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सनातन संस्कृति का समागम

भागचंद ठाकुर
कुल्लू (हिमाचल प्रदेश)
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प्रथम यज्ञ भूखंड धरा पर आर्य का आगाज है,
है पावन संगम की धरती यह प्रयागराज है।

कण-कण में भगवान बसे पग-पग स्वर्ग से धाम यहाँ,
गंगा, यमुना, सरस्वती में चरण पखारे राम यहाँ।

प्रयागराज की पावन भूमि पर उमड़ा जन सैलाब है,
१४४ वर्ष बाद बना अद्भुत संयोग महाकुंभ का आगाज है।

जुलूस और साधुओं की यहाँ पर है टोली,
हर चेहरे पर दिखती है यहाँ भक्ति की रंगोली।

कहीं नागा साधु तो कहीं अघोरी बाबा की अद्भुत लीला,
कहीं अखंड अखाड़े तो कहीं तपस्वियों का लगा है जमघट।

युग बदले, सदियाँ बदली शासन बदले भाषाएँ बदली,
पर सनातन संस्कृति यहाँ कभी नहीं बदली।

आस्था का सबसे बड़ा समागम चल रहा अनवरत अभिराम,
हे भाई! त्रिवेणी संगम में जरूर करके आना स्नान।

अद्भुत तपस्वी नागा साधु अद्भुत उनके क्रिया-कलाप,
कोई वर्षों से खड़े हैं एक पाँव पर कोई नहीं झुकाते अपना हाथ।

किसी ने अनाज उगा रखा है सर पर, किसी ने पाले है जटा में साँप,
इन महान आत्माओं के दर्शन मात्र से धुल जाते हैं सारे पाप।

अद्भुत अलौकिक छवि यहाँ की साधु संतों का डेरा है,
ऋषि-मुनियों से शोभित सनातनियों का बसेरा है।

चौकन्ना शासन-प्रशासन, है उचित इंतजाम, चप्पे-चप्पे पर है पुलिस का पहरा,
आस्था का समुंदर यहाँ है पानी से गहरा।

कलाग्राम मैदान में दिखता है सभी राज्यों की संस्कृति का समागम एक समान,
हे भाई! त्रिवेणी संगम में जरूर करके आना स्नान।

प्रयागराज की पावन धरा पर सजा है दुनिया का सबसे बड़ा मेला,
कहीं तमाम आखाड़ों के संत, तो कहीं मिलता है आईआईटियन बाबा अकेला।

देश-विदेश के सनातनियों की दिखती है यहाँ अटूट आस्था,
‘टेंट सिटी’ में हैं रंग-बिरंगे सुंदर टेंट की व्यवस्था।

हे भाई! रुपए बचा-बचाकर क्या पाएगा ?
अब महाकुंभ १४४ वर्षों बाद आएगा,

नेत्र बंद करके डुबकी लगाने चले जाना,
नहीं तो कालांतर में बहुत पछताएगा।

रास्ते में जगह-जगह है विश्राम की व्यवस्था,
सस्ता, स्वादिष्ट भोजन, यातायात का है उचित ताना-बाना।

वह मिट्टी के गिलास की गर्मा-गर्म चाय,
त्रिवेणी संगम के नीले जल में डुबकी लगाए।

मन निर्मल और आत्मा आनंदित हो जाए,
है भाई! प्रयागराज त्रिवेणी संगम में जरूर डुबकी लगाना॥