हरिहर सिंह चौहान
इन्दौर (मध्यप्रदेश )
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हेट एण्ड टेल सिक्के के २ पहलू होते हैं। कहीं जाना हो या कोई काम करना हो, तो वह टॉस होना भी फिल्म ‘शोले’ का अलग अंदाज ही था। फिल्म की शुरूआत में जो दृश्य फिल्माए गए, वह उस जमाने के सबसे शानदार चलचित्रों में थे। भारतीय हिन्दी सिनेमा की नींव का पत्थर इस फिल्म को कहें तो कोई ग़लती नहीं होगी। फिल्म के लेखक सलीम-जावेद की जोड़ी ने हर एक किरदार को छैनी-हथौड़ी से तराश कर जीवित किया था। जैसे-बसंती (हेमामालिनी) की बात करने की हर शैली बहुत निराली थी, क्योंकि उस गाँव की तांगे वाली की घोड़ी ‘धन्नो’ भी अलग रंग में दिखी। रामगढ़ की रहने वाली बसंती की बात तो सौ बात की सौ बात ही थी। जब रेलगाड़ी से स्टेशन पर २ जवान लड़के शहर से आते हैं, तो कहते हैं कि “हमें रामगढ़ जाना है….।”
“अच्छा-अच्छा, पर वहाँ कहाँ जाएंगे ?”
“ठाकुर बलदेव सिंह के घर जाना है।”
“बाबू जी, आप सोच रहे होंगे कि बसंती लड़की होकर तांगा चलाती है…। अरे जब धन्नो घोड़ी होकर तांगा चला सकती है, तो हम क्यों नहीं चला सकते हैं।” यह इठलाते हुए संवाद एवं जय और वीरू का किरदार निभाते अमिताभ व धमेंद्र अपने-आपमें अलग ही थे। ‘शोले’ फिल्म में हर एक छोटे-से-छोटा किरदार भी प्रभावी व सटीक रहा। तभी तो आज ४९ साल बाद भी ‘शोले’ हिन्दी फिल्मों की रीढ़ की हड्डी है। ठाकुर की हवेली में काम करने वाला नौकर रामलाल हो या फिर मौलवी बने ए.के. हंगल हो, वहीं ठाकुर साहब की सबसे छोटी बहू जया बच्चन पहली झलक में बहुत सीधी-सादी विधवा बहू के किरदार में अच्छा प्रभाव छोड़ कर गई। अहमद मियाँ के किरदार में सचिन ने थोड़े समय के लिए अपने आपके साथ पूर्ण न्याय किया था। इस फिल्म के ४ प्रमुख स्तंभ थे, तो २ आंतरिक महत्वपूर्ण सारथी भी थे। जय, वीरू, ठाकुर बलदेव सिंह, डाकू गब्बर सिंह, बसंती व ठाकुर साहब की विधवा बहू के आसपास फिल्मी कैमरा जरूर घूमा, पर जब कोई मनोरंजन- व्यंग्य-हास्य की बात होगी तो असरानी ने ‘अंग्रेजों के जमाने के जेलर’ से शुद्ध मनोरंजन किया। वहीं ‘हरिराम नाई की चुगली’ ने दर्शकों को चंद मिनटों के लिए गुदगुदाया।
इस फिल्म में धमेंद्र देओल, अमिताभ बच्चन, संजीव कुमार, अमजद खान, हेमामालिनी तथा जया बच्चन का अभिनय इतने सालों बाद भी सिनेप्रेमियों के सिर चढ़कर बोल रहा है। नयी पीढ़ी भी अगर ‘शोले’ को देखती है तो वह बीच में उठकर कहीं जा नहीं सकती है, वहीं ठहर-सी जाती है, क्योंकि इस फिल्म के संवादों ने दर्शकों को बाँधे रखा था। जैसे- बेलापुर जाने के लिए बसंती व धन्नो की बातचीत, मौसी जी और जय का संवाद, गाँव के देसी परिवेश में बातचीत का अनोखा रंग और फि़ल्मी दृश्य बहुत जोरदार बने थे। इस फिल्म का एक-एक दृश्य मजबूत हिस्सा था, जिसके बल पर यह महासफल नहीं, बल्कि लाखों-करोड़ों चाहने वालों के दिलों में आज ४९ साल बाद भी जिंदा है। आज भी ‘शोले’ जैसी हिंदी फिल्म अपने इतिहास के स्वर्णिम सफ़र पर है… और चाहने वालों के दिलों में राज कर रही है यह फिल्म, जिसे निर्माता निर्देशक जे.पी. सिप्पी व रमेश सिप्पी ने बनाया था, जिसमें उन्होंने कोई कसर नहीं छोड़ी थी।
इस फिल्म में जब गाँव में डाकू आते थे, तब दर्शक भी बहुत डर जाते थे। डाकू कालिया का दृश्य “दो मुठ्ठी ज्वार लाए हो।” फिर यह संवाद “ठाकुर ने हिजड़ों की फौज बनाई है” और तम्बाकू की पोटली से ठेठ देसी अंदाज में अमजद खान के अभिनय ने डर की इबादत लिखी और उस अभिनय को अमर कर दिया। तभी तो “पचास-पचास कोस दूरी पर जब कोई बच्चा रोता है, तो माँ बोलती है…” गब्बर के संवाद ने ज़िन्दगी व मौत के बीच तड़का लगा दिया। ‘शोले’ में “होली कब है” आमजन का संवाद बना हुआ है। ऐसे ही इतने वर्षों बाद भी उसी पर फिल्माया सफल गाना “होली के दिन दिल मिल जाते हैं” उसी उंमग के साथ बना हुआ है।
इसी का सबसे लोकप्रिय गीत मन्ना डे और किशोर कुमार की आवाज में “ये दोस्ती हम नहीं तोड़ेंगे…” जय की मौत पर जब यह बजता है तो माहौल गमगीन हो जाता है। ऐसे तो इस फिल्म में गाने कम थे, मगर जो भी थे वह रजत पटल पर रखे हुए कर्णप्रिय थे। ऐसे ही धमेंद्र का वह यादगार दृश्य, जिसमें पानी की टंकी पर चढ़कर बसंती से शादी के लिए प्रस्ताव निराले अंदाज में फिल्माया गया था। इस किरदार में रहे धर्मेन्द्र ‘वीरू’ ने एक अलग छाप छोड़ी, तो ए.के. हंगल का एक छोटा सा संवाद “इतना सन्नाटा क्यों है भाई…।” भी अमर हों गया। सलीम-जावेद की लेखनी में असली किरदार सूरमा भोपाली का अलग ही था, जो कभी भी भुलाया नहीं जा सकता है। इस ऐतिहासिक फिल्म को चित्रपट जगत की सबसे बड़ी कामयाबी माना जाता है, क्योंकि लोकप्रियता में इसका कोई मुकाबला नहीं हो सकता है। हर एक चीज में यह फिल्म जनमानस के पटल पर रेखांकित है। संवाद, गीत, संगीत या कोई भी किरदार, हर एक चीज मन-मस्तिष्क पर बनी हुई है, जो स्मरणीय है। यकीनन ‘शोले’ जैसी फिल्म फिर कभी भी नहीं बन सकती। यह फिल्मी दुनिया के लिए अजूबा ही है।