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समृद्धि के बावजूद धनाढ्यों का पलायन क्यों ?

ललित गर्ग

दिल्ली
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भारत दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थ-व्यवस्था बनने के साथ समृद्धि और संपन्नता के नए शिखरों पर आरोहण कर रहा है। भारत की आर्थिक प्रगति सकारात्मक दिशा में बढ़ रही है। हालिया आँकड़ों के अनुसार-देश में सोने का भंडार नई ऊँचाई पर पहुँच गया है, दूसरी तरफ स्टार्ट-अप की संख्या में भी तेजी से बढ़ोतरी हो रही है। इन सकारात्मक दिशाओं एवं आर्थिक उजालों के बीच कुछ देश की सोचने वाली स्थितियाँ भी हमें आत्ममंथन को प्रेरित कर रही है। ऐसी ही एक सोचनीय एवं चिन्ताजनक स्थिति है- देश की बढ़ती शोभा एवं सम्पन्नता के बावजूद अमीर व प्रतिभावान लोग देश छोड़कर क्यों जा रहे हैं ? वर्ष २०२३ में लगभग ५१०० करोड़पतियों ने देश छोड़ा और २०२४ में ४३०० के भारत से पलायन करने का अनुमान है। यह हमारी संपन्नता का ही क्षरण एवं हमारी आर्थिक विकासमूलक यात्रा पर एक बदनुमा दाग है। इन स्थितियों पर नियंत्रण जरूरी है और इसके लिए हमें अपनी कमियों के प्रति ज्यादा ईमानदार होना पड़ेगा।
सशक्त एवं विकसित भारत निर्मित करने, उसे दुनिया की आर्थिक महाशक्ति बनाने और अर्थव्यवस्था की सुनहरी तस्वीर निर्मित करने के लिए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी निरन्तर प्रयास कर रहे हैं। मोदी सरकार की राजनीतिक हितों से ज्यादा देशहित को सामने रखने की यह पहल प्रेरक है। बुनियादी ढाँचागत विकास को प्राथमिकता देने के लिए मौजूदा सरकार की सराहना करनी ही चाहिए। आर्थिक वृृद्धि को आवश्यक आधार प्रदान करने के साथ ही बुनियादी ढाँचागत परियोजनाएं रोजगार सृजन के दृष्टिकोण से भी आवश्यक होती है। मोदी सरकार की नियोजित एवं दूरगामी सोच का ही परिणाम है रिजर्व बैंक के पास सोने के भंडार में लगातार वृद्धि हो रही है। पूर्व सरकारें देश का सोना गिरवी रखती रही है, लेकिन मोदी सरकार ने देश का सोना विदेशों से स्वदेश लाने के अनूठे उपक्रम किए हैं। यही कारण है कि भारतीयों के पास घरों में २५ हजार टन से ज्यादा सोना है। यह स्वर्ण भंडार में पहले पायदान पर खड़े अमेरिका के ८९६५ टन से ३ गुना है।
भारत में आर्थिक गतिविधियाँ नए शिखरों पर सवार है, क्योंकि भारत में डीमैट खाते १७ करोड़ के पार पहुँच चुके हैं। देश के कुल डीमैट खाते अब अन्य देशों की तुलना में नौवें स्थान पर है। भारत दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा स्टार्ट-अप इकोसिस्टम है, जिसमें १,४० हजार से अधिक पंजीकृत स्टार्ट-अप और हर २० दिन में एक यूनिकॉर्न (उन स्टार्ट-अप को कहा जाता है, जिनका मूल्यांकन १ अरब डॉलर हो जाता है) उभर रहा है। भारतीय तकनीकी स्टार्ट-अप ने २०२४ की पहली छमाही में ४.१ अरब डॉलर की राशि जुटाई, जो बीते वर्ष की इसी छमाही से ४ फीसदी ज्यादा है। राशि जुटाने में भारत का चौथा स्थान है। इन उजले आँकड़ों में जहां नरेंद्र मोदी की सोच ‘हर हाथ को काम’ का संकल्प साकार होता हुआ दिखाई दे रहा है, वहीं ‘सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास’ का प्रभाव भी स्पष्ट रूप से उजागर हो रहा है।
दुनिया की तीसरी बड़ी अर्थव्यवस्था की ओर अग्रसर भारत ने अनेक क्षेत्रों में नए कीर्तिमान स्थापित किए, लेकिन श्रम शक्ति की ओर ज्यादा तवज्जो देने की जरूरत है, क्योंकि सकल घरेलू उत्पादन (जीडीपी) देश के आम नागरिकों की समृद्धि का पैमाना नहीं है। जिस पैमाने से देश के आम लोगों की समृद्धि मापी जाती है, उसे प्रति व्यक्ति आय कहते हैं।
इस बार की दीपावली न केवल खुशी, बल्कि सभी के लिए प्रेरणा का अवसर बनी है, बाजार से समाज तक और उद्यमी से सरकार तक, सभी के लिए दीपावली समृद्धि का एक नया उजाला लेकर आयी। इस बार बाजार में कुल ४.२५ लाख करोड़ रुपए की खरीदारी का अनुमान है। इन नयी आर्थिक उपलब्धियों के बीच धनाढ्य परिवारों का भारत से पलायन कर विदेशों में बसने का सिलसिला चिन्ताजनक है। क्या कारण है कि लोगों को देश की बजाय विदेश की धरती रहने, जीने, व्यापार करने, शिक्षा एवं रोजगार के लिए अधिक सुविधाजनक लगती है। एक रिपोर्ट के अनुसार- उच्च निवल मूल्य वाली व्यक्तिगत आबादी के २०३१ तक ८० प्रतिशत की उल्लेखनीय वृद्धि का अनुमान है, जो इस अवधि के दौरान भारत को दुनिया के सबसे तेजी से बढ़ते धन बाजारों में से एक के रूप में स्थापित करता है। यह वृद्धि मुख्य रूप से देश के भीतर संपन्न वित्तीय सेवाओं, स्वास्थ्य सेवा और प्रौद्योगिकी क्षेत्रों द्वारा संचालित होगी। इसमें समृद्ध व्यक्तियों के भारत लौटने की प्रवृत्ति को भी देखा जा रहा है, और जैसे-जैसे जीवन स्तर में सुधार जारी है, यह अधिक संख्या में धनवान व्यक्तियों के भारत वापस आने का अनुमान लगाता है। अब प्रश्न है कि भारत के करोड़पति आखिर नए बनते भारत एवं उसकी चिकित्सा, शिक्षा, आर्थिक, राजनीतिक, प्रशासनिक उज्ज्वलता के बावजूद क्यों विदेश जा रहे हैं ? अति समृद्ध हमारे देशवासियों के देश छोड़ कर कहीं और बसने की तैयारी की ताजा रिपोर्टें बहुत कुछ कहती है। अति समृद्ध भारतीयों का अपना सब-कुछ समेट कर हमेशा के लिए भारत से जुदा हो जाने का अनुमान अनेक प्रश्न खड़े करता है, सरकार को इन प्रश्नों पर गौर करने की जरूरत है।

कारणों की लम्बी फेहरिस्त में मूल है देश में अशांति, आतंक, जटिल कर-कानून व्यवस्था और हिंसा का ताण्डव होना ? कारण है -शासन, सत्ता, संग्रह और पद के मद में चूर यह तीसरा राजनीतिक आदमी, जिसने जनतंत्र द्वारा प्राप्त अधिकारों का दुरुपयोग किया और जनतंत्र की रीढ़ को तोड़ दिया है। कृषि प्रधान देश को कुर्सी-प्रधान देश में बदल दिया है। सरकारें हैं-प्रशासन नहीं। कानून है-न्याय नहीं। साधन हैं-अवसर नहीं। भ्रष्टाचार की भीड़ में राष्ट्रीय चरित्र खो गया है। पलायनवादी सोच के कगार पर खड़े राष्ट्र को बचाने के लिए राजनीतिज्ञों को अपनी संकीर्ण मनोवृत्ति को त्यागना होगा। तभी समृद्ध हो या प्रतिभाशाली व्यक्ति अपने ही देश में सुख, शांति, संतुलन एवं सह-जीवन का अनुभव कर सकेगा और पलायनवादी सोच से बाहर आ सकेगा।