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अपरिहार्य

प्रो. लक्ष्मी यादव
मुम्बई (महाराष्ट्र)
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देवकी रोज़ की तरह अपने घर का सारा काम निपटा कर अपने सास, ससुर बेटा, पति सबका नाश्ता टेबल पर लगाकर और अपना नाश्ता हाथ में लिए ऑफिस जाने के लिए निकल गई। देवकी सरकारी दफ्तर में कार्यरत थी। देवकी और उसकी सहेली उर्मिला दोनों साथ में दफ्तर जाते और साथ में आते। उर्मिला रोज देवकी के कारण दफ्तर के लिए लेट होती, फिर भी वह देवकी की राह देखती और उसके साथ ही जाती। दोनों सहेलियों में कम सगी बहनों से भी ज़्यादा गहरा रिश्ता और लगाव था।
उर्मिला हर रोज़ देवकी को डाँट लगाती कि एक नौकरानी क्यों नहीं रख लेती, जो घर का सारा काम करे। देवकी कुछ न कहती, मुस्कुराकर रह जाती, क्या बोलती! उसके परिवार वालों को ये पसंद नहीं था कि कोई बाहरी आकर उनके घर का सारा काम करे। देवकी बिना कुछ बोले सब कुछ करती। उसने कभी अपने लिए कुछ नहीं किया। उर्मिला कभी-कभी पार्टी, मूवी, घूमने- फिरने के लिए देवकी से आग्रह करती, लेकिन देवकी हमेशा की तरह जाने से मना कर देती।
देखते-देखते काफी समय बीत जाता है, वही दिनचर्या चलती रही। एक दिन अचानक देवकी की तबीयत बहुत खराब होने के कारण उसे अस्पताल में भर्ती कराया गया, लेकिन होनी को कौन टाल सकता है। बहुत ही कम उम्र में देवकी की मृत्यु हो गई. ये दुखद समाचार सुन कर उर्मिला एकदम से टूट गई। देवकी के परिवार वालों पर मानो मुसीबतों का पहाड़ टूट पड़ा। देवकी का क्रिया-कर्म पूरे विधि-विधान से किया गया। सभी रिश्तेदार अपने-अपने घर चले गए।
देवकी को गए पूरे २ महीने हो गए थे। उर्मिला को बड़ी चिंता हो रही थी कि देवकी के घर में सब कुछ ठीक है, या नहीं! वो सब तो बेचारे देवकी के जाने से पूरी तरह टूट चुके थे, यह सोचते-सोचते कब स्मृति की डोर टूट गई, उर्मिला को पता ही नहीं चला। उर्मिला घर का दृश्य देख कर हैरान हो गई, क्यूँकि घर की पूरी काया पलट हो गई थी।
उर्मिला को देख देवकी के पति ने घर में बुलाया और चाय-नाश्ता करवाया। उर्मिला ने जैसे ही यह सब देखा, वह अतीत में खो गई कि किस तरह देवकी भाग-भाग कर सबके सारे काम करती। अपने लिए उसने कभी कुछ नहीं किया।एक नौकरानी तक को रखने के लिए उसके परिवार वाले राजी नहीं थे, और आज वही घर है… वही सब लोग, पर सबके काम के लिए अलग-अलग नौकरों को रख लिया। यहाँ तक कि उसके सास-ससुर की देख-भाल के लिए २४ घंटे का नौकर रख लिया।
उर्मिला कहती है-“आज मुझे ये सब देख कर ऐसा लग रहा है कि यहाँ कोई भी अपरिहार्य नहीं है।और यहाँ कोई किसी को याद नहीं करता, यह सब हमारे मस्तिष्क का भ्रम है।
शायद यह सान्त्वना है, या यूँ कहें कि हमारे समझने का तरीका…। जब आप दूसरों को अपने से पहले रखते हो, तो आप ख़ुद ही ये दिखाना चाहते हो कि आप उनसे पहले नहीं हो।”
देवकी के देहांत के बाद उसके घर में कई नौकर-चाकर रखे गए। घर सुचारू रूप से चल भी रहा था।इसलिए मन का यह वहम हटा दो कि मैं अपरिहार्य हूँ, और मेरे बिना घर नहीं चलेगा…।

अत:, सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि अपने-आप के लिए समय निकले, और जीवन का हर पल हर समय अपने लिए जियो।