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आज सत्य बोलना बहुत कठिन

डॉ.अरविन्द जैन
भोपाल(मध्यप्रदेश)
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विवादित बयान…..

सत्य बोलना बहुत बड़ा व्रत है। इसके सम्बन्ध में हमारे ग्रंथों,पुराणों और महापुरुषों ने इसको अपने जीवन में उतारा और बहुत विस्तृत विवरण मिलता है। सत्य बोलना कभी कभी मुश्किल में डालता है, जैसे वर्तमान में एक दल विशेष के नेता की कुछ टिप्पणी करने से बवाल मचा हुआ है। सत्य कटु होता है, सत्य वचन वह होता है, जो हितकारी हो, मित हो और प्रिय हो। कभी-कभी किसी को बचाने के लिए असत्य बोलना भी सत्य की श्रेणी में आता है। सत्य वचन की ५ भावनाएं होती हैं-क्रोध, लोभ,भय,हास्य का त्याग करना और शास्त्र के अनुसार निर्दोष वचन बोलना।
आज सत्य बोलना बहुत कठिन है। उन्होंने किसी धार्मिक पुस्तक को आधार बनाकर सत्य बोला और वह गले की फांसी बन गई। यदि इस बात को अनेकांतवाद की दृष्टि से देखा होता हो विवाद नहीं होता। उनके कथन को एकांगी माना गया। यदि अनेकांतवाद से देखा जाए तो गलत नहीं है। अनेकान्तवाद की यह खूबसूरती है कि, वह हर बात को सत्य न मान के एक की अपेक्षा सही है। आज विश्व में तनाव,अशांति का मुख्य कारण एक-दूसरे के भावों को एकांत की दृष्टि से समझकर विवाद खड़ा करना है। यदि उसको अनेकांतवाद की दृष्टि से देखें तो कोई विवाद नहीं होगा।
हुआ क्यों विवाद ?, क्योकि कोई सच नहीं स्वीकारना चाहता है। सब चिकनी-चुपड़ी बात कहना-सुनना पसंद करते हैं। हमारे देश में हिन्दुओं के ३३ करोड़ देवी-देवता हैं, जबकि अन्य में मात्र १ ही है। हमको कोई भी कहे,कुछ भी कहे,सहन करते हैं पर अन्य लोग पता नहीं क्यों! इतनी संकीर्ण मानसिकता के होते हैं कि सुनो-समझो-जानो पर विवाद पहले होता है। हम एक होने की कोशिश करते हैं तो बाह्य दबाव के कारण झुक जाते हैं। यह विचारणीय प्रश्न है कि हम क्यों इतने लचीले हो जाते हैं ?
हमारे देश में समस्याएं कम नहीं हैं-गरीबी, अशिक्षा, बेरोजगारी आदि, पर हम लोग मुख्य समस्याओं से भटक कर ईश्वर,अल्लाह,ईशा आदि के विवादों में अटके हुए हैं। वे सब ऊपर चले गए और हम उनके नाम की लकड़ी पीट रहे हैं, जिससे कुछ नहीं होने वाला है।
तर्क अनंत होते हैं, पर सच्चाई एक ही होती है। तर्क का मुलल्मा कितना भी पहनाओ, पर सत्य उजागर होता है। विश्व में कोई भी पूर्ण नहीं है,सबमें खामियां होती हैं। बेहतर हो कि अब इन विवादों में न पड़ कर देश के विकास में अहम भूमिका निभाएं और जो बुनियादी समस्याएं हैं उन पर ध्यान दें। खून-खराबे से कोई हल नहीं निकलता, हल निकलता है बातचीत से। वह भी स्वस्थ हो, अन्यथा हमारी ऊर्जा इन सड़े मुद्दों पर जाती रहेगी और हम भी नफरत फैलाकर नौ दो ग्यारह हो जाएंगे।

परिचय- डॉ.अरविन्द जैन का जन्म १४ मार्च १९५१ को हुआ है। वर्तमान में आप होशंगाबाद रोड भोपाल में रहते हैं। मध्यप्रदेश के राजाओं वाले शहर भोपाल निवासी डॉ.जैन की शिक्षा बीएएमएस(स्वर्ण पदक ) एम.ए.एम.एस. है। कार्य क्षेत्र में आप सेवानिवृत्त उप संचालक(आयुर्वेद)हैं। सामाजिक गतिविधियों में शाकाहार परिषद् के वर्ष १९८५ से संस्थापक हैं। साथ ही एनआईएमए और हिंदी भवन,हिंदी साहित्य अकादमी सहित कई संस्थाओं से जुड़े हुए हैं। आपकी लेखन विधा-उपन्यास, स्तम्भ तथा लेख की है। प्रकाशन में आपके खाते में-आनंद,कही अनकही,चार इमली,चौपाल तथा चतुर्भुज आदि हैं। बतौर पुरस्कार लगभग १२ सम्मान-तुलसी साहित्य अकादमी,श्री अम्बिकाप्रसाद दिव्य,वरिष्ठ साहित्कार,उत्कृष्ट चिकित्सक,पूर्वोत्तर साहित्य अकादमी आदि हैं। आपके लेखन का उद्देश्य-अपनी अभिव्यक्ति द्वारा सामाजिक चेतना लाना और आत्म संतुष्टि है।

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