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पागल होना ही है

दिनेश चन्द्र प्रसाद ‘दीनेश’
कलकत्ता (पश्चिम बंगाल)
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मैं पगली हूँ,
लोग मुझे पगली कहते हैं।
पर मुझे पगली बनाया कौन ने ?
इसी समाज के दरिंदों ने।

मेरी जवानी और,
मेरे जिस्म के लालच में
दरिंदों ने मेरे साथ,
क्या-क्या न जुल्म किया‌
मेरा शील हरण किया,
मेरे पति को मार डाला,
मेरे बच्चों का वध किया
गाँव के दबंगों ने,
मेरी जमीन हड़प ली
मेरे घर जला दिए।

रहने का ठिकाना नहीं,
खाने को दाना नहीं
आप ही बताइए,
इतना होने के बाद ,
कोई कैसे रह सकता है सहज,
उसे तो पागल होना ही है
फिर भी मैं सामान्य रही,
लेकिन जब मैं
फुटपाथ पर नहाती थी,
तो हर आने-जाने वाले की
गिद्ध दृष्टि
मेरे मांसल जिस्म पर,
अटक जाती थी।

मुझे लगता था,
सब मिलकर मुझे चारों तरफ से
सैकड़ों चील गिद्ध की भांति,
मेरे बदन को नोंच-नोंच कर
खा रहे हैं
पर जब ये पीड़ा,
असहनीय हो गई तो
मैंने नहाना छोड़ दिया,
बाल संवारना छोड़ दिया
फटे चीथड़े पहनने लगी,
बन गई भूतनी की तरह
बच्चे पत्थर फेंकने लगे,
और मैं बन गई पगली।
सब कहने लगे,
‘पगली आई, पगली आई’॥

परिचय– दिनेश चन्द्र प्रसाद का साहित्यिक उपनाम ‘दीनेश’ है। सिवान (बिहार) में ५ नवम्बर १९५९ को जन्मे एवं वर्तमान स्थाई बसेरा कलकत्ता में ही है। आपको हिंदी सहित अंग्रेजी, बंगला, नेपाली और भोजपुरी भाषा का भी ज्ञान है। पश्चिम बंगाल के जिला २४ परगाना (उत्तर) के श्री प्रसाद की शिक्षा स्नातक व विद्यावाचस्पति है। सेवानिवृत्ति के बाद से आप सामाजिक कार्यों में भाग लेते रहते हैं। इनकी लेखन विधा कविता, कहानी, गीत, लघुकथा एवं आलेख इत्यादि है। ‘अगर इजाजत हो’ (काव्य संकलन) सहित २०० से ज्यादा रचनाएं विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हुई हैं। आपको कई सम्मान-पत्र व पुरस्कार प्राप्त हुए हैं। श्री प्रसाद की लेखनी का उद्देश्य-समाज में फैले अंधविश्वास और कुरीतियों के प्रति लोगों को जागरूक करना, बेहतर जीवन जीने की प्रेरणा देना, स्वस्थ और सुंदर समाज का निर्माण करना एवं सबके अंदर देश भक्ति की भावना होने के साथ ही धर्म-जाति-ऊंच-नीच के बवंडर से निकलकर इंसानियत में विश्वास की प्रेरणा देना है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-पुराने सभी लेखक हैं तो प्रेरणापुंज-माँ है। आपका जीवन लक्ष्य-कुछ अच्छा करना है, जिसे लोग हमेशा याद रखें। ‘दीनेश’ के देश और हिंदी भाषा के प्रति विचार-हम सभी को अपने देश से प्यार करना चाहिए। देश है तभी हम हैं। देश रहेगा तभी जाति-धर्म के लिए लड़ सकते हैं। जब देश ही नहीं रहेगा तो कौन-सा धर्म ? देश प्रेम ही धर्म होना चाहिए और जाति इंसानियत।