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कांग्रेस और जी-हुजूर-२३

डॉ.वेदप्रताप वैदिक
गुड़गांव (दिल्ली) 
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५ राज्यों के चुनाव में करारी हार के बाद कांग्रेस की कार्यसमिति की बैठक में वही हुआ,जो पहले भी हुआ करता था। कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने कहा कि यदि पार्टी कहे तो हम तीनों (माँ,बेटा और बेटी) इस्तीफा देने को तैयार हैं। इस बैठक में एक भी कांग्रेसी की हिम्मत नहीं पड़ी कि वह नेतृत्व-परिवर्तन की बात खुलकर कहता। जो जी-२३ समूह कहलाता है,जिस समूह ने कांग्रेस के पुनरोद्धार के लिए आवाज बुलंद की थी,उसके कई मुखर सदस्य भी इस बैठक में मौजूद थे लेकिन जी-२३ अब जी-हुजूर-२३ ही सिद्ध हुए। एक आदमी की भी हिम्मत नहीं पड़ी कि वह कांग्रेस के नए नेतृत्व की बात छेड़ता। कांग्रेसियों पर तरस आता है कि उनमें से एक भी नेता ऐसा नहीं निकला ,जो खम ठोककर मैदान में कूद जाता। वह कैसे कूदे ?,पिछले ५०-५५ साल में कांग्रेस कोई राजनीतिक पार्टी नहीं रह गई है। वह प्राइवेट लिमिटेड कंपनी बन गई है। उसमें कई अत्यंत सुयोग्य,प्रभावशाली और लोकप्रिय नेता अब भी हैं लेकिन वे नेशनल कांग्रेस (एनसी) याने ‘नौकर-चाकर कांग्रेस’ बन गए हैं। मालिक कुर्सी खाली करने को तैयार हैं,लेकिन नौकरों की हिम्मत नहीं पड़ रही है कि वे उस पर बैठ जाएं। उन्हें दरी पर बैठे रहने की लत पड़ गई है। यदि कांग्रेस का नेतृत्व लंगड़ा हो चुका है तो उसके कार्यकर्ता लकवाग्रस्त हो चुके हैं। कांग्रेस की यह बीमारी हमारे लोकतंत्र की महामारी बन गई है। देश की लगभग सभी पार्टियां इस महामारी की शिकार हो चुकी हैं। भारतीय मतदाताओं के ५० प्रतिशत से भी ज्यादा मत प्रांतीय पार्टियों को जाते हैं। ये सब पार्टियां पारिवारिक बन गई हैं। कांग्रेस चाहे तो आज भी देश के लोकतंत्र में जान फूंक सकती है। देश का एक भी जिला ऐसा नहीं है,जिसमें कांग्रेस विद्यमान न हो। देश की विधानसभाओं में आज भाजपा के यदि १३७३ सदस्य हैं तो कांग्रेस के ६९२ हैं,लेकिन पिछले साढ़े ६ साल में कांग्रेस ४९ चुनावों में से ३९ हार चुकी है। उसके पास नेता और नीति,दोनों का अभाव है। मोदी सरकार की नीतियों की उल्टी-सीधी आलोचना ही उसका एकमात्र धंधा रह गया है। उसके पास भारत को महासंपन्न और महाशक्तिशाली बनाने का कोई वैकल्पिक नक्शा भी नहीं है। कांग्रेस अब पचमढ़ी की तरह नया ‘चिंतन-शिविर’ करने वाली है। उसे अब चिंतन शिविर नहीं,चिंता शिविर करने की जरुरत है। यदि कांग्रेस का ब्रेक फेल हो गया तो भारतीय लोकतंत्र की गाड़ी कहां जाकर टकराएगी,कुछ नहीं कहा जा सकता।

परिचय– डाॅ.वेदप्रताप वैदिक की गणना उन राष्ट्रीय अग्रदूतों में होती है,जिन्होंने हिंदी को मौलिक चिंतन की भाषा बनाया और भारतीय भाषाओं को उनका उचित स्थान दिलवाने के लिए सतत संघर्ष और त्याग किया। पत्रकारिता सहित राजनीतिक चिंतन, अंतरराष्ट्रीय राजनीति और हिंदी के लिए अपूर्व संघर्ष आदि अनेक क्षेत्रों में एकसाथ मूर्धन्यता प्रदर्शित करने वाले डाॅ.वैदिक का जन्म ३० दिसम्बर १९४४ को इंदौर में हुआ। आप रुसी, फारसी, जर्मन और संस्कृत भाषा के जानकार हैं। अपनी पीएच.डी. के शोध कार्य के दौरान कई विदेशी विश्वविद्यालयों में अध्ययन और शोध किया। अंतर्राष्ट्रीय राजनीति में पीएच.डी. की उपाधि प्राप्त करके आप भारत के ऐसे पहले विद्वान हैं, जिन्होंने अंतरराष्ट्रीय राजनीति का शोध-ग्रंथ हिन्दी में लिखा है। इस पर उनका निष्कासन हुआ तो डाॅ. राममनोहर लोहिया,मधु लिमये,आचार्य कृपालानी,इंदिरा गांधी,गुरू गोलवलकर,दीनदयाल उपाध्याय, अटल बिहारी वाजपेयी सहित डाॅ. हरिवंशराय बच्चन जैसे कई नामी लोगों ने आपका डटकर समर्थन किया। सभी दलों के समर्थन से तब पहली बार उच्च शोध के लिए भारतीय भाषाओं के द्वार खुले। श्री वैदिक ने अपनी पहली जेल-यात्रा सिर्फ १३ वर्ष की आयु में हिंदी सत्याग्रही के तौर पर १९५७ में पटियाला जेल में की। कई भारतीय और विदेशी प्रधानमंत्रियों के व्यक्तिगत मित्र और अनौपचारिक सलाहकार डॉ.वैदिक लगभग ८० देशों की कूटनीतिक और अकादमिक यात्राएं कर चुके हैं। बड़ी उपलब्धि यह भी है कि १९९९ में संयुक्त राष्ट्र संघ में भारत का प्रतिनिधित्व किया है। आप पिछले ६० वर्ष में हजारों लेख लिख और भाषण दे चुके हैं। लगभग १० वर्ष तक समाचार समिति के संस्थापक-संपादक और उसके पहले अखबार के संपादक भी रहे हैं। फिलहाल दिल्ली तथा प्रदेशों और विदेशों के लगभग २०० समाचार पत्रों में भारतीय राजनीति और अंतरराष्ट्रीय राजनीति पर आपके लेख निरन्तर प्रकाशित होते हैं। आपको छात्र-काल में वक्तृत्व के अनेक अखिल भारतीय पुरस्कार मिले हैं तो भारतीय और विदेशी विश्वविद्यालयों में विशेष व्याख्यान दिए एवं अनेक अन्तरराष्ट्रीय सम्मेलनों में भारत का प्रतिनिधित्व किया है। आपकी प्रमुख पुस्तकें- ‘अफगानिस्तान में सोवियत-अमेरिकी प्रतिस्पर्धा’, ‘अंग्रेजी हटाओ:क्यों और कैसे ?’, ‘हिन्दी पत्रकारिता-विविध आयाम’,‘भारतीय विदेश नीतिः नए दिशा संकेत’,‘एथनिक क्राइसिस इन श्रीलंका:इंडियाज आॅप्शन्स’,‘हिन्दी का संपूर्ण समाचार-पत्र कैसा हो ?’ और ‘वर्तमान भारत’ आदि हैं। आप अनेक राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कारों और सम्मानों से विभूषित हैं,जिसमें विश्व हिन्दी सम्मान (२००३),महात्मा गांधी सम्मान (२००८),दिनकर शिखर सम्मान,पुरुषोत्तम टंडन स्वर्ण पदक, गोविंद वल्लभ पंत पुरस्कार,हिन्दी अकादमी सम्मान सहित लोहिया सम्मान आदि हैं। गतिविधि के तहत डॉ.वैदिक अनेक न्यास, संस्थाओं और संगठनों में सक्रिय हैं तो भारतीय भाषा सम्मेलन एवं भारतीय विदेश नीति परिषद से भी जुड़े हुए हैं। पेशे से आपकी वृत्ति-सम्पादकीय निदेशक (भारतीय भाषाओं का महापोर्टल) तथा लगभग दर्जनभर प्रमुख अखबारों के लिए नियमित स्तंभ-लेखन की है। आपकी शिक्षा बी.ए.,एम.ए. (राजनीति शास्त्र),संस्कृत (सातवलेकर परीक्षा), रूसी और फारसी भाषा है। पिछले ३० वर्षों में अनेक भारतीय एवं विदेशी विश्वविद्यालयों में अन्तरराष्ट्रीय राजनीति एवं पत्रकारिता पर अध्यापन कार्यक्रम चलाते रहे हैं। भारत सरकार की अनेक सलाहकार समितियों के सदस्य,अंतरराष्ट्रीय राजनीति के विशेषज्ञ और हिंदी को विश्व भाषा के रूप में प्रतिष्ठित करने के लिए कृतसंकल्पित डॉ.वैदिक का निवास दिल्ली स्थित गुड़गांव में है।

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