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आँखें तरस गई…

डॉ. अनिल कुमार बाजपेयी
जबलपुर (मध्यप्रदेश)
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जीना तड़प-तड़प के तकदीर बन गई।
तुमको देखने प्रिये मेरी आँखें तरस गई॥

तुमको देखने प्रिये मेरी आँखें तरस गईं,
स्मृतियों के मेघ छाये सावन सी बरस गई
ये सूरज भी हँस-हँस के मुझे ताने है मारता,
संध्या के बहाने वो बस मुझको ही ताकता।
मीठी ये पुरवाई भी नागिन-सी डस गई,
तुमको देखने प्रिये मेरी आँखें तरस गईं…॥

देखो कोयल ने भी छेड़ी कैसी मधुर तान,
सखियाँ सभी झूम रहीं हैं गाती मधुर गान
अठखेलियाँ कर रहीं हैं प्रियतमों के साथ,
आँखों में आँखें डाले हाथों में थामे हाथ।
मूरत तेरी मनोहर मेरे हृदय में बस गई,
तुमको देखने प्रिये मेरी आँखें तरस गईं…॥

मेरी यादों में बसे हैं अभी भी प्यार के लम्हें,
कभी इंकार के लम्हें कभी मनुहार के लम्हें
बैठी हूँ आज निहारती मैं यादों के द्वार को,
कभी खुद को देखती कभी सूने सिंगार को।
नयनों से मेरे आँसुओं की धार बह गई,
तुमको देखने प्रिये मेरी आँखें तरस गईं…॥

परिचय– डॉ. अनिल कुमार बाजपेयी ने एम.एस-सी. सहित डी.एस-सी. एवं पी-एच.डी. की उपाधि हासिल की है। आपकी जन्म तारीख २५ अक्टूबर १९५८ है। अनेक वैज्ञानिक संस्थाओं द्वारा सम्मानित डॉ. बाजपेयी का स्थाई बसेरा जबलपुर (मप्र) में बसेरा है। आपको हिंदी और अंग्रेजी भाषा का ज्ञान है। इनका कार्यक्षेत्र-शासकीय विज्ञान महाविद्यालय (जबलपुर) में नौकरी (प्राध्यापक) है। इनकी लेखन विधा-काव्य और आलेख है।

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