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होली आई रे

डॉ.राम कुमार झा ‘निकुंज’
बेंगलुरु (कर्नाटक)

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रंग और हम(होली स्पर्धा विशेष )…

रंग बरसे होली फाल्गुनी बयार आयी रे,
सब खुशियों रंगों की थाल सजायी रे।
शान्ति प्रेम सौहार्द्र आपसी भेंट सजाकर लायी रे,
अपनेपन मानवता का संदेश सुनाने आयी रे।
होली आयी रे…

जाति-पाति और ऊँच-नीच का भेद मिटाने आयी रे,
घृणा,द्वेष छल कपट होलिका आग जलाने आयी रे।
अंधापन कट्टर धार्मिकता सद्भाव जगाने आयी रे,
सद्गुरू या भगवान कहो या गॉड ख़ुदा रंग लायी रे।
होली आयी रे…

रहें सभी सुख-चैन प्रेम से अलख जगाने आयी रे,
होली हूँ हर सभी गमों को,मुस्कान अधर पे लायी रे।
रोग शोक मद लालच सबको आग जलाने आयी रे,
दीन-धनी का भेद भुलाकर रंगोली बन छायी रे।
होली आयी रे…

होली में सब भेद भुलाकर गले मिलाने आयी रे,
पीला लाल गुलाबी हरितिम सतरंग बनी मैं आयी रे।
शान्ति वतन जन मन सुरभित प्रेम चमन बन आयी रे,
सद्भावन समरस मनभावन रिपुदलन कराने आयी रे।
होली आयी रे…

हिंसा दंगा रोष विनाशक मन घाव मिटाने आयी रे,
त्याग शील गुण कर्म मधुरतम रंग लगाने आयी रे।
शिक्षा दीक्षा सर्वसुलभ युवजन प्रेरक बन छायी रे,
राष्ट्र भक्ति एकत्व भाव मन प्रीति रंग बन आयी रे।
होली आयी रे…

दान मान सम्मान सर्वजन समभाव राष्ट्र में लायी रे,
होली है नैतिक सम्पोषक प्रेम शान्ति रंग बरसायी रे।
सबल बने निर्भय नारी सब सम्मान जगाने आयी रे,
रंगों की होली उत्सव पृथ्वी परिवार भाव लायी रे।
होली आयी रे…

गाएँ झूमें फाग राग हम मधुरिम रास रचाएँ टोली रे,
आओ हम सब खेंलें साथ में बुरा न मानो होली रे।
गले मिलें भेद भुला हम दें बधाईयाँ मीठी बोली में,
लगे लाल गुलाल गाल पे साजन सजनी हमजोली रे।
होली आयी रे…

गूँजे चहुँदिशि गीत जोगीरा सर र र होली मन रंगरसिया,
झूमें मधुवन साथ गोपियाँ बजाए राधाकृष्ण मुरलिया रे।
भाँग पान मदमस्त प्रेम में झूमें सियराम धाम अवधिया,
फूल वृष्टि काशी रंगीली मंगल विश्वनाथ मनवसिया रे॥
होली आयी रे…

परिचय-डॉ.राम कुमार झा का साहित्यिक उपनाम ‘निकुंज’ है। १४ जुलाई १९६६ को दरभंगा में जन्मे डॉ. झा का वर्तमान निवास बेंगलुरु (कर्नाटक)में,जबकि स्थाई पता-दिल्ली स्थित एन.सी.आर.(गाज़ियाबाद)है। हिन्दी,संस्कृत,अंग्रेजी,मैथिली,बंगला, नेपाली,असमिया,भोजपुरी एवं डोगरी आदि भाषाओं का ज्ञान रखने वाले श्री झा का संबंध शहर लोनी(गाजि़याबाद उत्तर प्रदेश)से है। शिक्षा एम.ए.(हिन्दी, संस्कृत,इतिहास),बी.एड.,एल.एल.बी., पीएच-डी. और जे.आर.एफ. है। आपका कार्यक्षेत्र-वरिष्ठ अध्यापक (मल्लेश्वरम्,बेंगलूरु) का है। सामाजिक गतिविधि के अंतर्गत आप हिंंदी भाषा के प्रसार-प्रचार में ५० से अधिक राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय साहित्यिक सामाजिक सांस्कृतिक संस्थाओं से जुड़कर सक्रिय हैं। लेखन विधा-मुक्तक,छन्दबद्ध काव्य,कथा,गीत,लेख ,ग़ज़ल और समालोचना है। प्रकाशन में डॉ.झा के खाते में काव्य संग्रह,दोहा मुक्तावली,कराहती संवेदनाएँ(शीघ्र ही)प्रस्तावित हैं,तो संस्कृत में महाभारते अंतर्राष्ट्रीय-सम्बन्धः कूटनीतिश्च(समालोचनात्मक ग्रन्थ) एवं सूक्ति-नवनीतम् भी आने वाली है। विभिन्न अखबारों में भी आपकी रचनाएँ प्रकाशित हैं। विशेष उपलब्धि-साहित्यिक संस्था का व्यवस्थापक सदस्य,मानद कवि से अलंकृत और एक संस्था का पूर्व महासचिव होना है। इनकी लेखनी का उद्देश्य-हिन्दी साहित्य का विशेषकर अहिन्दी भाषा भाषियों में लेखन माध्यम से प्रचार-प्रसार सह सेवा करना है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-महाप्राण सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ है। प्रेरणा पुंज- वैयाकरण झा(सह कवि स्व.पं. शिवशंकर झा)और डॉ.भगवतीचरण मिश्र है। आपकी विशेषज्ञता दोहा लेखन,मुक्तक काव्य और समालोचन सह रंगकर्मी की है। देश और हिन्दी भाषा के प्रति आपके विचार(दोहा)-
स्वभाषा सम्मान बढ़े,देश-भक्ति अभिमान।
जिसने दी है जिंदगी,बढ़ा शान दूँ जान॥ 
ऋण चुका मैं धन्य बनूँ,जो दी भाषा ज्ञान।
हिन्दी मेरी रूह है,जो भारत पहचान॥

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