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हमसे नहीं टकराना

श्रीमती देवंती देवी
धनबाद (झारखंड)
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हमसे नहीं टकराना,मैं काल हूँ,
मैं कल हूँ,काल का महाकाल हूँ
अजब लाल हूँ,रंगों में गुलाल हूँ,
बिन पिए मयखाने का कमाल हूँ।
हमसे नहीं टकराना…

मैं नील गगन की चाँदनी नहीं हूँ,
कि देख के तुम शीतलता पाओगे
मैं चिलमिलाते सूर्य की तपन हूँ,
मुझे ना देखना,भस्म हो जाओगे।
हमसे नहीं टकराना…

मैं हीं गीता के श्लोक का राग हूँ,
जली हुई चिंगारी,चिता की आग हूँ
सुन लो मैं ही कुलवधू हूँ वीरांगना,
उठाना पड़े कटार,ऐसा ना करना।
हमसे नहीं टकराना…

मैं बगिया का फूल गुलाब नहीं हूँ,
मुझको छूना मत मैं शराब नहीं हूँ
मैं ही पर्दा और घूँघट में रहती हूँ,
मैं ही तलवार कमर में रखती हूँ।
हमसे नहीं टकराना…

मैं बहन,बेटी,बच्चों की हूँ अम्मा,
दहेज का लोभी होता है निकम्मा।
भूल जा मुझे आग में जलाने को,
महाकाल मैं,आई हूँ समझाने को।
हमसे नहीं टकराना…॥

परिचय– श्रीमती देवंती देवी का ताल्लुक वर्तमान में स्थाई रुप से झारखण्ड से है,पर जन्म बिहार राज्य में हुआ है। २ अक्टूबर को संसार में आई धनबाद वासी श्रीमती देवंती देवी को हिन्दी-भोजपुरी भाषा का ज्ञान है। मैट्रिक तक शिक्षित होकर सामाजिक कार्यों में सतत सक्रिय हैं। आपने अनेक गाँवों में जाकर महिलाओं को प्रशिक्षण दिया है। दहेज प्रथा रोकने के लिए उसके विरोध में जनसंपर्क करते हुए बहुत जगह प्रौढ़ शिक्षा दी। अनेक महिलाओं को शिक्षित कर चुकी देवंती देवी को कविता,दोहा लिखना अति प्रिय है,तो गीत गाना भी अति प्रिय है।

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