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स्नेहसिक्त आतिथ्य की परम्परा उनके रक्त में

फिजी यात्रा:विश्व हिंदी सम्मेलन…

भाग-५..

फिजी में मुक्त समय में हमारे लिए सर्वाधिक आकर्षण का केंद्र होते थे वहां के परंपरागत जनजातिय वेशभूषा वाले स्थानीय मूलनिवासी। उन लोगों का अत्यधिक स्नेहिल व्यवहार हम सबका हृदय जीतने में सक्षम था। विश्व के सर्वाधिक आनंददायक देश के रूप में चिन्हित इस देश में सचमुच यदि कहीं आनंद है तो, वह नागरिकों के व्यवहार में। प्रारंभ में हमें लगा कि, पाँच सितारा संस्कृति में विदेशों से आए मेहमानों को लेकर थोड़ी संवेदना अतिरिक्त रहती होगी, जिसके कारण हमारा इतना आतिथ्य किया जा रहा है, किंतु बाद में फिजी के बाजारों में, सड़कों पर और प्रत्येक व्यक्ति द्वारा किए गए व्यवहार का आकलन किया तो ध्यान में आया कि यह स्नेहसिक्त आतिथ्य की परंपरा उनके रक्त में बहती है। हम फिजी के बाजार में भ्रमण कर रहे थे कि, अचानक अत्यंत तेज वर्षा होने लगी। हम ४ में से ३ लोग युवा होने के कारण बहुत तेजी से दौड़ कर एक छत के नीचे चले गए, किंतु हमारे मध्य अवस्था में थोड़े बड़े डॉ. मनोहर भंडारी जी तेज गति से दौड़कर छत के नीचे तक नहीं जा पाए। अनायास एक महिला दुकानदार अपना छाता लेकर दौड़ी और सहज भाव से उनके मस्तक पर वह छाता रखते हुए चलने लगी। उन्हें सुव्यवस्थित छत के नीचे छोड़कर वह बिना किसी ‘धन्यवाद’ की अपेक्षा के वापस अपनी दुकान पर जाकर बैठ गई। तब हम लोगों को लगा कि, वास्तव में उनका यह स्नेह प्राकृतिक है, कृत्रिम नहीं। इन जनजातिय वेश के लोगों को देखकर आप यह भ्रम न पालें कि, ये जंगलों में रहने वाले अनपढ़ और उग्र स्वभाव के लोग होंगे। इनमें से अधिकांश अत्यंत पढ़े-लिखे, व्यवस्थित नौकरियां करने वाले और बड़े पदों पर बैठे अधिकारी भी हैं, किंतु अपनी परंपरागत वेशभूषा और संस्कृति के प्रति उनका यह सम्मान प्रकट करने का तरीका है कि, वे इस रूप में हमारे साथ अपनी संस्कृति बांटने चले आए।
प्रथम चित्र में जो अत्यधिक ऊंचाई वाला बालक मेरे साथ खड़ा है उससे बातचीत हुई और जैसे ही नाम पूछा तो उसने कहा मेरा नाम रोहित है। वह मूलतः उत्तर प्रदेश के बलिया जिले का रहने वाला है और लगभग ५-६ पीढ़ी पहले उसके दादा परदादा फिजी जाकर निवास करने लगे थे। भारतीय मन की विराटता इस बालक को देखकर प्रकट होती है। हम दुनिया में कहीं भी रहें, उस देश की संस्कृति के प्रति हमारे मन में सहज श्रद्धा का भाव होता है और हम उसका सम्मान करना भी जानते हैं। शायद यही उदारता भारत को भारत बनाती है और विश्व के लोग हमारी इस उदारता और संवेदना को पूजते हैं।
बहनें सामान्यतया सरल स्वभाव की हैं। किसी भी व्यक्ति के साथ खड़े रहकर चित्र खिंचवाना और आत्मीयता प्रकट करने में उन्हें बिल्कुल संकोच या भय नहीं रहता। यही कारण है कि भारत से गए प्रतिनिधिमंडल के सभी लोगों के साथ उन्होंने चित्र निकलवाए।

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