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पालनहार हूँ सदा तुम्हारी

डॉ. आशा गुप्ता ‘श्रेया’
जमशेदपुर (झारखण्ड)
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प्रकृति और खिलवाड़…

ओ मानव जरा देखो चक्षु से,
तड़पती हूँ वर्षों से मैं प्रकृति
समझो मुझे अपने हृदय से,
हूँ सदा समर्पित तुम्हारे लिए।

मिटाती तुम्हारी प्यास क्षुधा,
मैं पालनहार हूँ सदा तुम्हारी
मातृत्व से मैं सिंचित करती,
अन्न पेड़ पौधे सारे जीव-जंतु।

वन पर्वत समतल बदल रहे,
माँ वसुधंरा हो रही व्याकुल
विकृत होए नदी-तट का रूप,
विचलित जीते कई जीव अंदर।

तुम करते हो मुझसे खिलवाड़,
काटते पेड़ नष्ट करते संतुलन
खड़ी करते हो अट्टालिकाएं,
सिकुड़ती सुंदरता हरीतिमा।

अशुद्ध वायु नष्ट करती मुझे,
करते हो रासायनिक प्रदूषण
डालते विशाल कूड़ा-कचड़ा,
पावन हैं जीवनदायिनी नदियाँ।

जल वायु माटी करते विकृत,
वायुमंडल बदले रूप ऋतुएं
बदल रहा मेरा रूप दिन-दिन,
बाढ़ भूमि थ्वंस जैसी आपदाएं।

तुम कोसते हो-बदली प्रकृति,
सुनो मेरी करुणाभरी आर्तनाद
सँभालो मेरे रूप गुणों को तुम,
मेरा प्रेम समर्पण, तुम्हारी रक्षक।

समझना होगा सदा तुम्हें ही,
जगे जो तुम्हारा संकल्प सत्य
उगने दो पुष्प, मंडराने दो भौरें,
रोको तुम ये सैलाब उफनता।

देंगी दुआएं आने वाली पीढ़ी,
ओ मानव समझो मेरे प्रेम को।
मुझ बिन जिंदगी कैसी होगी,
मैं प्रकृति, कोई खिलवाड़ नहीं॥

परिचय- डॉ.आशा गुप्ता का लेखन में उपनाम-श्रेया है। आपकी जन्म तिथि २४ जून तथा जन्म स्थान-अहमदनगर (महाराष्ट्र)है। पितृ स्थान वाशिंदा-वाराणसी(उत्तर प्रदेश) है। वर्तमान में आप जमशेदपुर (झारखण्ड) में निवासरत हैं। डॉ.आशा की शिक्षा-एमबीबीएस,डीजीओ सहित डी फैमिली मेडिसिन एवं एफआईपीएस है। सम्प्रति से आप स्त्री रोग विशेषज्ञ होकर जमशेदपुर के अस्पताल में कार्यरत हैं। चिकित्सकीय पेशे के जरिए सामाजिक सेवा तो लेखनी द्वारा साहित्यिक सेवा में सक्रिय हैं। आप हिंदी,अंग्रेजी व भोजपुरी में भी काव्य,लघुकथा,स्वास्थ्य संबंधी लेख,संस्मरण लिखती हैं तो कथक नृत्य के अलावा संगीत में भी रुचि है। हिंदी,भोजपुरी और अंग्रेजी भाषा की अनुभवी डॉ.गुप्ता का काव्य संकलन-‘आशा की किरण’ और ‘आशा का आकाश’ प्रकाशित हो चुका है। ऐसे ही विभिन्न काव्य संकलनों और राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय पत्रिकाओं में भी लेख-कविताओं का लगातार प्रकाशन हुआ है। आप भारत-अमेरिका में कई साहित्यिक संस्थाओं से सम्बद्ध होकर पदाधिकारी तथा कई चिकित्सा संस्थानों की व्यावसायिक सदस्य भी हैं। ब्लॉग पर भी अपने भाव व्यक्त करने वाली श्रेया को प्रथम अप्रवासी सम्मलेन(मॉरीशस)में मॉरीशस के प्रधानमंत्री द्वारा सम्मान,भाषाई सौहार्द सम्मान (बर्मिंघम),साहित्य गौरव व हिंदी गौरव सम्मान(न्यूयार्क) सहित विद्योत्मा सम्मान(अ.भा. कवियित्री सम्मेलन)तथा ‘कविरत्न’ उपाधि (विक्रमशिला हिंदी विद्यापीठ) प्रमुख रुप से प्राप्त हैं। मॉरीशस ब्रॉड कॉरपोरेशन द्वारा आपकी रचना का प्रसारण किया गया है। विभिन्न मंचों पर काव्य पाठ में भी आप सक्रिय हैं। लेखन के उद्देश्य पर आपका मानना है कि-मातृभाषा हिंदी हृदय में वास करती है,इसलिए लोगों से जुड़ने-समझने के लिए हिंदी उत्तम माध्यम है। बालपन से ही प्रसिद्ध कवि-कवियित्रियों- साहित्यकारों को देखने-सुनने का सौभाग्य मिला तो समझा कि शब्दों में बहुत ही शक्ति होती है। अपनी भावनाओं व सोच को शब्दों में पिरोकर आत्मिक सुख तो पाना है ही,पर हमारी मातृभाषा व संस्कृति से विदेशी भी आकर्षित होते हैं,इसलिए मातृभाषा की गरिमा देश-विदेश में सुगंध फैलाए,यह कामना भी है

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