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अति जब भी होती है

संदीप धीमान 
चमोली (उत्तराखंड)
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अति जब भी होती है, बांध तभी टूटते हैं,
सब्र के इम्तिहान में नक़ाब सभी टूटते हैं।

मुखौटो का बाजार है, मुस्कान है सस्ती,
गैरों को छोड़ो, अपने भी कम ही रुठते हैं।

गाँठ पर गाँठ पड़ी है रिश्तों के धागों पर,
छोड़ मुस्कान, ताने-बाने सभी टूटते हैं।

बांधोगे कब तक तुम मुखौटे में चेहरा,
अक्सर उड़ने वाले सभी जमीं ढूंढते हैं।

जिंदगी कट रही है मुखौटे बचाने में,
सब्र के इम्तिहान में दिल तभी टूटते हैं॥

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