तारा प्रजापत ‘प्रीत’
रातानाड़ा(राजस्थान)
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दर्द में जीने वालों का
दर्द भला कोई क्या समझे,
कहाँ देखता है कोई
उनकी आँखों की नमी,
बंजर-सी है
उनके सपनों की ज़मीं।
अंधेरों की बस्ती में
अजनबियों से पलते हैं,
चूल्हे बुझे हुए हैं
मगर दिल जलते हैं।
मायूस चेहरों पर
बेबसी की लकीर है,
भूख और प्यास
उनकी तक़दीर है।
चाँद को रोटी समझ
उम्मीद लिए तकते हैं,
चाह कर भी वो वहां तक
नहीं पहुँच सकते हैं।
हाथ जो बौने हैं
भीगे तकिए,
फटे बिछोने हैं,
हँसने को घर नहीं
रोने को कई कोने हैं।
खाते हैं ग़म
आँसू पीते हैं।
मर-मर कर,
वो शापित-सा
जीवन जीते हैं॥
परिचय– श्रीमती तारा प्रजापत का उपनाम ‘प्रीत’ है।आपका नाता राज्य राजस्थान के जोधपुर स्थित रातानाड़ा स्थित गायत्री विहार से है। जन्मतिथि १ जून १९५७ और जन्म स्थान-बीकानेर (राज.) ही है। स्नातक(बी.ए.) तक शिक्षित प्रीत का कार्यक्षेत्र-गृहस्थी है। कई पत्रिकाओं और दो पुस्तकों में भी आपकी रचनाएँ प्रकाशित हुई हैं,तो अन्य माध्यमों में भी प्रसारित हैं। आपके लेखन का उद्देश्य पसंद का आम करना है। लेखन विधा में कविता,हाइकु,मुक्तक,ग़ज़ल रचती हैं। आपकी विशेष उपलब्धि-आकाशवाणी पर कविताओं का प्रसारण होना है।