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विषम परिस्थितियों में कठोर श्रम से जीवन गढ़ा डॉ. कलाम ने

डाॅ. पूनम अरोरा
ऊधम सिंह नगर(उत्तराखण्ड)
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कभी-कभी समय की दीर्घ अवधि के बाद एक ऐसा मानव इस धरा पर आता है जो अपनी आभा, महिमा, शक्ति, ज्ञान, कौशल, प्रेम एवं दीप्ति को अपने साथ लाता है। इस प्रकार का मनुष्य सभी तुलना से परे होता है। वह स्वयं ही अपने वर्ग का होता है। कहते हैं कि ऐसे विवेकी पुरूष को प्राप्त कर गुण भी अपने को धन्य मानने लगते हैं, क्योंकि इसी में उन्हें अपनी सार्थकता प्रतीत होती है। महामहिम पूर्व राष्ट्रपति डॉ. कलाम के सन्दर्भ में यह बात पूर्णतः चरितार्थ होती है।
डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम ने विषम परिस्थितियों में कठोर श्रम के साथ अपने जीवन को गढ़ा। उनके पास एक बौद्धिक आकर्षण था। भारत के राष्ट्रपति, भारत रत्न, व सर्वोच्च रक्षा वैज्ञानिक की बुलंदियों तक पहुंचने के बाद ही उन्होंने अपने सरल व शांतिपूर्ण जीवन, अपनी निष्ठा, सच्चाई, समर्पण व राष्ट्रसेवा से सबको सम्मोहित किया।
एक नाविक परिवार से सम्बन्ध रखने वाले तथा जीविका अर्जन के लिए समाचार-पत्र बाँटने वाले एक युवक से देश की महत्वपूर्ण शख़्सियत तक के क्रमिक बदलाव को समझना स्वयं में एक दिलचस्प अध्ययन है। डॉ. कलाम ने जुलाई १९९२ से नवंबर १९९९ तक रक्षा मंत्री के वैज्ञानिक सलाहकार, डिपार्टमेंट ऑफ डिफेंस रिसर्च एण्ड डेवलपमेंट के सचिव और डी.आर.डी.ओ के महानिदेशक के रूप में कार्य किया। डॉ. कलाम का विश्वास था कि रक्षा प्रौद्योगिकी को राष्ट्रीय विकास के लिए प्रौद्योगिकीय उपकरण के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है। उन्होंने नवंबर १९९९ से नवंबर २००१ तक कैबिनेट मंत्री के दर्जे के तहत भारत सरकार के मुख्य वैज्ञानिक सलाहकार के रूप में अपनी सेवाएं दी।
देश के महत्वपूर्ण विभिन्न संस्थानों के अध्यक्ष-निदेशक रहते समय डॉ. कलाम वरिष्ठ अधिकारियों द्वारा गंतव्य पर उन्हें लेने के लिए आना पसंद नहीं करते थे। वह निर्दिष्ट करते थे कि उनसे मिलने के लिए कौन आएगा। महत्वपूर्ण बैठकों में यदि कोई किसी वक्ता को टोकता तो वह नाराज हो जाते- उन्हें रोको मत, उन्हें बोलने दो, यह उनकी आदर्श झिड़की होती थी। वे कभी भी अपने मत को दूसरों पर थोपना पसंद नहीं करते। यदि आपका दृष्टिकोण भिन्न है तो वह आपको स्वतंत्र होकर बात करने देते और सारे समय यह योजना बनाते रहते कि, आपको अपने दृष्टिकोण के पास कैसे लाया जाए। वह एक महान रणनीतिज्ञ थे। उनमें अपनी बात मनवा लेने की क्षमता थी। वह कभी तनाव की मनःस्थिति में नहीं रहते और कभी नाराज नहीं होते, परंतु जब उन्हें पता चलता कि किसी ने बेईमानी अथवा छल किया है या उनके नाम का दुरुपयोग किया है तो वे बहुत नाराज होते। अपने कार्यों में अत्यधिक व्यस्तता के कारण विदेश जाना पसंद नहीं करते थे। डी.आर.डी.ओ में ७ वर्षों के दौरान वह केवल ३ या ४ बार विदेश गए। वे अपने नजदीकी लोगों को उनके व्यक्तिगत लाभ के लिए उनके नजदीकी का फायदा नहीं उठाने देते थे।
अपने व्यक्तिगत जीवन में अनुशासित डॉ. कलाम कुरान, श्रीमद्भागवत गीता और तिरूक्कुराल के अध्येता थे। राजनीतिक दृष्टि से उनकी अभिलाषा थी कि, भारत अंतरराष्ट्रीय स्तर पर महत्वपूर्ण स्थान का अधिकारी बने। भारत अपनी रक्षा की दृष्टि से मजबूत हो और निरंतर आर्थिक प्रगति करे और इस तरह से भारत ज्ञान की दृष्टि से सर्वथा संपन्न हो, संपूर्ण विश्व के प्रति संवेदना से संपन्न हो, सबमें विश्व बंधुत्व का भाव हो और भारत एक महाशक्ति बने।
डॉ. कलाम अच्छे लेखक के रूप में भी जाने जाते हैं। अपनी पुस्तक ‘तेजस्वीमन’ को उन्होंने इन शब्दों से आरंभ किया- “स्वप्न स्वप्न स्वप्न…स्वप्न विचारों में परिवर्तित होते हैं और विचार कार्यों में परिणत होते हैं।”
जब डॉ. कलाम सपने देखने की बात करते तो उनका मतलब होता था कि युवा अपने लिए एक लक्ष्य निर्धारित करें, जब तक किसी के पास लक्ष्य ना हो, वह विपथित होता रहता है। यदि कोई दृढ़ता से किसी चीज में विश्वास करता है और केंद्रित तरीके से प्रयास करता है तो उसके पास अपने सपनों को साकार करने का अधिक अवसर होता है। डॉ. कलाम देश के युवाओं से कहते थे कि वे अपने लिए बड़ा लक्ष्य रखें और देश के रूपांतर के लिए कार्य करें। वे कहते थे कि छोटा लक्ष्य एक अपराध है। देश के हित में दृष्टिकोण बेहतरीन मनुष्यों का निर्माण करेगा, साथ ही सोचना प्रगति है। नहीं सोचना उस व्यक्ति, संगठन तथा देश के लिए विनाश है। वह बच्चों को लक्ष्य निर्धारित करने और वर्तमान स्तरों से काफी ऊपर उपलब्धियाँ हासिल करने के लिए उत्साहित करते थे। वह उन्हें अपेक्षा पर खरा न उतरने की मानसिकता से बाहर निकालना चाहते थे। वे युवाओं से कहते थे कि यदि उन्हें भारत का गान गाना है तो भारत को एक विकसित देश बनना होगा, जो गरीबी, अशिक्षा तथा बेरोजगारी से मुक्त हो और आर्थिक समृद्धि ,राष्ट्रीय सुरक्षा तथा आन्तरिक सद्भावना से उत्फुल्ल हों।
डाॅ. कलाम एक पारदर्शी व्यक्ति थे और उनका जीवन खुली किताब था, फिर भी उनकी रचित कुछ पुस्तकें उनके अंतर्मन को व्यक्त करती हैं। ‘अग्नि की उड़ान’ में वह कहते हैं कि कठिनाईयों एवं संकटों के माध्यम से ईश्वर हमें आगे बढ़ने का अवसर प्रदान करता है। राष्ट्र की युवा शक्ति और बच्चों को प्रेरित कर वे भारत को एक महान राष्ट्र बनाने का स्वप्न संजोए हुए देशकार्य में लगे रहे और एक दिन २७ जुलाई २०१५ को इस दुनिया को अलविदा कह चले गए।

परिचय–उत्तराखण्ड के जिले ऊधम सिंह नगर में डॉ. पूनम अरोरा स्थाई रुप से बसी हुई हैं। इनका जन्म २२ अगस्त १९६७ को रुद्रपुर (ऊधम सिंह नगर) में हुआ है। शिक्षा- एम.ए.,एम.एड. एवं पीएच-डी.है। आप कार्यक्षेत्र में शिक्षिका हैं। इनकी लेखन विधा गद्य-पद्य(मुक्तक,संस्मरण,कहानी आदि)है। अभी तक शोध कार्य का प्रकाशन हुआ है। डॉ. अरोरा की दृष्टि में पसंदीदा हिन्दी लेखक-खुशवंत सिंह,अमृता प्रीतम एवं हरिवंश राय बच्चन हैं। पिता को ही प्रेरणापुंज मानने वाली डॉ. पूनम की विशेषज्ञता-शिक्षण व प्रशिक्षण में है। इनका जीवन लक्ष्य-षड दर्शन पर किए शोध कार्य में से वैशेषिक दर्शन,न्याय दर्शन आदि की पुस्तक प्रकाशित करवाकर पुस्तकालयों में रखवाना है,ताकि वो भावी शोधपरक विद्यार्थियों के शोध कार्य में मार्गदर्शक बन सकें। कहानी,संस्मरण आदि रचनाओं से साहित्यिक समृद्धि कर समाजसेवा करना भी है। देश और हिंदी भाषा के प्रति विचार-‘हिंदी भाषा हमारी राष्ट्र भाषा होने के साथ ही अभिव्यक्ति की सरल एवं सहज भाषा है,क्योंकि हिंदी भाषा की लिपि देवनागरी है। हिंदी एवं मातृ भाषा में भावों की अभिव्यक्ति में जो रस आता है, उसकी अनुभूति का अहसास बेहद सुखद होता है।