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जब तक गुलाम मानसिकता से मुक्त नहीं होंगे,चुनौतियों से घिरे रहेंगे

इंदौर(मप्र)।

जब तक हम गुलाम मानसिकता से मुक्त नहीं होंगे, चुनौतियों से घिरे रहेंगे। ऐसा नहीं है कि नागरी लिपि का प्रयोग घट रहा है। एक बहुत बड़ा समुदाय मोबाइल,लैपटॉप एवं सोशल मीडिया पर इसको अपना रहा है।
यह बात मुख्य अतिथि और वरिष्ठ साहित्यकार हरिसिंह पाल ने कही। अवसर रहा देवनागरी लिपि की वैश्विक चुनौतियाँ पर अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठी का। साहित्य भारती इंदौर,नागरी लिपि परिषद(दिल्ली) एवं भेरुलाल पाटीदार शासकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय महू के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित इस तरंग अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी का आरंभ डॉ. रेमी जायसवाल की शारदा वंदना के साथ हुआ। संगोष्ठी में अमेरिका,नार्वे,लंदन सहित अरुणाचल प्रदेश आदि जगह से भी लोग जुड़े। संगोष्ठी आयोजक साहित्य भारती इंदौर की अध्यक्ष प्रो. कला जोशी ने स्वागत भाषण में कहा कि रोमन लिपि में हिन्दी को लिखा जा रहा है,यह एक गंभीर चुनौती है। रोमन को सिर माथे बिठाना बड़ी भूल है। अध्यक्षता कर रही मध्यप्रदेश की अध्यक्ष डॉ. स्नेहलता श्रीवास्तव ने कहा कि लिपि मनुष्य द्वारा किए गए अविष्कारों में सबसे अधिक महत्वपूर्ण है। देवनागरी लिपि जितनी समृद्ध और सशक्त है,उतनी ही उसकी चुनौतियां भी बहुआयामी हैं। हमें इस कार्य में युवाओं को भी जोड़ना होगा। राष्ट्रपति पुरस्कार से सम्मानित बालेन्दु शर्मा दाधीच ने वैश्विक लिपियों को नागरी लिपि में अभिव्यक्त करने की अद्भुत क्षमता को दर्शाया। बीज वक्तव्य देते हुए डॉ. मनीषा मरकाम ने कहा कि हिंदी को रोमन लिपि में लिखने की भारतीय सोच ढेरों प्रश्न चिन्ह लगाती है। असम से जुड़े ख्याति प्राप्त विद्वान प्रो. किरण हजारिका ने भारतीय भाषाओं को एक लिपि में व्यक्त करने पर जोर दिया। नागरी लिपि परिषद के अध्यक्ष डॉ. शहाबुद्दीन शेख़ ने परिषद द्वारा किए जा रहे प्रयासों का जिक्र किया। नार्वे से साहित्यकार डॉ. सुरेश चन्द्र ने कहा कि प्रबल इच्छा शक्ति ही सभी चुनौतियों का समाधान है। अमेरिका से प्रो. नीलू तिवारी ने भी उपस्थिति दर्ज कराई। साहित्य भारती मालव प्रान्त के अध्यक्ष जीवन प्रकाश आर्य ने आभार माना। आभासी पटल को बांधे रखने में सूत्रधार की भूमिका रजनी झा ने निभाई।

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