राजबाला शर्मा ‘दीप’
अजमेर(राजस्थान)
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रंग और हम(होली स्पर्धा विशेष )…
चली फगुनियां सरस बयार,
सखी री होली आई है
छाई है अजब बहार,
सखी री होली आई है।
रंग-बिरंगे सब नर-नारी,
कौन तुम्हारे हैं,कौन हमारी
रंग-गुलाल में रंग गए सारे,
किसकी साली,कौन महतारी
चेहरे सभी के गुलनार,
सखी री होली आई है…।
हाथ पकड़ ना करो जोरा-जोरी,
भोली नहीं ये बरसाने की छोरी
पी लिए हो भांग का प्याला,
नशा उतारेगी ब्रज की बाला
बरसेगा रंग धुआंधार,
सखी री होली आई है…।
गलियों में मच रही धूम है,
बन के राधा सब मस्ती में चूर हैं
कहां छुपा है कान्हा हमको बताओ ?
खेलेंगे उससे होली जरूर है।
रास रचाए एक बार,
सखी री होली आई है…॥
परिचय– राजबाला शर्मा का साहित्यिक उपनाम-दीप है। १४ सितम्बर १९५२ को भरतपुर (राज.)में जन्मीं राजबाला शर्मा का वर्तमान बसेरा अजमेर (राजस्थान)में है। स्थाई रुप से अजमेर निवासी दीप को भाषा ज्ञान-हिंदी एवं बृज का है। कार्यक्षेत्र-गृहिणी का है। इनकी लेखन विधा-कविता,कहानी, गज़ल है। माँ और इंतजार-साझा पुस्तक आपके खाते में है। लेखनी का उद्देश्य-जन जागरण तथा आत्मसंतुष्टि है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-शरदचंद्र, प्रेमचंद्र और नागार्जुन हैं। आपके लिए प्रेरणा पुंज-विवेकानंद जी हैं। सबके लिए संदेश-‘सत्यमेव जयते’ का है।