अनूप कुमार श्रीवास्तव
इंदौर (मध्यप्रदेश)
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देश की जुबान है हिंदी,
हिंदुस्तान की शान है हिंदी।
कह दो कि सबकी पहचान है हिंदी,
इस दिल से निकली ईमान है हिंदी।
हिमाला मुकुट बना भारतीं के भाल पर,
माँ के माथे है सजी स्वाभिमान की बिंदी।
आज़ादी के ख्वाब में हिंदी भी लड़ी थीं,
पग-पग में संग-संग थीं बलिदान है हिंदी।
हिंदी को बनाएंगें हम राष्ट्र की भाषा,
हर जाति धरम इसमें वरदान है हिंदी।
मधुशाला से न छलकी है बच्चन की रूबाई,
मदहोश हुए लोगों पर यही एहसान है हिंदी।
मेहनत की कमाई में मिली हिंदी की रोटी,
हम अपने घर में हैं तो इत्मीनान है हिंदी।
इसको भी सौदागरों ने जैसे बेच कहीं दिया,
इंग्लिश की बिगड़ी जुबान फरमान है हिंदी।
हिंदी में जीने मरनें का खुआब पुराना
पूरी उमर भरका यहीअभिमान है हिंदी।
हर नारी जहाँ पर सुभद्रा-अमृता-महादेवी-सी हो,
उस देश में महका करेगी सदैव यूँ लोभान है हिंदी।
माँ सीता की वेदना है मारीच का शमन,
मर्यादाओं की लक्ष्मन रेखा चिंतन है हिंदी।
बिगड़ती रहे भले ही संस्कृति-संस्कार हमारी,
दुनिया को पढ़ाने के लिए तीर-कमान है हिंदी॥