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शारदे बरसो

डॉ.राम कुमार झा ‘निकुंज’
बेंगलुरु (कर्नाटक)

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वसंत पंचमी: ज्ञान, कला और संस्कृति का उत्सव…

शुक्लपक्ष दिन पञ्चमी, वासंती मधुमास।
सरस्वती पूजन सविधि, अरुणिम ज्ञान प्रभास॥

करो कृपा माँ शारदे, मिटा त्रिविध मन पाप।
सदाचार जीवन चरित, हरो मोह मद ताप॥

हंसवाहिनी ज्ञानदा, श्वेताम्बुज शुभ वेद।
वसन्त पंचमी साधना, करें असुर नर देव॥

बनो ज्ञान रक्षा कवच, समर कुमति अज्ञान।
भरो शारदे अरुणिमा,विजय सुपथ यश मान॥

आराधक नर देवता, ज्ञान शक्ति अवलम्ब।
अन्धकार अज्ञानता, दूर करो जगदम्ब॥

सदा सर्वदा भारती, कृपासिंधु जगधार।
ज्ञान चतुर्दश वाहिनी, सोलह कला अपार॥

नृत्य गीत संगीत स्वर, नवरस गुण ध्वनि रीति।
सप्त सिन्धु जय भारती, अलंकार उद्गीति॥

सरस्वती वरदे शुभे, दे सन्नधि माँ ज्ञान।
ब्रह्माणी कमला धवल, स्वस्ति लोक प्रतिमान॥

वर दो वीणावादिनी, रचूँ सुयश परमार्थ।
सकल विषम बाधा सुपथ, दो प्रकाश पुरुषार्थ॥

दीप शिखा जीवन जले, विद्या रत्न महान।
नित अपूर्व अक्षय सदा, बढ़े ज्ञान व्यय मान॥

करो प्रकाशित ज्ञानदा, लोभ मोह मद शोक।
संस्कार संस्कृति वतन, मानवता आलोक॥

आराधन माँ भारती, वेद सनातन रीति।
हंसवाहिनी शारदे, बरसो विद्या प्रीति॥

परिचय-डॉ.राम कुमार झा का साहित्यिक उपनाम ‘निकुंज’ है। १४ जुलाई १९६६ को दरभंगा में जन्मे डॉ. झा का वर्तमान निवास बेंगलुरु (कर्नाटक)में,जबकि स्थाई पता-दिल्ली स्थित एन.सी.आर.(गाज़ियाबाद)है। हिन्दी,संस्कृत,अंग्रेजी,मैथिली,बंगला, नेपाली,असमिया,भोजपुरी एवं डोगरी आदि भाषाओं का ज्ञान रखने वाले श्री झा का संबंध शहर लोनी(गाजि़याबाद उत्तर प्रदेश)से है। शिक्षा एम.ए.(हिन्दी, संस्कृत,इतिहास),बी.एड.,एल.एल.बी., पीएच-डी. और जे.आर.एफ. है। आपका कार्यक्षेत्र-वरिष्ठ अध्यापक (मल्लेश्वरम्,बेंगलूरु) का है। सामाजिक गतिविधि के अंतर्गत आप हिंंदी भाषा के प्रसार-प्रचार में ५० से अधिक राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय साहित्यिक सामाजिक सांस्कृतिक संस्थाओं से जुड़कर सक्रिय हैं। लेखन विधा-मुक्तक,छन्दबद्ध काव्य,कथा,गीत,लेख ,ग़ज़ल और समालोचना है। प्रकाशन में डॉ.झा के खाते में काव्य संग्रह,दोहा मुक्तावली,कराहती संवेदनाएँ(शीघ्र ही)प्रस्तावित हैं,तो संस्कृत में महाभारते अंतर्राष्ट्रीय-सम्बन्धः कूटनीतिश्च(समालोचनात्मक ग्रन्थ) एवं सूक्ति-नवनीतम् भी आने वाली है। विभिन्न अखबारों में भी आपकी रचनाएँ प्रकाशित हैं। विशेष उपलब्धि-साहित्यिक संस्था का व्यवस्थापक सदस्य,मानद कवि से अलंकृत और एक संस्था का पूर्व महासचिव होना है। इनकी लेखनी का उद्देश्य-हिन्दी साहित्य का विशेषकर अहिन्दी भाषा भाषियों में लेखन माध्यम से प्रचार-प्रसार सह सेवा करना है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-महाप्राण सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ है। प्रेरणा पुंज- वैयाकरण झा(सह कवि स्व.पं. शिवशंकर झा)और डॉ.भगवतीचरण मिश्र है। आपकी विशेषज्ञता दोहा लेखन,मुक्तक काव्य और समालोचन सह रंगकर्मी की है। देश और हिन्दी भाषा के प्रति आपके विचार(दोहा)-
स्वभाषा सम्मान बढ़े,देश-भक्ति अभिमान।
जिसने दी है जिंदगी,बढ़ा शान दूँ जान॥ 
ऋण चुका मैं धन्य बनूँ,जो दी भाषा ज्ञान।
हिन्दी मेरी रूह है,जो भारत पहचान॥