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हिंदी और भारतीय भाषाएँ आपस में सहोदर-संतोष चौबे

सम्मेलन…

तृशूर (केरल)।

हिंदी और भारतीय भाषाएँ आपस में सहोदर हैं। वे एक-दूसरे को समृद्धशाली बनाती हैं। इनमें रचे गए साहित्य का आकलन मन के चश्मे से करेंगे तो एक नयी दृष्टि मिलेगी। हमारी अदृश्यता को भेदने का कार्य कला-साहित्य ही कर सकते हैं, विज्ञान नहीं।
तृशूर (केरल) में दक्षिण भारतीय हिंदी साहित्य सम्मेलन का शुभारंभ करते हुए मुख्य अतिथि वरिष्ठ कवि–कथाकार, विश्व रंग के निदेशक एवं रबीन्द्रनाथ टैगोर विश्वविद्यालय (भोपाल) के कुलाधिपति संतोष चौबे ने यह भावना व्यक्त की। वरिष्ठ कथाकार मधु कांकरिया (मुम्बई) द्वारा भी शुभारंभ किया गया।
कार्यक्रम की अध्यक्षता मलयालम के विद्वान डॉ. के.जी. प्रभाकरन ने की। इस समारोह में प्रमुखत: दक्षिण भारत और देश के अन्य प्रांतों से १५० से अधिक प्रतिनिधि भागीदारी कर रहे हैं। श्री चौबे ने दक्षिण भारत के हिंदी विद्वानों को सम्मानित किया। इस अवसर पर ६५ देशों में हिंदी की स्थिति पर केंद्रित महत्वपूर्ण पुस्तक ‘विश्व में हिंदी’ सम्मेलन के संयोजक डॉ. वी.जी. गोपाल कृष्णन को श्री चौबे व अंतरराष्ट्रीय हिंदी केंद्र के निदेशक डॉ. जवाहर कर्णावट ने भेंट की। कार्यक्रम में रामा तक्षक (नीदरलैंड्स) द्वारा संपादित ‘साहित्य का विश्व रंग’ पत्रिका के ‘प्रवास मेरा नया जन्म’ अंक का लोकार्पण श्री चौबे, वरिष्ठ कवि एवं विश्व रंग के सह-निदेशक लीलाधर मंडलोई और अतिथि साहित्यकारों द्वारा किया गया।