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सफलता

मोनिका शर्मा
मुंबई(महाराष्ट्र)
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सरस्वती विद्यालय में रुक्मिणी जी का आगमन एक हिन्दी शिक्षिका के रूप में हुआ। वह छठी कक्षा को हिन्दी पढ़ाती। पहले कुछ दिनों में उन्होंने बच्चों से बातचीत कर उन्हें जाना और हर एक बच्चे को परख लिया। कक्षा के सभी बच्चे पढ़ाई में अव्वल एवं खेलकूद में भी अच्छे थे,परंतु कक्षा में एक बच्चा ऐसा था जो पढ़ाई में भी कमजोर और अन्य किसी भी कार्य को सफलतापूर्वक नहीं कर पाता था। रुक्मिणी जी को लगा कि उन्हें इस बच्चे को अपनी काबिलियत का एहसास कराना होगा,ताकि वह भी अन्य बच्चों के साथ घुल-मिल सके।
एक दिन वह कक्षा में आई और सभी बच्चों से कुछ सवाल पूछे। नितिन बाकी बच्चों की तुलना में एकमात्र कमजोर छात्र था। रुक्मिणी जी ने नितिन को भी जवाब देने हेतु उठाया। नितिन के खड़े होते ही राजू और मनोज की हँसी छूट गईl मनोज ने कहा,-“मैडम जी, क्यों आप अपना समय बर्बाद कर रही हैं।”
“हाँ,हाँ यह तो बुद्धू है,कहाँ से जवाब देगा”, राजू ने हँसते-हँसते कहा। नितिन हताश हो गया,फिर भी उसने जवाब देने का प्रयास किया। उसे खुश करने के लिए रुक्मिणी जी ने पूरी कक्षा से कह तालियाँ बजवाई,पर राजू और मनोज की हँसी थमी नहीं।
अगले दिन रुक्मिणी जी कक्षा में आई,अपना पाठ पढ़ाया और बच्चों से कुछ प्रश्न किए सिवाय राजू और मनोज के। राजू ने अंदाज़ा लगाते हुए कहा,-“शायद आज मैडम जी कम प्रश्न लाई है।” कुछ दिनों तक ऐसा ही चलता रहा,रुक्मिणी जी कक्षा में आती,अपना पाठ पढ़ाती और प्रश्नों के लिए राजू और मनोज को छोड़कर अन्य सभी बच्चों को शामिल करती। दो-तीन दिन तक तो वे दोनों शांत थे, पर बाद में उन्हें भी लगने लगा कि,रुक्मिणी जी उन पर कम ध्यान दे रही थी।
एक दिन कक्षा के बाद वे दोनों रुक्मिणी जी के पास गए और फरियाद की,-“आप सभी बच्चों पर लक्ष्य देती हैं,फिर हम पर क्यों नहीं ? यह तो नाइंसाफ़ी है।”
तब रुक्मिणी जी कहती हैं,-“नाइंसाफ़ी कैसी ? मनोज एक काम करो तुम राजू को देखकर संतुष्ट हो जाना कि,मैडम सिर्फ मुझ पर ही नहीं, बल्कि राजू पर भी ध्यान नहीं दे रही और राजू तुम मनोज को देखकर। इससे तुम्हें ऐसा नहीं लगेगा कि मैं अकेला छात्र हूँ,जिस पर ध्यान नहीं दिया जा रहा।”
यह सुनकर मनोज ने ऊँचे स्वर में कहा,-“मैडम,गुरु होने के नाते आपका धर्म है कि आप सभी बच्चों पर समान ध्यान दें।”
रुक्मिणी जी कहती है,-“फिर एक गुरु होने के नाते मैं नितिन पर ध्यान न देकर उसके साथ नाइंसाफ़ी कैसे कर सकती हूँ ? मैं कैसे उसे ऐसे समय में अकेला छोड़ दूँ,जब उसे मेरे मार्गदर्शन की आवश्यकता है। कक्षा में अगर मैं दो छात्रों पर ध्यान नहीं दे रही तो,तुम्हें तकलीफ़ हो रही हैl फिर नितिन को कितना बुरा लगता होगा,जब साठ छात्रों की कक्षा में उनसठ छात्रों पर ध्यान दिया जाता है,और केवल एक छात्र को नजरअंदाज किया जाता है। मैं शिक्षक के नाम पर एक कलंक हूँ,यदि मैं ऐसा करती हूँ।”
राजू और मनोज को अपनी गलती का एहसास हुआ और उन्होंने रुक्मिणी जी से क्षमा माँगी। जाने से पहले मनोज ने सवाल किया,-“मैडम जी,क्या नितिन एक काबिल इनसान बन पाएगा ?” रुक्मिणी जी सिर्फ इतना ही कहती हैं-,”मार्गदर्शन सही हो तो एक छोटा-सा दीया भी किसी सूरज से कम नहीं।”
नितिन पास खड़ा सब सुन रहा था,सुनने के बाद उसके मन में कुछ कर दिखाने की इच्छा आई। वह खूब मेहनत करता है,दिन- रात पढ़ता है और आखिर एक दिन एक बड़ा प्राध्यापक(प्रोफेसर) बन जाता है।
सरकार द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम में नितिन मुख्य अतिथि के रूप में मौजूद होता है। वहाँ एक व्यक्ति नितिन से प्रश्न करता है,-“आप अपने जीवन के यहाँ तक के सफ़र को कैसे बयान करेंगें,और अपनी सफलता का श्रेय किसे देंगे ?”
नितिन कहता है,-“मैं वो मुसाफ़िर था जिसके पास मंजिल तो थी,पर रास्ता दिखाने वाला कोई नहीं था। मैं वो दीया था जिसमें घी और बाती तो थी,पर रोशनी लगाने वाला कोई नहीं था। मेरे पास नाव तो थी,पर पार लगाने वाला कोई नहीं था। मैं व्यंजनों के वर्ग में ऐसा अकेला वर्ण था,जिसका स्थान तो था पर स्वर का सहारा नहीं था,जिस वजह से मैं अधूरा था। एक दिन,मेरी जिदंगी की किताब के खाली पन्ने रंग-बिरंगे से लगने लगे,नयी कड़ी की शुरुआत हुई,जो की मेरे गुरु ने। भटके मुसाफिर को इशारा मिल गया,जैसे डूबते को तिनके का सहारा मिल गया,डूबी कश्ती को किनारा मिल गया
और सूने दीपक को उजाला मिल गया,सही-गलत की सीख मिल गई
और गुरु के रूप में एक बेहतर रफ़ीक(दोस्त,साथी,सहायक) मिल गई,जिसने स्वरों का सहारा दे मुझे एक पूरा व्यंजन बनायाl मुंतज़िर (प्रतीक्षा करनेवाला) बैठता था उन व्यंजनों के वर्ग में,उसे भी एक काबिल व्यंजन बनाया। मैं अपनी सफलता का श्रेय मेरे गुरु को देना चाहूँगा।” यह सुनकर सबने खूब तालियाँ बजाईl

परिचय-मोनिका शर्मा की जन्म तिथि १४ मई २००४ तथा जन्म स्थान राजस्थान हैl इनका निवास नवी मुंबई में हैl यह फिलहाल नवी मुंबई स्थित विद्यालय में अध्ययनरत है। उपलब्धि औरंगाबाद में महाराष्ट्र का प्रतिनिधित्व करते हुए फुटसाल खेल में प्रथम स्थान और हिंदी भाषण प्रतियोगिता में तीसरे स्थान पर आना है। हिंदी-अंग्रेजी में कविता,कहानी और निबंध लिखने की शौकीन सुश्री शर्मा की मुख्य रुचि लेखन ही है।

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