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अलौकिक दृश्य और दर्शन ‘जॉर्जिया व बाकू’

सरोजिनी चौधरी
जबलपुर (मध्यप्रदेश)
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आपको बता दें कि हम सब बड़े घुम्मकड़ लोग हैं, कहीं न कहीं का आयोजन बना ही लेते हैं। ख़ैर,
पश्चिमी एशिया और पूर्वी यूरोप को जोड़ता हुआ एक खूबसूरत देश है जॉर्जिया, जो रूस के दक्षिण में है।
तुर्की की उत्तरी सीमा से लगा है और पश्चिम में काला सागर है। यहाँ की राजधानी त्बिलिसी है।जॉर्जिया से ही लगा हुआ एक और देश अज़रबैजान, जहाँ की राजधानी बाकू है। तमाम जगह से पता लगाने के बाद यह निश्चित किया गया कि त्बिलिसी और बाकू चलना ठीक रहेगा। फिर क्या था, कार्यवाही शुरू हो गई। कुल ३५ लोग चलने को तैयार हुए। ट्रैवल एजेंसी ने अपना कार्य प्रारंभ कर दिया और सबके वीजा-पासपोर्ट तैयार होने लगे।
प्रतीक्षा की घड़ियाँ ख़त्म हुई़ और हम सब अपने-अपने सामान के साथ पहुँच गए एयरपोर्ट। प्रस्थान से पहले बता दूँ जिनके परिश्रम से यह यात्रा संभव हो पाई है-शारदा जी और प्रीति जी (जो संस्था चलाती हैं ‘शब्द-यात्रा’)। इनका उद्देश्य है देश-विदेश का भ्रमण करते हुए अपने देश की हिंदी भाषा का प्रचार-प्रसार करना।संस्था के नाम को सार्थक करते हुए हम सबका समूह निकल पड़ा जॉर्जिया और बाकू के लिए।१५ जून की रात ८.३० बजे का समय।निश्चित समय पर प्रस्थान हुआ। सकुशल सब जार्जिया की राजधानी त्बिलिसी पहुँच गए। वहाँ बस हमारी प्रतीक्षा कर रही थी। होटल रॉयल ट्युलिप में हम सबको रुकना था। होटल में पहुँच कर थोड़ी देर आराम करने के बाद हम सबको पहले दिन के भ्रमण के लिए निकलना था।
प्रातः जब अपने कमरे का दरवाज़ा खोल कर बाहर का दृश्य देखा तो मन ख़ुशी से नाच उठा।सामने ही एक नदी थी, तथा नदी के उस पार शहर बसा हुआ दिखाई दे रहा था। फिर तो हम जितने दिन वहाँ रहे, सुबह की चाय बाहर बालकनी में ही पी।आपको बता दूँ कि दिल्ली से त्बिलिसी पहुँचने में लगभग ४.३० घण्टे का समय लगा।
प्रातः ८ बजे सब नीचे हॉल में एकत्रित हुए, जहाँ सबने नाश्ता किया। बाहर बस और गाइड सबके एकत्र होने की प्रतीक्षा कर रहे थे। आज हम लोग त्बिलिसी के
पुराने इलाक़े की ओर जाने वाले थे। सर्वप्रथम हम राइक पार्क पहुँचे। आगे केबल कार द्वारा हम सब नारिकाला क़िले तक पहुँच गए। एक ओर क़िले की दीवारें, तो दूसरी ओर नगर को विभाजित करती हुई नदी पूरे नगर को रमणीय बना रही थी। बीच-बीच में जहाँ तस्वीर लेने के लिए स्थान थे, वहाँ रुकते-रुकाते हम सबका कारवाँ आगे बढ़ रहा था।
‘ब्रिज ऑफ पीस’ झरना देखते हुए हम सब पीस तक पहुँच गए, जो कुरी नदी पर बना है। इसे नगर का मुख्य आकर्षण भी कह सकते हैं ।इसकी कलाकृति बहुत सुंदर थी। सड़क के दोनों ओर छोटे-छोटे खुले रेस्टॉरेंट्स थे, जो अपने आतिथ्य सत्कार के लिए प्रसिद्ध हैं।
हम सबने पुराना प्रसिद्ध चर्च देखा, जो सत्रहवीं शताब्दी में बना था। सोवियत युग की भव्य ऐतिहासिक इमारतों की लालित्य कला का दर्शन करते हुए हम सब आगे बढ़े। हम लोगों ने एक छोटा बाजार भी देखा, जहाँ अनोखी पुरानी वस्तुएँ थीं। इस प्रकार शहर के सुंदर दृश्यों को देखते हुए लगभग ४ बजे सब होटल पहुँच गए।
शाम को यहाँ कवि-गोष्ठी का आयोजन था। कुछ लोगों को छोड़ कर सभी ने कविता, कहानी संस्मरण तथा नृत्य आदि की सुंदर प्रस्तुति दी। सबका सम्मान किया गया। आज के नाश्ते और खाने का प्रबंध भी होटल में ही था। गोष्ठी के बाद सबने डांस किया और भोजन के बाद सब सोने चले गए।
अगले दिन हम सबको जल्दी निकलना था, क्योंकि आज रास्ता थोड़ा लंबा था। हम लोगों को आज अनानुरी, गुदावरी और काज़बेरी जाना था। पहला पड़ाव अनानुरी क़िला था। गाइड हम लोगों के साथ थी, जो लगातार हमको वहाँ के विषय में तमाम बातें, जैसे-वहाँ का इतिहास, सभ्यता, बोली, धर्म आदि के विषय में अवगत कराती जा रही थी। यह निश्चित किया गया कि बस में भी धमाल मचाया जाए, फिर क्या था गीत, ग़ज़ल, कविता, कहानी, अंताक्षरी करते हुए हम लोग अनानुरी क़िले तक पहुँच गए। यह क़िला अपने इतिहास के लिए प्रसिद्ध है और शताब्दियों के युद्ध का दर्शक भी रहा है। यहाँ से चारों ओर के दृश्य भी बहुत सुंदर हैं। यहाँ थोड़ी देर रुक कर सबने दृश्य देखे, तस्वीर वग़ैरह खींची और फिर जॉर्जियन मिलिटरी रोड से आगे बढ़ते हुए गुदावरी स्काई रिसोर्ट देखते हुए काज़बेरी की ओर बढ़े। शीघ्र ही हम एक छोटे से शहर में पहुँच गए, जहाँ से काज़बेरी की पहाड़ियों का अलौकिक दृश्य दिखाई दे रहा था। पहाड़ के ऊपरी हिस्से में एक चर्च था, जहाँ तक सब छोटी गाड़ियों से गए क्योंकि ऊँचाई अधिक थी और बड़ी गाड़ी नहीं जा सकती थी। वहाँ पहुँच कर लोगों ने थोड़ा आराम किया, तस्वीर आदि खींच कर वापस बस में पहुँच गए।
बता दूँ कि हम सबने समय बिलकुल बर्बाद नहीं किया। सब व्यवस्थित हो गए और फिर शुरू हो गया शेरो-शायरी का दौर। एक बात और बताना चाहती हूँ, मेरी रूम-मेट जिंदादिल इंसान की। मुझे पहले लग रहा था कि पता नहीं वह कैसी होगी, लेकिन हम दोनों ने कमरे में भी खूब मस्ती की
अगले दिन हम लोगों को ‘वाइनरी’ देखने जाना था। सबसे पहले हम वाइन उत्पादन के मुख्य क्षेत्र काखेती गए। वहाँ एक वाइनरी में हम सबने देखा कि वाइन कैसे बनती है। यह स्थान वाइन उत्पादन का मुख्य क्षेत्र है।इसके बाद हम सबने जॉर्जिया का प्रसिद्ध जॉर्जियाई ऑर्थोडॉक्स चर्च देखा, जो दुनिया के सबसे प्राचीन समुदायों में से एक है और यहाँ की महिला ‘सेंट नानों’ के नाम से भी प्रसिद्ध है।
इसके बाद हम पहुँचे सिग्नेघी, जो जॉर्जिया के पूर्वी काखेती में एक शहर है और पर्यटन की दृष्टि से बहुत प्रसिद्ध है। इसे प्यार का शहर कहा जाता है, कई जोड़े यहाँ शादी करने भी आते हैं। अंगूर की बेल और चेरी तथा स्ट्राबेरी के पेड़ों से सुशोभित छोटे-छोटे घर व सँकरी गलियाँ लोगों को अनायास ही अपनी ओर आकर्षित करते हैं।यहाँ छोटे-छोटे सुंदर रेस्टोरेन्टस् भी थे। सबने रुक कर वहाँ की प्रसिद्ध काजा़पूरी खाई और कॉफी पी कर वापसी के लिए तैयार हो गए।रेस्टॉरेंट से अलाज़ानी घाटी और काकेशस पर्वत दिखाई देते हैं।
अगले दिन हम सबको पहले गोरी सिटी जाना था। यह पूर्वी जॉर्जिया का एक शहर है, जो शिदा कार्तली की क्षेत्रीय राजधानी के रूप में काम करता है। सोवियत संघ के पूर्व नेता जोसेफस्टालिन के जन्मस्थान के रूप में यह प्रसिद्ध है। १९५७ में इनके नाम से एक संग्रहालय खुला, जिसमें स्टालिन की निजी वस्तुएँ तथा निजी रेल गाड़ी की प्रतिकृति भी रखी गई है। यह गोरी शहर के आकर्षण का केंद्र है। इसके अतिरिक्त पहाड़ी पर स्थित प्राचीन गोरी किला तथा पास में स्थित प्राचीन उप्लिस्त्सिके की गुफाएँ लौह युग का पुरातात्विक चमत्कार है। हम सब शाम तक वापस आ गए, क्योंकि आज रात हम सबको जॉर्जियाई डिनर के लिए जाना था, जहाँ जार्जियाई डांस का भी आयोजन था। रात को हम सब डिनर के लिए जॉर्जियाई रेस्टोरेन्ट में गए। बड़ा अच्छा आयोजन था, बहुत प्रकार के व्यंजन थे। शाकाहारी और मांसाहारी दोनों तरह के व्यंजन थे।स्टार्टर के बाद डांस का कार्यक्रम था। हम लोगों के लिए तो यह बिल्कुल नया अनुभव था, क्योंकि इस तरह का डान्स तो हम लोगों ने कभी नहीं देखा था। हमारे देश के फ़िल्मी गाने वहाँ बहुत पसंद किए जाते हैं। एक वेटर ने राजकपूर के गाने पर बहुत अच्छा डान्स किया।उसके बाद जब हमारे समूह ने डांस करना शुरू किया, तो फिर कोई रुकने को ही तैयार नहीं। एक-डेढ़ घण्टे तक खूब डांस किया सबने। जो वहाँ बैठे थे, उन लोगों ने भी खूब आनन्द लिया। खाना खाकर आते-आते देर तो हो ही गई थी, पर सबने उस दिन खूब मस्ती की।
अगले दिन प्रातः जलपान के बाद हम लोगों को होटल से विदा लेकर बाकू के लिए रवाना होना था। १ घण्टे की उड़ान थी। एयरपोर्ट पर बस और गाइड हमारी प्रतीक्षा कर रहे थे। हम लोगों की बुकिंग रामदा होटल में थी। होटल से लगा हुआ ही समुद्र का किनारा भी था, बाहर का दृश्य बहुत सुहावना था।
होटल पहुँच कर हम लोग खरीददारी के लिए वहाँ की निज़ामी स्ट्रीट की ओर चले। पूरी टीम ४-५ समूह में विभाजित हो गई और वापस मिलने के लिए एक जगह तय कर दी गई। अच्छा बाजार था और सब तरह की दुकानें थीं।
अज़रबैजान की राजधानी बाकू एक ऐसा स्थान है, जहाँ पूर्वी परंपराएँ पश्चिमी नवाचार से मिलती हैं। बाकू का पुराना शहर पुरानी चूना पत्थर की इमारतों से भरा है, जो ‘यूनेस्को’ का विश्व धरोहर स्थल है। दूसरी तरफ़ फ्लेम टॉवर जैसी आधुनिक संरचनाएँ हैं, जो पारंपरिक संस्कृति ओर आधुनिकता का मिश्रण पेश करती हैं। हमारी यात्रा पुराने शहर से शुरू होती है, जैसे ही पुराने शहर की सीमाओं से बाहर निकलते हैं, गगनचुंबी इमारतों से घिरे वास्तु शिल्पीय के चमत्कारों को देख सकते हैं। रात के समय आकाश में जलते मंत्रमुग्ध करने वाले एलईडी डिस्प्ले के साथ फ्लेम टॉवर बाकू की प्रगति के गवाह के रूप में खड़े हैं। चाहे आपको बढ़िया खाने का शौक हो या स्ट्रीट फूड का, बाकू में आपके स्वाद को पागल करने के लिए सब कुछ है, पर एक राज़ की बात बताते हैं कि हम सबका ध्यान खाने पर कम और घूमने पर अधिक था। इसके बाद हम सब
हेदर एलीयेव सेंटर की ओर बढ़े। इसकी अनूठी डिज़ाइन, चिकनी वक्रता बिना किसी तीखे कोनों के शहर में एक अलग आकर्षण बनाती है। यह बाकू के प्रसिद्ध दर्शनीय स्थानों में से एक है। इसका नाम सोवियत अज़रबैजान के प्रथम सचिव और बाद में स्वाधीन अज़रबैजान के राष्ट्रपति बने हेदर एलीयेव के नाम पर है।
अगले दिन हम लोगों को एक सुंदर पर्वतीय स्थान शाहदाग के लिए निकलना था, जहाँ हमको पहुँचने में ३ से ४ घण्टे लगने वाले थे। प्रातः जल-पान के बाद हम निकल पड़े सफ़र पर। बीच में एक जगह हम सब थोड़ी देर के लिए रुके और फिर पहुँच गए अपने गंतव्य तक। रास्ते में बहुत सुंदर दृश्य देखते हुए आ रहे थे और साथ- साथ बस में अपनी मस्ती भी चल रही थी। शाहदाग पहुँचे तो मौसम भी थोड़ा ठंडा हो गया था और चारों तरफ दृश्य भी बहुत सुंदर दिखाई दे रहे थे। पहाड़ों पर ऊपर कहीं-कहीं बर्फ भी दिखाई दे रही थी। बच्चों और नवयुवकों के लिए विभिन्न प्रकार के मनोरंजक खेल थे तथा और ऊपर जाने के लिए केबल कार से जाना था। यहाँ कुछ ऐसा हुआ कि एक कार में वो ३-४ लोगों को बैठा रहे थे। लोग ऊपर पहुँचते गए और वहाँ के दृश्य का आनन्द लेते हुए तस्वीर खींचते हुए बारी-बारी से नीचे आते गए, परन्तु कुछ देर बाद ही वहाँ बारिश होने लगी, जो लोग बाद में ऊपर पहुँचे वे लोग ऊपर ही थे। बारिश में केबल कार चलना बन्द हो गई। हम लोग नीचे आ चुके थे, पर जो लोग ऊपर थे, उनके लिए चिन्तित हो रहे थे, क्योंकि वहाँ कहीं ऐसी जगह नहीं थी कि बारिश में बचाव हो सके। थोड़ी देर बाद ओले भी पड़ने लगे, तो सब लोग इधर-उधर शरण लेने लगे। लगभग दो-ढाई घण्टे के बाद बारिश रुकी और केबल कार चलना शुरु हुई। फिर जो लोग ऊपर रह गए थे, वे नीचे आए। जो ऊपर रुक गए थे, उनसे पता चला कि पहले तो वे लोग भीगते ही रहे, फिर कन्ट्रोल रूम में उन्हें शरण मिली। जितने लोग ऊपर थे, उन सबको उन लोगों ने अंदर बुला लिया, जिससे इन सबको अच्छा लगा। फिर सबने अंताक्षरी खेलना शुरू कर दिया, जिसके पास खाने का जो सामान था, सबके पैकेट खुलने लगे। वहीं कॉफी शॉप भी थी, कुछ पाकिस्तानी पर्यटक भी वहाँ थे। सबने खूब मस्ती की और हम सब नीचे चिंतित हो रहे थे। बहुत देर हो चुकी थी, तो सब एकत्रित हुए और वापसी के लिए बस में सवार हो रास्ते में भारतीय रेस्टोरेंट में खाना खाया एवं लगभग ११ बजे होटल पहुँचे।
अगले दिन हम लोगों को अग्नि मंदिर और अग्नि पर्वत के लिए निकलना था। पहले हम मंदिर गए। यह बाकू के पूर्व में स्थित लोकप्रिय पर्यटन स्थल है। यहाँ पारसी वास्तु शिल्प तत्व शिव जी और गणेश जी को समर्पित संस्कृत उत्कीर्णन के साथ मिश्रित हैं। यह मंदिर एक पंचभुज आकार के अहाते के बीच स्थित है। बाहरी दीवारों के साथ कमरे बने हैं, जिसमें कभी उपासक रहा करते थे। १९७५ में इसे संग्रहालय बना दिया गया, आगे चल कर यह ‘यूनेस्को’ द्वारा संरक्षित स्थान हो गया। जिस शहर में मंदिर है, वहाँ का नाम सुरखानी है, जिसका तात भाषा में अर्थ है ‘फ़व्वारे वाला छेद’ (तात भाषा पारसी का ही एक रूप) है। इसके बाद हम अग्नि पर्वत गए। यहाँ रहस्यमय पहाड़ी पर निरंतर आग जलती रहती है।इन प्राकृतिक लपटों का श्रेय यहाँ के विशाल गैस भंडार को दिया जा सकता है। जब इन भण्डारों का दोहन शुरू हुआ तो भूमिगत दबाव की कमी के कारण अधिकांश प्राकृतिक आग बुझ गई। पहाड़ी के किनारे लगभग १० मीटर लंबी आग की दीवार जल रही है, जो कभी नहीं बुझती। ‘यानार दाग’ के नाम से प्रसिद्ध यह जगह दर्शकों के आकर्षण का केन्द्र बना हुई है, जो बाकू से २५ किलोमीटर उत्तर में स्थित है। अज़रबैजान को ‘आग की भूमि’ के रूप में भी जाना जाता है इसकी वजह तेल और गैस की विशाल आपूर्ति है। हम सब प्राकृतिक दृश्यों को अपने मोबाइल में कैद करते हुए वापसी के लिए बस में सवार हो गए। रास्ते में खाना खाते हुए सीधे एयरपोर्ट जाना था, क्योंकि आज रात को हम लोगों की उड़ान थी। प्रातः ७ बजे हम सब दिल्ली पहुँच गए, और सामान लेकर एक-दूसरे से विदा लेते हुए अपने घर रवाना हुए।
कुछ बातें जो हमें अच्छी लगी, उसे साझा करना चाहती हूँ-पहली मुख्य बात कि हमारा उद्देश्य केवल घूमना ही नहीं था, अपने देश की भाषा और संस्कृति का प्रचार भी कर रहे थे। काव्य गोष्ठी के लिए सारी महिलाएँ जब साड़ी पहन कर तैयार होकर नीचे हॉल में पहुँचीं, तो सब ताली बजा कर स्वागत कर रहे थे। दूसरी बात हम सबका एक-दूसरे से परिचय हुआ। कुछ लोग तो कभी मिले ही नहीं थे, पर सब साथ में ऐसे हिल-मिल गए, जैसे बहुत पहले से एक-दूसरे को जानते हों। इतने लोगों के साथ घूमने का आनन्द ही कुछ और था। मैं तो यही सलाह दूँगी कि कहीं बाहर घूमने जाएँ तो समूह में जाना कई कारणों से बेहतर है।