डॉ. कुमारी कुन्दन
पटना(बिहार)
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नैना भर-भर आये सखी रे,
वो आयें ना आयें इस आस में
जाने वो कौन-सी मजबूरी है,
वो आयें ना मधुमास में।
पंछी चहक-चहक कर बोले,
उन्मुक्त नीले आकाश में
वल्लरिया पेड़ों से लिपटे,
एक-दूजे के प्यार में।
महुआ महके, मंजर फूले,
वसंत के इन्तज़ार में
पीली सरसों खेत में झूमे,
जैसे मादकता हो बयार में।
कोयल कूके, भौंरा गाये,
मधुर रागिनी छेड़े फाग में
हौले-हौले चले पुरवईया,
और राग मिलाए राग में।
जल को छुपाये, दर्द समेटे,
कमल खिले हैं ताल में
दु:ख में जीना हमें सिखाये,
हम जी लें खुले आकाश में।
होनी को भला कौन टाले,
लिखें हैं जो मेरे भाग में।
जीने की जागी थी ललक,
पर आये ना वो मधुमास में॥