनका आधा समय तो दूसरे की भाषा सीखने में चला जाएगा। इसके बावजूद कोई भी व्यक्ति अपनी भाषा में जिस तरह से अपने को व्यक्त कर सकता है, उस तरह दूसरे की भाषा में हर्गिज नहीं। यानी, यदि यह फरमान वापस नहीं हुआ तो हिन्दी भाषी विद्यार्थियों का पिछड़ना तय है।
आखिरकार विरोध रंग लाया और विवि को अपना हिंदी और हिंदीभाषी विरोधी निर्णय वापस लेना पड़ा। इसका एक सबक सभी भारतीय भाषा समर्थकों के लिए भी है कि, हम आपस में लड़ने के बजाए अपनी भाषाओं के लिए मिल कर खड़ें हों तो सफलता आज नहीं, तो कल मिलेगी।

(सौजन्य:वैश्विक हिंदी सम्मेलन, मुंबई)

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