दुर्गेश कुमार मेघवाल ‘डी.कुमार ‘अजस्र’
बूंदी (राजस्थान)
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अ से अनार, का फल है ताजा,
आ से आम, फलों में राजा।
इ से इमली, वो खट्टी-खट्टी,
ई से ई ईख, वो उतनी ही मीठी।
उ से उल्लू , रात को आए,
ऊ से ऊन का, ठंड में भाए।
ऋ से ऋषि है, आद्यात्म झरोखा,
देख-देख लगे, जीवन चोखा।
ए से एड़ी, जो पाँव आधार,
ऐ से ऐनक से, सब दिखता संसार।
ओ से ओखली, अन्न कूट के खाएं,
औ से औरत, घर शोभा बढ़ाए।
अं से अंगूर, वो खट्टे-मीठे,
अः से हँस लो, तुम सुनो लतीफ़े।
क से कबूतर, छत खा रहा दाना,
ख से खरगोश, दम, होड़ लगाना।
ग से गमला, घर शोभा बढ़ाए,
घ से घर ही, आराम में भाए।
ङ खाली, खाली नहीं भइया,
चढ़े ‘दिनांक’ पर, बदले दिन ढइया।
च से चम्मच, से मन चाहे खा लो,
छ से छाता, खुद वर्षा बचा लो।
ज से जग में, तुम पानी भर लो,
झ से झंडा, नभ ऊँचा कर लो।
ञ खाली, ‘व्यंजन’ में लगता,
तरह-तरह के स्वाद तू चखता।
ट से टमाटर, वो लालम-लाल,
ठ से ठठेरा, दिनभर है धमाल।
ड से डमरु, शिव का बाजा,
ढ से ढक कर, पानी रख ताजा।
ण खाली, ‘ठण्डक’ है बनाता,
‘बाण’ में लगकर लक्ष्य पहुंचाता।
त से तरबूज, फल बड़ा है भारी,
थ से थरमस, रखें गरमाई सारी।
द से दरवाजा, तुम ठीक भिड़ाओ,
ध से धन, चोरों से बचाओ।
न से नल में, व्यर्थ बहाओ न पानी,
रीत गया जल तो, सब खत्म कहानी।
प से पतंग, तुम खूब उड़ाओ,
फ से फल, मुन्ना सब खाओ।
ब से बतख, पानी में डोले,
भ से भालू, वन शहद टटोले।
म से मछली, जल की रानी,
साफ पानी को समझे सयानी।
य से यज्ञ में, सब आहुति डालो,
र से रस्सी, कूदो, स्वास्थ्य बनालो ।
ल से लट्टू, गोल-गोल ही घूमे,
व से वन, मन-मंगल झूमे।
क्ष से क्षत्रिय, वो युद्ध मैं सज्ज,
त्र से त्रिशूल, वह शक्ति ‘अजस्र।’
ज्ञ से ज्ञानी, सब ज्ञान सिखाए,
श्र से श्रमिक, पसीने की ही खाए॥
परिचय-हिन्दी-साहित्य के क्षेत्र में डी. कुमार ‘अजस्र’ के नाम से पहचाने जाने वाले दुर्गेश कुमार मेघवाल की जन्म तारीख १७ मई १९७७ तथा स्थान बूंदी (राजस्थान) है। आप सम्प्रति से राज. उच्च माध्य. विद्यालय (गुढ़ा नाथावतान, बून्दी) में हिंदी प्राध्यापक (व्याख्याता) के पद पर सेवाएं दे रहे हैं। छोटी काशी के रूप में विश्वविख्यात बूंदी शहर में आवासित श्री मेघवाल स्नातक और स्नातकोत्तर तक शिक्षा लेने के बाद इसी को कार्यक्षेत्र बनाते हुए सामाजिक एवं साहित्यिक क्षेत्र विविध रुप में जागरूकता फैला रहे हैं। इनकी लेखन विधा-काव्य और आलेख है, और इसके ज़रिए ही सामाजिक संचार माध्यम पर सक्रिय हैं। आपकी लेखनी को हिन्दी साहित्य साधना के निमित्त बाबू बालमुकुंद गुप्त हिंदी साहित्य सेवा सम्मान-२०१७, भाषा सारथी सम्मान-२०१८ सहित दिल्ली साहित्य रत्न सम्मान-२०१९, साहित्य रत्न अलंकरण-२०१९ और साधक सम्मान-२०२० आदि सम्मान प्राप्त हो चुके हैं। हिंदीभाषा डॉटकॉम के साथ ही कई साहित्यिक मंचों द्वारा आयोजित स्पर्धाओं में भी प्रथम, द्वितीय, तृतीय एवं सांत्वना पुरस्कार पा चुके हैं। ‘देश की आभा’ एकल काव्य संग्रह के साथ ही २० से अधिक सांझा काव्य संग्रहों में आपकी रचनाएँ सम्मिलित हैं। प्रादेशिक-स्तर के अनेक पत्र-पत्रिकाओं में भी रचनाएं स्थान पा चुकी हैं। आपके लेखन का उद्देश्य-हिन्दी साहित्य एवं नागरी लिपि की सेवा, मन की सन्तुष्टि, यश प्राप्ति और हो सके तो अर्थ की प्राप्ति भी है।